आलेख
सामाजिक समरसता का प्रतीक पेसा कानून
पेसा की रजत जयंती पर उत्सव, चिंता और चिंतन
(24 दिसम्बर 2021 पेसा की रजत जयंती पर विशेष)
पेसा अधिनियम की रजत जयंती पर आज बड़ी दुविधा में हूं. दुविधा इस बात की है कि मैं इसके युवावस्था का उत्सव मनाऊ, इसकी जो दुर्गति लगातार हुई है उसकी चिंता करू या इसके क्रियान्वयन को बेहतर कैसे कर सकते है उस पर चिंतन करूं.
उत्सव का विषय यह है कि यह कानून आज भी प्रासंगिक है. बीते 25 साल में पांचवी अनुसूची क्षेत्र के मुद्दे वही हैं जो इस कानून में लिखे हुए है. इन क्षेत्रों के जल-जंगल-जमीन के अधिकार. उनकी रीति-नीति-परंपरा के अनुसार अपनी पंचायती राज व्यवस्था को बनाना. ग्राम सभा और पंचायतो को स्वशासन और स्वायत्तता की ओर अग्रसर करना. गांव में अपना राज स्थापित करना. पेसा ही ऐसी कड़ी है जो सम्पूर्ण पांचवी अनुसूची क्षेत्रो को एक धागे में पीरोती है और लोगो को एक दूसरे से जोडती है.
चिंता लेकिन मुझे इस बात की है कि कानून का इतना बढ़िया ढांचा होने के बाद भी इसकी दुर्गति का कारण क्या है. छत्तीसगढ़ में आज भी इसका नोडल विभाग स्पष्ट नहीं है. आज भी इसके लिए नियम बनाए जाने की प्रक्रिया जारी हैं. आज भी इसको लागू करने के लिए मैदानी अमला मौजूद नहीं है. इसकी निगरानी करने के लिए समीक्षा बैठक तक नहीं होती है. इन सबसे बड़ी चिंता का विषय है की 25 साल बाद भी समाज और सरकार का बड़ा वर्ग इसकी मूल भावना को समझ नहीं पाया है.
यही चिंता ही मुझे इस चिंतन की ओर ले जाती है कि कहाँ इसके क्रियन्वयन में कमी रह गयी है. पेसा में ऐसा क्या है जिससे राजनीतिक और सरकारी व्यक्ति इस पर बात करने से भी डरते है? क्यों सभी समाज को लगता है कि पेसा के पूर्ण रूप से लागू होने से आदिवासी समाज ही सारे अधिकार पा जायेगा?
इन सभा धारणाओं और गलत व्यख्यायों को दूर करने की जरूरत है. कही-सुनी बातों से ज्यादा अधिनियम और नियम को पढ़कर समझने की जरूरत है. चूँकि संविधान का अनुच्छेद 40 ग्राम सभा/पंचायतों को स्वयात्त शासन की इकाई के रूप में देखता है यह स्वायतत्ता सविधान के अनुच्छेद 243ड. के अंतर्गत पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में पेसा कानून में बताये गए अपवादों और उपन्त्रणों के जरिये से ही हो सकती है. इसी के तहत संविधान की 11 अनुसूची के 29 विषय जिसमे शिक्षा, स्वास्थ्य, सडक, पानी, बिजली, विकास के समस्त कार्य सहित समीक्षा, नियंत्रण तथा स्वशासन शामिल है यह सब भी पांचवी अनुसूची क्षेत्रो में पेसा के माध्यम से ही संचालित होता है. पेसा के अलावा और कोई दूसरा कानून अभी वर्तमान में विद्यमान नही है जिसके माध्यम से इनका क्रियान्वयन किया जा सके.
पेसा को पढ़ते वक्त मूल रूप से इस बात का ध्यान रखना है कि यह पांचवी अनुसूची क्षेत्रो में रहने वाले सभी लोगों को ग्राम सभा और पंचायत के माध्यम से सशक्त करता है. यह किसी वर्ग विशेष को लाभ नहीं पहुंचता है और ना ही सिर्फ यह आदिवासी समाज के लिए बनाया गया कानून है.
छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम की धारा 129 (e)(3) को ठीक से पढेंगे तो पाएंगे की पंचायती राज व्यवस्था और पेसा में अनुसूचित जाति (SC) और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के लिए भी आरक्षण है. जहाँ सरपंच/अध्यक्ष के पद अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं वहां उपसरपंच/उपाध्यक्ष के पद SC अथवा OBC के लिए आरक्षित है. पेसा इसलिए समाज के वर्ग में भेद नहीं कर रहा है और सभी को अनेक रूप से अवसर दे रहा है.
पेसा जहाँ पर भी रूढी परंपरा की बात करता है तो किसी वर्ग विशेष की रूढी परंपरा पर जोर नहीं देता है बल्कि पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में निवासरत सभी समाजों की रूढी परंपरा को सुरक्षित और संरक्षित करने के लिए ग्राम सभा को शक्ति देता है और उन्हें सक्षम बनाता है.
गाँधी के ग्राम स्वराज की परिकल्पना को साकार करते हुए सत्ता का विकेंद्रीकरण जरूर हुआ पर शक्तियों और संसाधनों का विकेंद्रीकरण कोई सरकार/शासन नहीं चाहती. केंद्रीकृत व्यवस्था से सारा लाभ कुछ गिने-चुने लोगो के हाथ में जा रहा है जिससे मुक्ति पाने का रास्ता दिखाता है पेसा. आजादी के बाद भी दोयम दर्जे की जिंदगी बिताने के लिए मजबूर पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों के निवासियों के लिए एक उम्मीद है पेसा.
इसलिए पेसा कानून को पूर्ण रूप से लागू करना सभी समाज के हित में है, सभी पार्टियों के हित में है, सभी संगठनों के हित में है, सिवाय कुछ पूंजीपति और राजनीतिक वर्ग के लोगो के जो सत्ता और संसाधन को अपनी मुट्ठी में बंद रखना चाह रहे हैं.
इस बंद मुट्ठी को खोलने का आज 25 साल बाद हमारे लिए मौका है. इसके लिए हम सभी को पूरी ताकत लगानी होगी. हमारे विषमताओं और भिन्नताओं के बावजूद हमें साथ आना होगा. अपनी अलग अलग आदिवासी वर्ग की पहचान से, अपनी SC, OBC, दलित की पहचान से ऊपर उठ कर हमें गाँव के रूप में, पांचवी अनुसूची क्षेत्रों के रूप में एक होना होगा. तब ही बन पायेगा हमारा गाँव गणराज्य, तब ही हो पायेगा मावा नाटे - मावा राज, तब ही होगा हमारे गाँव में हमारा राज, तब ही होगा अबुआ दिशुम - अबुआ राज और तब ही बन पायेगी अपने गाँव में अपनी सरकार.
पेसा में बहुत सारे अधिकार की बात कही गई है इन 25 सालों में क्या स्थिति है, सब जानते हैं।गांव जागरूक नही होने, और सरकारी अमला में स्पष्ट जानकारी का अभाव के चलते संसाधनों का विदोहन किस कदर हो रहा है, सरकारी अमला कभी धारा 3 और 4 तथा 5 को पढ़ते ही नही हैं।
इसलिए मेरा आव्हान है की पांचवी अनुसूची क्षेत्रों के सभी लोग इस पच्चीसवीं वर्षगांठ पर पेसा को पूर्ण रूप से लागू करने के लिए आगे आये. इसे कोई दूसरा लागू नहीं करेगा. कोई सरकार नहीं करेगी. इसे हमें खुद करना होगा. ग्राम सभा सदस्य के रूप में, पंच/सरपंच के रूप में, जनपद/जिला पंचायत के सदस्य/अध्यक्ष/उपाध्यक्ष के रूप में. हमें खुद अपने गाँव में गाँव सरकार बनानी होगी और अपनी सामाजिक, धार्मिक, रूढी, परंपरा, को जिन्दा करना होगा. तब जा के हमारे पुरखो की विरासत को पेसा के कानूनी ढाँचे के माध्यम से हम संभाल पाएंगे.
अश्वनी कांगे
7000705692
सामाजिक चिंतक कांकेर ,
KBKS, छत्तीसगढ़
ashwani.kange@gmail.com
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