अपना मूल्य समझो और विश्वास करो कि तुम समाज के महत्वपूर्ण व्यक्ति हो

Tuesday, December 28, 2021

आजादी का “अमृत महोत्सव” बनाम पेसा की “रजत जयंती

 आलेख


*आजादी का “अमृत महोत्सव” बनाम पेसा की “रजत जयंती”*


इस साल और अगले साल केंद्र सरकार आजादी का अमृत महोत्सव मना रही है. 15 अगस्त 2022 को भारत की आजादी के 75 साल हो रहे हैं. इस अमृत महोत्सव में छत्तीसगढ़ के पांचवी अनुसूची क्षेत्रों के आमजन भी अलग अलग अवसरों में सहभागी बनते आ रहे हैं. अमृत महोत्सव के साथ उनके लिए उत्सव का एक और कारण है. जल-जंगल-जमीन का अधिकार देने वाला पेसा  कानून 24 दिसंबर 2021 को 25 साल का हो रहा है. इसलिए आदिवासियों के पास अमृत महोत्सव और रजत जयंती मनाये जाने का विषय एक साथ है. 


हर उत्सव खुशी का होता है, पर इस अमृत महोत्सव और रजत जयंती को ले कर पांचवी अनुसूची क्षेत्रो के लोगो के मन में आशंका है. थोडा डर भी है. सवाल है कि, “हम उत्सव मनाये की नहीं?” क्या यह दोनों उत्सव आम जनता की के लिए सच में खुशहाली लाये है या फिर उनके जल-जंगल-जमीन को धीरे-धीरे निजी हाथों में दिए जाने की ख़ुशी में पांचवी अनुसूची क्षेत्र के लोगो का उपहास उड़ा रहे है?


आजादी के 75 साल को देखे तो लोकतांत्रिक व्यवस्था में जिस प्रकार हर प्रावधान और कानून लिखित में होता है वो आज तक जंगल में रहने वाले भोले-भाले लोगो को समझ नहीं आ पाया है. ऐसा क्यों? क्योंकि आदिवासी समुदाय का लिखित संविधान और कानून नहीं होता है. वह तो अलिखित संविधान से चलते है. लेकिन जब हम खोजते है कि पिछले 75 साल में सरकारों के सैकड़ो लिखित कानूनों में ऐसा कौन सा कानून है जो आदिवासियों के जल, जंगल, जमीन, संस्कृति और जीवन यापन के अलिखित कानूनों को समेटे हुए है तो एक ही नाम सामने आता है “पेसा कानून.”  और दूसरा RoFRA ये दोनों कानून एक दूसरे के पूरक है इसको दोनो को एक साथ ही देखना चाहिए। 


सन 1996 की 24 दिसंबर से लागू यह पेसा कानून हमारे लिए आज यह चिंतन करने का अवसर दे रहा है कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी जो स्वतंत्रता और आजादी सभी को मिली थी क्या वह आदिवासियों और पांचवी अनुसूची क्षेत्र के निवासियों को भी पूर्ण रूप से मिली है या पूर्व की आजादी भी उनसे धीरे-धीरे छिनती जा रही है.क्या इस क़ानून के जरिये उपलब्ध संसाधनों को पूंजीवाद की व्यवस्था में लेकर जा रहे हैं। ऐसे कई सवाल हमारे सामने है।


पेसा कानून के लिए 25 साल में अब तक मध्य भारत के 10 राज्यों में जहाँ यह कानून लागू होता है उसमे से छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, ओडिशा और झारखण्ड में नियम ही नहीं बने हैं. जिस कानून के नियम ही नहीं बने हो वह कानून 25 सालों में कैसे चला होगा यह सोचने का विषय है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार इस पर जवाब दे कि 25 सालों तक उन्होंने क्या किया है. 


इन 25 सालों के लिए हमारी ओर से 25 सवाल तो खड़े करना तो लाजमी है. इन सभी के जवाब तो केंद्र और राज्य सरकार दोनों को ही देने होंगे. शायद इनका जवाब देते हुए वह इस बात पर चिंतन कर पाए कि संविधान के अनुच्छेद 40 में लिखित पंचायती राज व्यवस्थाओं को स्वायत्त इकाई बनाने के लिए सरकार ने अब तक क्या कदम उठाये हैं. क्या उन्होंने ग्राम सभा और पंचायतो को स्वशासन की इकाई बनने के लिए कुछ पहल की है या उनके पूर्व में चले आ रहे स्वशासन को छीनने का काम किया है?


अगर सरकार इस बात का जवाब नहीं दे पाती है तो हमें उनके नियत पर शक करना लाजमी है. 25 साल तक पेसा के झुनझुना से आदिवासी समाज और पांचवी अनुसूची क्षेत्र में रहने वाला हर समाज खेलता रहा है. अब समाज को कानून के साथ साथ व्यस्क हो कर अपने अधिकार पाने के लिए सड़क से संसद तक और साथ साथ कोर्ट में अपनी लड़ाई लड़नी होगी, नहीं तो अगले 25 साल के लिए फिर पेसा के नाम का झुनझुना के साथ लालीपॉप पकड़ा दिया जायेगा.

वर्तमान में छत्तीसगढ़ केबिनेट और TAC ने छत्तीसगढ़ के पेसा नियम 2022 को पास किया हैं  और 8 अगस्त 22 को अधिसूचित हो गया है अभी देखना होगा कि यह नियम किस तरह से गांव में स्वशासन दिला पायेगा?? और गाँव समाज गांव सरकार की परिकल्पना को कैसे साकार कर पायेगा? 


*पेसा की चुनौतियों और जोखिम*  पर अगला लेख क्रमशः....


अश्वनी कांगे 

7000705692

सामाजिक चिंतक कांकेर, छत्तीसगढ़ ,

संस्थापक सदस्य-

KBKS, NSSS, SANKALAP, KOYTORA,

पूर्व जिला अध्यक्ष-अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद कांकेर।

पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष - गोण्डवना युवा प्रभाग ब्लॉक चारामा, जिला कांकेर।

पूर्व प्रांतीय उपाध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़, युवा प्रभाग।

कोर ग्रुप सदस्य, गोंडवाना समाज समन्वय समिति बस्तर संभाग।

वर्किंग ग्रुप सदस्य, सब ग्रुप, छत्तीसगढ़ योजना आयोग 

Organizer- All India Adivasi Employees Federation,(AIAEF) Chhattisgarh

ashwani.kange@gmail.com 




No comments: