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Thursday, December 23, 2021

 राह देखता पेसा : 24 दिसंबर पेसा दिवस पर विशेष

 राह देखता पेसा : 24 दिसंबर पेसा दिवस पर विशेष


अश्वनी कांगे , कांकेर 


दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 90 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए , एक उदारीकरण की नीति और दूसरा ग्राम स्वराज की परिकल्पना . पहला उदारीकरण की नीति के तहत देश के कई कानूनों में शिथिलता लाते हुए उद्योग धंधों को बढ़ावा देने के नाम पर उदार नीति अपनाते हुए कठोर नियमों में बदलाव किए गए और दूसरा बदलाव इस देश में सत्ता का विकेंद्रीकरण है जिसे संविधान संशोधन कर इस देश में लागू किया गया . 1992 में 73 वा संविधान संशोधन अधिनियम लाया गया और उसमें इस लोकतांत्रिक देश में जैसे केंद्र में लोकसभा,  राज्य में विधान सभा, विधान परिषद उसी प्रकार गांव में ग्राम सभा को जगह दी गई और ग्राम सभाओं को शक्ति दी गई कि गाँव के स्तर पर ग्रामसभा सभी तरह के कामकाज को अपनी परंपरा के अनुसार करने के लिए सक्षम है , वह ग्राम स्वराज की परिकल्पना जो गांधी जी के सपनों का भारत है उसे पूरा करने के लिए ग्राम स्वराज की स्थापना हेतु  सबसे निचले स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई और उसी प्रकार से प्रावधान रखे गए और संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची के 29 विषयों को ग्राम पंचायत स्तर पर या ऐसा कहें कि ग्रामीण विकास की अवधारणा को लेकर ग्राम सभा को सशक्त  करने के लिए सौपी गई .


संवैधानिक व्यवस्था :- ऐसे में सवाल उठता है कि  पंचायती राज व्यवस्था पूरे देश में 1993 में लागू की गई , लेकिन ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए जब ऐसा प्रावधान किया जा रहा था तब उस समय भारतीय संविधान के अनुच्छेद 243ड.  में कहा गया की यह पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में जहां पांचवी अनुसूची क्षेत्र अधिसूचित है वहां लागू नहीं होगी l  इसका मतलब स्पष्ट है पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था जैसी कोई भी व्यवस्था लागू नहीं होगी.  पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में जैसे पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं हो सकती उसी प्रकार से नगरीय पंचायत व्यवस्था नगर पालिका, नगर निगम, नगर पंचायत इत्यादि व्यवस्था भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 240यग. के अनुसार लागू नहीं हो सकता .  लेकिन वर्तमान परिस्थिति में देखने को मिलता है की पंचायती राज व्यवस्था और नगर पंचायत व्यवस्था दोनों ही अनुसूचित क्षेत्रों में लागू है . यंहा पर स्पष्ट करना जरुरी होगा कि त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को पेसा कानून बना कर विस्तार किया गया वंही नगरीय पंचायत व्यवस्था के लिये आज तक मेसा जैसा कानून नही बना , अनुसूचित क्षेत्रों में नगरीय पंचायत वयवस्था असवैधानिक रूप से संचालित है . 


अपवादों और उपन्तारणों के साथ लागू  :- एक दूसरी बात 1993 की पंचायती राज व्यवस्था को पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में भी विस्तार करने की बात 243ड. पैरा 4 के उप पैरा (ख) में  विस्तार करने की बात कही गई है ,  यदि संसद चाहे तो अपवादों और उपन्तारणों के साथ विस्तारित कर सकता है यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि अनुसूचित क्षेत्रों में जो कि पंचायती राज व्यवस्था लागू होगी वह अपवादों और उपन्तारणों के साथ लागू  होगी.  इसका मतलब है कि पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में सशर्त लागू होगी, जिसके तहत ही देखने को मिलता है  कि सामान्य क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था और अनुसूचित क्षेत्रों की पंचायती राज व्यवस्था में काफी अन्तर  है और यही अंतर  1996 के पंचायती राज उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार ) अधिनियम 1996 जिसे हम पेसा कानून के नाम से जानते हैं , के तहत देखने को मिलता है . यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि  24 दिसंबर 1996 को यह कानून देश के सभी अनुसूचित क्षेत्रों में लागू किया गया और आज 24 साल बाद भी इस कानून के क्रियान्वयन को देखेंगे तो सही तरीके से नहीं हो पाया है 24 साल इस कानून को हो गए हैं यह कानून अपने युवावस्था में है और ऐसे समय में इस कानून को लागू करने के लिए आज तक नियम नहीं बने और जब नियम नहीं बने हैं तो इसका क्रियान्वयन कैसे होगा यह अपने आप एक बड़ा सवाल है या फिर नियम नही बने है तो ऐसे में वे सभी कानून जो पेसा की धारा 4 से असंगत है संसोधन कर लागू करना चाहिए ,  ऐसा भी नहीं है की पेशा कानून 1996 में लागू हो गए तो कोई बदलाव नहीं हुआ बदलाव हुआ है पेसा  कानून की धारा पांच के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में जो प्रवृत विद्यमान कानून थे उन सारे कानूनों को उनके अपवाद और परिवर्तन/संसोधन   के साथ वहां के रहने वाले जनजातीय समूहों के व्यवहारों से जो असंगत होते हैं ऐसे कानून के प्रावधानों में  शिथलीकरण करते हुए एक  साल के भीतर बदलाव कर लिए जाने चाहिए थे और परिवर्तन व  संशोधन के साथ लागू किया जाना चाहिए था . ऐसे में हम देखते हैं तो आबकारी अधिनियम , पंचायत राज अधिनियम,  भू राजस्व संहिता इत्यादि गिने-चुने 5-6 कानूनों के नियम में ही संशोधन किए गए . 


पेसा और रोफरा :- आप देखेंगे कि 11वीं अनुसूची में 29 विषय हैं उनमें 29 विषयों को पंचायत के माध्यम से गांव में क्रियान्वयन करना है ऐसे में आप समझ सकते हैं कि कितने कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है और जो आज तक नहीं हुए हैं यह ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए महती भूमिका निभाने वाला कानून है जिसका नियम आज तक नहीं बना है . छत्तीसगढ़ सरकार आने वाले बजट सत्र में इसके नियम बनाने की बात कह रही है यह अच्छी बात है  .ग्राम स्वराज की स्थापना में ग्राम सभा के सशक्तीकरण को पेसा और रोफरा - जिसे वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के नाम से जाना जाता है यह दोनों ऐसे कानून है जो एक गांव के पारंपरिक व्यवस्थाओं को सुदृढ़ करता  है और उसे सशक्त बनाता है 


जहां भारत के अधिकांश जनसंख्या गांव में बसता है वहां पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण विकास को ध्यान में रखते हुए यह दो कानून आने वाले समय में बहुत अहम भूमिका निभाने वाले हैं , पिछले 27 सालों में अभी तक ग्राम पंचायत को ग्रामसभा से बड़ा माना जाता रहा है लेकिन ऐसा नहीं है . ग्राम सभा सर्वोपरि है और उनके द्वारा लिए गए निर्णय व अनुमोदन को क्रियान्वयन करने वाली कार्यकारी समिति ग्राम पंचायत है लेकिन यह बात ग्रामसभा को ही नहीं पता है जागरूकता की कमी है और जागरूकता की कमी के चलते पंचायत की उच्च स्तर की संस्थाओं के माध्यम से निर्देशित और संचालित होती है जो कानून के विपरीत है पेसा कानून की धारा 4 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि भारतीय संविधान के भाग 9 में किसी बात के होते हुए भी राज्य का विधान मंडल उस भाग के अधीन कोई भी कानून नहीं बनाएगा जो (क) से (ण) तक  विशेषताओं से असंगत हो. और जब ऐसा है तो विधानसभा में बनने वाले सभी कानून जो अनुसूचित क्षेत्र में लागू होने वाले होंगे उन सभी कानूनों को बनाने के लिए या बनाने से पहले अनुसूचित क्षेत्रों के ग्राम सभाओं से परामर्श / सहमति करना अनिवार्य है 


5वी अनुसूची :- मध्य भारत के 10 राज्यों में सबसे बड़ा अनुसूचित क्षेत्र वाला छत्तीसगढ़ है  जहाँ  राज्य के भू –भाग का करीव 60 प्रतिशत भाग पर फैला है . इन 27 सालों में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जो विकास अनुसूचित क्षेत्रों में होना था वह उस तरीके से नहीं हुआ जिसका नतीजा ही है कि अनुसूचित क्षेत्रों में आए दिन अपनी मांगों को लेकर रैली, धरना, प्रदर्शन या और भी कई माध्यमों से विरोध दर्ज करते रहे हैं . त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में ग्राम सभा के जो निर्णय लेने के अधिकार थे उस अधिकार को कम किया जा रहा है यह इसलिए हो रहा है क्योंकि स्पष्ट नियम नहीं बने हैं . तब सवाल खड़ा होता है क्या पेसा के नियम बन जाएगा तो क्या ग्राम सभाएं सशक्त हो सकेंगी यह आने वाला समय ही बताएगा . जिस तरीके से इस देश में पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया वह व्यवस्था आज गांव में व्यवस्था बनाने के बजाय व्यवस्था को बिगाड़ने वाली व्यवस्था बनते जा रही है ऐसे में सवाल खड़े होता है कि आने वाले समय में व्यवस्थाएं सुधरेंगे और ग्रामसभा सशक्त होंगी.  जिस तरीके के जागरूकता होनी चाहिए वह आज भी नहीं है .खेदजनक एतिहासिक सच्चाई  है  कि गाँव गणराज्य की मूल चेतना अंधाधुंध  विकास की यात्रा में अनदेखी रह गयी . खास तौर पर आदिवासी इलाकों में स्थानीय परंपरागत आर्थिक- सामाजिक व्यवस्था और राज्य औपचारिक तंत्र के बीच की विसंगति  गहराती गयी . वहां टकराव जैसी स्थिति बनती गयी है . आदिवासी इलाकों के परंपरागत व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए तथा लोकतान्त्रिक विकास के लिए 5वी  अनुसूची प्रावधानों से शोषण की समाप्ति ,समाज के सशक्तिकरण और आर्थिक विकास का मानक आदिवासी परंपरा और राज्य की व्यवस्था के बीच गहराती विसंगति और बढ़ते टकराव की बात भी सामने आई ,जिसका मुख्य कारण था आदिवासी इलाकों में 5वी अनुसूची के प्रावधानों  का ईमानदारी से अमल ना होना .परन्तु इसमें सबसे बड़ी चुनौती यही है  कि राज्य सत्ता से जुड़े नेतृत्व, विभागीय  अधिकारी एवं कर्मचारीगण, पंचायत  सदस्यों  का  इस कानून- नियम को आत्मसात करने के लिए बड़ा कदम उठाना होगा तथा गाँव के लोग इस परिवर्तनकारी वदलाव को समझे , ग्रामसभा की गरिमामयी भूमिका का एहसास करें और आत्मविश्वास के साथ अपनी व्यवस्था का संचालन  अपने हाथ में ले सकें .


प्रशासन और नियंत्रण :- संविधान की पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों के प्रशासन और नियंत्रण से संबंधित पेसा कानून में प्रावधान किया गया है, जो प्राचीन रीति-रिवाजों और प्रथाओं की एक सुव्यवस्थित प्रणाली के माध्यम से अपने प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन करते हैं और अपने निवास स्थान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन को संचालित करते हैं। इस अभूतपूर्व सामाजिक परिवर्तन के युग में, इस चुनौती का सामना करने के लिए आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक-आर्थिक परिवेश को छेड़े या नष्ट किए बिना उन्हें विकास के प्रयासों की मुख्य धारा में शामिल करने की अनिवार्य आवश्यकता महसूस की गई है , अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं और पंचायतों को लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों को सुरक्षित रखने और संरक्षित करने का अधिकार देता है, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधन और विवाद समाधान और स्वामित्व के प्रथागत तौर-तरीके, गौण खनिज,  लघु वन उपज का स्वामित्व , आदि;


पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन:- पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन न केवल विकास लाएगा,  बल्कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में लोकतंत्र भी, और गहरा व मजबूत होगा। इससे निर्णय लेने में लोगों की भागीदारी में वृद्धि होगी। पेसा आदिवासी क्षेत्रों में अलगाव की भावना को कम करेगा और सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग पर बेहतर नियंत्रण होगा। पेसा से जनजातीय आबादी में गरीबी और अन्यत्र  स्थानों पर  पलायन कम हो जाएगा क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण और प्रबंधन से उनकी आजीविका और आय में सुधार होगा।. पेसा जनजातीय आबादी के शोषण को कम करेगा, क्योंकि वे ऋण देने, शराब की बिक्री खपत एवं गांव बाजारों का प्रबंधन करने में सक्षम होंगे। पेसा के प्रभावी क्रियान्वयन से भूमि के अवैध हस्तान्तरण पर रोक लगेगी और आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तान्तरित भूमि की वापसी किया जा सकेगा और सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि पेसा परंपराओं, रीति-रिवाजों और जनजातीय आबादी की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देगा।



अश्वनी कांगे

सामजिक चिंतक 

7000705692

कांकेर.  Chhattisgarh 




Wednesday, December 22, 2021

केन्द्रीय पांच दिवसीय #कोया पुनेम और संवैधानिक प्रशिक्षण शिविर

 #सगालोर_कुन_बुमकाल_ता_नेवता! 


#केन्द्रीय पांच दिवसीय #कोया पुनेम और संवैधानिक प्रशिक्षण शिविर

[17 वाॅ वर्ष दिनांक_23/24/25/26/27दिसंबर 2021 ]

स्थान/नार्र = बोराई ,पोस्ट. - घुटकेल , ब्लॉक/तह. - नगरी, जिला- धमतरी (छत्तीसगढ़) भारत


सम्मानीय सगाजनो !

               सेवा जोहार!  बुमकाल जोहार!  

आप सभी #पेन पुरखा पाट प्रकृति ऊर्जा शक्तियों को मानने वाले समस्त कोया पुनेमी सगाजनो को बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि युवाओं में  सहस्राब्दियो से सतत् वैज्ञानिक अनुसंधानों से जांची परखी हमारे रूढ़िगत विश्वासों परम्पराओं को और मजबूत करने, वर्तमान में  तेजी से हो रहे प्रकृति पर्यावरण को नष्ट होने से बचाने #कोयतोरिन टेक्नोलॉजी का अनुप्रयोग करने , समुदाय में व्याप्त आण्डम्बरो को जड़ से  समाप्त करने हेतु #टोण्डा - मण्डा - कुण्डा संस्कार का परिपालन करने  , प्रकृति सम्मत #गोण्डीयन पंडुम को समझने , पेन ऊर्जाओं पर आधारित #नार-जागा-गढ़-मण्डा की प्रकृतिसम्मत डिजाइन की मानवीय व्यवस्थाओं को अध्ययन करने , #गोटूल एजुकेशन सिस्टम के साथ ही आधुनिक शिक्षा के उच्चतम बिन्दुओं  को समझने,  #हाटुम इकोनॉमी व #हडप्पीयन सभ्यताओं से विकसित गोण्डीयन आत्मनिर्भर इकोनॉमी सिध्दांत को समझकर वर्तमान घोर बेरोजगारी की समस्या से निपटने , #यूपीएससी/आईएएस/पीएससी/पीएमटी/एसएससी  जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने,  माननीय भारतीय संविधान में निहित आदिवासियों के लिए स्वशासन की भावना व पांचवी अनुसूची जैसे तत्वों को समझने , "#गण्ड - गोण्ड - गोण्डवाना - गोटुल - गुडी - गायता-गोण्डी" के व्यवस्थित सामाजिक - प्रशासनिक - शैक्षणिक - आर्थिक - आध्यात्मिक अदभुत संरचनाओं को समझकर युवाओं में उनके जीर्र/डीएनए को जगाते हुए अपने आत्मविस्वास को प्रबल करने..... आदि अनेकों बिन्दुओं पर केंद्रित विगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी 18 वाॅ  #पांच दिवसीय केन्द्रीय कोया पुनेम व संवैधानिक जागरूकता कार्यशाला रखी गई है । प्रशिक्षण के दौरान गोटुल ऐजुकेशन सिस्टम की तरह अनुशासित ढंग से हमारे देश भर से आऐ विषय विशेषज्ञों- मांझी (माजी) -मुखियाओं-पेनो -पुजारियों-रिसर्चरों-भूमकाओ(बूमका)- आदि के द्वारा "प्रशिक्षक ही प्रशिक्षु और प्रशिक्षु ही प्रशिक्षक " की भावना लिए हुए.... आप सभी की सहभागिता के साथ आयोजित किया जाएगा। 

वर्तमान में हमारे समुदाय के साथ ही पृथ्वी पर प्रकृति और मानव का जीवन संकटग्रस्त स्थिति में पहुंच गया है इसलिए प्रकृति #पुनेम के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले सगाजन जरूर भाग ले !ताकि हम सब मिलकर..... 

          #शोषणमुक्त - कर्जमुक्त - आडम्बरमुक्त - भयमुक्त ,रोजगारयुक्त - आत्मनिर्भर - स्वावलंबी - आत्मविश्वास से लबरेज पुनेमी समुदाय का निर्माण कर सके! 

👉 #KBKS_टीम के विभिन्न विंग :- 

(1) पर्यावरण विंग

(2) ब्लड डोनर विंग एंड हेल्थ विंग

(3) लीगल एड विंग

(4) इकोनॉमिक् एन्ड सेल्फ एनफ्लोयमेंट विंग

(5) एजुकेशन एन्ड एम्प्लॉयमेंट विंग

(6) पुनेम मांझी विंग

(7) एग्रीकल्चर डेवलपिंग विंग

(8) गोत्र रक्षा विंग

(9) डिस्कवरी एन्ड प्रदर्शनी विंग

(10) स्पोर्ट्स विंग


 • 👉विशिष्ट टीप :-

(1) साल वनों से आछन्दित क्षेत्र होने के कारण प्रशिक्षण स्थल पर बहुत अधिक ठण्ड रहती है इसलिए अपने साथ ओढने बिछाने व गर्म कपड़े जरूर साथ लेकर आऐ ।

(2) प्रशिक्षु लया लयोरो को अपने पास (प्रवेश कार्ड) के साथ दिनांक 23 दिसंबर को दोपहर 2 बजे तक पहुचना अनिवार्य है ।

(3) लयोरो को सदियों से चली आ रही पारम्परिक सफेद पगड़ी व लयाओ को सफेद स्कार्फ पहनकर आना अनिवार्य है।

(4) यथासंभव सभी अपने पांरम्परिक वेशभूषा,गोटुल श्रृगांर वाद्ययंत्रो के साथ आवें।

(5) प्रशिक्षण स्थल पर पॉलिथीन व प्लास्टिक से बनी सामग्रियाँ प्रतिबंधित है ।इसलिए सभी परीक्षार्थी अपने अपने लिए 5 दिनों के लिए दोना पत्तल लेके आवें।

(6) प्रशिक्षण शिविर में आने की जानकारी अपने परिजनों व स्थानीय समाज प्रमुखों/मुडादार को जरूर देकर आवें तथा साथ मे समाज प्रमुखों (मुड़ा अध्यक्ष, ब्लॉक अध्यक्ष, जिला अध्यक्ष) के लेटर पेड में कार्यक्रम में आने की जानकारी व हस्ताक्षर करा अनिवार्यता लावें।

(7) प्रशिक्षणार्थी लया लयोरो को दिनांक 27 दिसंबर को पेन विदा रश्म तक रूकना अनिवार्य है।

(8) चूंकि प्रशिक्षण स्थल पर बस्तर संभाग व क्षेत्र के प्रमुख पेन शक्तियाँ भी आमंत्रित की गई है अतः प्रशिक्षणार्थियो को पेन नियमों का परिपालन करना अनिवार्य है ।

(9) प्रशिक्षण स्थल पर नशा पान पूर्णतः वर्जित है। यदि ऐसा करते पाया गया तो   गोटुल दण्ड के भागीदारी होंगे।

(10) लया-लयोरो  को प्रतिदिन होने वाले  सभी सत्रो मे उपस्थित रहना अनिवार्य है क्योंकि भोजन/नाश्ते/स्नान /शयन  जैसे अवकाश सत्र में भी पारम्परिक आदिवासी कोयतोरियन जीवनशैली को प्रायोगिक ढंग से समझाने की कोशिश की गई है।

(11) लया लयोरो को कार्यक्रम व्यास्थापन संचालन हेतु अलग जिम्मेदारी भी  निर्वहन करनी होगी जिससे उनमें नेतृत्व क्षमता विकसित हो सके।

(12) प्रशिक्षार्थी लया लयोरो का पंजीयन उनके नाम पिता का नाम /टोटम /गोत्र /पता / रूचिकर विषय आदि दर्शाते हुए दिऐ गए सम्पर्क /वाटसअप नम्बरो पर भेजे दिनांक 15 दिसंबर 2021 तक अनिवार्य रूप से कराऐ। पंजीयन शुल्क 100 रूपये व 3 किलो चांवल या 50 ₹  बुमकाल मांदी हेतु निर्धारित है ।

(13) प्रशिक्षण स्थल पर मोबाइल फोन सांयलेन्ट मोड/बन्द की स्थिति पर रखनी होगी।

(14) प्रशिक्षण स्थल पर अपनो से बड़ो का आदर करते हुए अनुशासन बनाऐ रखना होगा , अन्यथा गोटुल दण्ड का सामना करना पड सकता है।

(16)किसी भी राजनीतिक दल के नारे /सिम्बोल/चिन्ह/ड्रेस प्रयोग करना सक्त प्रतिबंध है ।


संपर्क नम्बर :- +91 62649 05127, +91 75878 76005, 7770809305, 7000669626, +91 84353 33236,


टीप :- परीक्षार्थी ध्यान रखें कि यदि आपके जिले के पंजीयन अप्रूवल प्रभारी को जानते अथवा  पहचानते हैं तब ही आप का पंजीयन सम्भव है क्योंकि प्रभारियों के माध्यम से ही पंजीयन होना है। अन्यथा हमे खेद होगी।

KBKS Central Training

 

पेसा के 25 साल (रजत जयंती वर्ष) पर

 राष्ट्रीय कार्यशाला

 (थीम- पर्यावरण व ग्राम सभा सशक्तिकरण )

रायपुर -: पेसा अधिनियम 1996 के 25 वर्ष होने एवं वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के 15 वर्ष होने के उपलक्ष्य में छत्तीसगढ़ राज्य आदिम संस्कृति,कला एवं साहित्य परिषद् तथा सर्व आदिवासी समाज (युवा प्रभाग), केबीकेएस द्वारा राष्ट्रीय कार्यशाला /सम्मेलन का आयोजन दिनांक 23 से 27 दिसम्बर 2021 को ग्राम बोरई, विकासखंड नगरी, जिला धमतरी छत्तीसगढ़ में किया जा रहा है.

पेसा अधिनियम के रजत जयंती वर्ष पर आयोजित होने वाले इस राष्ट्रीय सम्मेलन के बारे में संयोजक अश्विनी कांगे, अध्यक्ष ललित नरेटी एवं सचिव संदीप सलाम ने बताया कि सम्मेलन में असम, राजस्थान, गुजरात, झारखंड, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, उत्तरप्रदेश एवं मध्यप्रदेश के साथ ही छत्तीसगढ़ के सभी जिलों के आदिवासी समाज के प्रतिनिधि बड़ी संख्या में उपस्थित रहेंगे.

सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य पिछले 25 साल में पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में पेसा अधिनियम के अनुरूप ग्राम सभा एवं पंचायतों को दिए गए अधिकारों को समझना एवं उसे जमीनी स्तर पर क्रियान्वित करने की योजना बनाना है, इस हेतु अलग-अलग सत्रों में पेसा के विभिन्न प्रावधानों पर चर्चा की जाएगी साथ ही पेसा कानून बनने के पश्चात् अनुसूचित क्षेत्र में लागू अन्य कानूनों पर बदलाव तथा पेसा के अनुरूप किये गये संशोधन पर चर्चा एवं वर्तमान समय में पेसा क्रियान्वयन की स्थिति पर विमर्श किया जावेगा। इन विषयों पर चर्चा परिचर्चा करने के लिए देश के नामी विषय विशेषज्ञ उपस्थित रहेंगे।

  वन अधिकार मान्यता कानून 2006 के 15 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में इस राष्ट्रीय सम्मेलन में वन अधिकार कानून 2006 के तहत मान्य अलग-अलग प्रकार के सामुदायिक अधिकार, सामुदायिक वन हक तथा व्यक्तिगत अधिकार और पर्यावास के अधिकार को क्रियान्वित करने के लिए ढांचा बनाने के लिए विचार विमर्श किया जायेगा तथा जमीनी स्तर पर इस कानून के क्रियान्वयन हेतु आने वाली समस्याओं पर भी विस्तारपूर्वक चर्चा की जावेगी।

इस सम्मेलन में पेसा अधिनियम और वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन में सहभागिता निभाने वाले विभिन्न विभागों / जिला के प्रशासनिक अधिकारियों को भी आमंत्रित किया गया है जिनके माध्यम से इन विषयों पर विस्तृत चर्चा की जावेगी।

अनुसूचित क्षेत्र में लागू पेसा की मूल भावना को ध्यान में रखते हुए यह राष्ट्रीय सम्मेलन पूर्णतः पारंपरिक रुढ़ीगत ढंग से संचालित होगा, समस्त गतिविधि गोंडवाना समाज सेवा समिति नगरी जिला धमतरी छत्तीसगढ़ के नेतृत्व में आयोजित होगा।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे:

संदीप सलाम: 75878-76005 / 87704-76009

अश्वनी कांगे: 70007-05692 / 94063 - 61986