KBKS के विचार धारा से आप अनभिज्ञ है ऐसा मैं नहीं मानता। क्योंकि यह जो जन सैलाब है, दो खास विचार धारा सुनने के लिए आयें हैं, और खास करके नगरी विकासखंड जहाँ हम बहुत पहले से लगभग 2005-06 से काम कर रहे हैं। ये एक ऐसा विकासखंड है जिसको आगे अपने वक्तव्य में अपनी बात रखूंगा, यह विकासखंड जिसमें एशिया का सबसे बड़ा बायोडायवर्सिटी वाला जंगल है।
मैं अपनी बात जिसमें *जल -जंगल-जमीन पर केंद्रित* करते हुए रखूंगा। आज जिसके लिए उपस्थिति हुए हैं *विश्व आदिवासी दिवस* के अवसर पर मैं थोड़ा सा बताना चाहता हूं कि *विश्व आदिवासी दिवस* पर।
इस दुनिया में *यूएनओ* ने इसको मनाने पर क्यों सोचा? इस बात को आप सभी को जानना चाहिए। केवल आदिवासी ही नहीं अपितु पूरे जन समुदाय को समझना चाहिए । ऐसा अवसर हमें क्यों मिला ? किसी समुदाय विशेष के लिए इस दुनिया ने सोचा. 193 देशों ने सोचा। *संयुक्त राष्ट्र संघ* ने सोचा, कि दुनिया मे आदिवासी अपनी विशेष प्रकार के कई संस्कारों से, उनके जीवन संरक्षण, जीवन पद्धति, जीवन शैली के साथ में जीवन यापन करते हैं। उनको कैसे अच्छा बनाए रखें। उन उद्देश्यों को लेकर के, खास करके दुनिया की आदिवासी अधिकारों को बढ़ावा देना और उसकी अधिकारों की रक्षा करना और उनकी योगदान को स्वीकार करना, उनके योगदान को निरंतर बनाये रखना। जिन्होंने आज तक निरंतर उन परम्पराओं को वर्तमान में बोले तो 2022 में जिस प्रकार से हम जिंदगी जी रहे हैं उस स्थित तक पहुँचाये हैं ।
आप सब देखते होंगे, पिछले 2 सालों में कोरोना का काल था जिस तरीके से वैश्विक महामारी ने पूरे दुनिया को घेरा यह नगरी भी अछूता नहीं था या छत्तीसगढ़ या भारत भी अछूता नहीं था। हम उस पर चर्चा करेंगे आने वाले समय में। लेकिन मैं थोड़ा से विश्व आदिवासी दिवस पर *विश्व आदिवासी दिवस* की बात करना चाहता हूं. 1982 में आदिवासी आबादी को लेकर के संयुक्त राष्ट्र संघ की एक वर्किंग ग्रुप बना था उनका पहला मीटिंग हुआ था, उस मीटिंग को लेकर के आगे उनकी 1994 में इसकी घोषणा किया गया की आदिवासी अधिकारों को लेकर के, आदिवासी संस्कृति को लेकर के, आदिवासी सभ्यता को लेकर के, उनके अधिकार को संरक्षण करने के लिए हम प्रतिवर्ष 9 अगस्त मतलब आज के दिन उसको वैश्विक रूप से मनाएंगे। सालाना यह आयोजन होगा अपने अलग-अलग स्तरों पे।
वह किसके लिए? सामाजिक, संस्कृति, धार्मिक, आर्थिक, कानूनी व राजनीतिक इन विषयों को लेकर के सबको कैसे बरकरार रखा जाए करके, उसको कैसे संरक्षण किया जाए, इस बात को लेकर के रखा गया। मैं थोड़ा से यह बात भी बताना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से, इस दुनिया के 193 देशों में से 90 ऐसे देश है जिसमें 476 मिलियन आदिवासी रहते हैं, और दुनिया के जनसँख्या के 6.2% लगभग आबादी का हिस्सा है , जो दुनिया को एक सीख देते हैं दुनिया को एक परंपरा के साथ उनके रीति नीति के साथ चलने का आह्वान करते हैं और दूसरों को सीख देते हैं।
और देखते हैं कि 80% से ज्यादा जैव विविधता जहां सुरक्षित है वहां केवल आदिवासी रहते हैं। जहां आदिवासी है वहां बायोडायवर्सिटी दिखेगा। आप शहरों में ढूंढ लेंगे शहरों में नहीं मिलेगा। और वैसे ही आप देखते हैं 90% से ज्यादा बायो डायवर्सिटी के तंत्र हैं एक दूसरे के जीव परस्पर सह जीविता जीने की कला है, 90% एरिया आदिवासी क्षेत्र में मिलता है यह जो छोटा मोटा आंकड़ा नही है, जो इस मंच के जरिए आपको बताना चाहता हूँ यह एक अद्भुत आंकड़ा है इस बात को आप सब को समझना चाहिए। पूरी दुनिया की बात करें उस जगह में जाएंगे तो आपको इन निवाह नई मिलेगा थोड़ा और आगे जाएंगे धुर्वा है दुरला है, हल्बी है, गोंड़ी है, खुडूक हैं, अपने अपने आदिवासी समुदाय में बोली भाषा है। इस दुनिया में बहुत सारे देश हैं जो आज के दिन ये दिवस मना रहे होंगे, जैसे आज के दिन हम अभी नगरी में बैठ के इस आयोजन में हम शरीक हुए हैं इसके गवाह बने हैं वैसे ही हैं दुनिया में लोग आज 9 अगस्त के दिन *विश्व आदिवासी दिवस* मना रहे हैं। कहीं ना कहीं मैं जिन बातों को बोल रहा हूं *उनके संरक्षण के लिए हमें संकल्प लेना पड़ेगा*।
यदि इसी को जो दुनिया के बारे में बात किया, भारत के बारे में बात करूं तो भारत में 104 मिलियन आदिवासी रहते हैं जो अपनी संस्कृति सभ्यता के संरक्षण को लेकर के पूरे भारत में जो अपनी पीढ़ी को सोपते जा रहे हैं और इनकी आबादी लगभग 8.6 प्रतिशत है जो देश को सिखाती है कैसे उनका जीवन दर्शन है पूरे इंडिया की बात करूं तो सबसे ज्यादा 65 जनजाति समूह है जिसे उड़ीसा में हैं और हमारे छत्तीसगढ़ में 42 जनजाति हैं जिसमें आप सभी सम्मिलित हैं । जैसे आप सभी बैठे हैं मैं जिसको बात कर रहा हूं चाहे गोंड हो, उरांव हो, हल्बा हो, कवंर हो, यंहा इतनी जनजाति समूह है वह सब मिलकर के अपने अपने एरिया में *जल जंगल जमीन* को कैसे संरक्षण करते संवर्धन करके रखें, उस पर निरंतर काम करते रहते हैं।
और यह जरूरी नहीं है कि हम 365 दिन में केवल 9 अगस्त आएगा और उसी दिन हम संकल्प लें और उस दिन शपथ लें और संकल्प करें कि आगे आने वाली पीढ़ी को क्या देने वाले हैं यह सही नहीं है। मैं आपको बताना चाहता हूं जो आदिवासी कौम के जितने भी सारे सगा बंधु हैं वे साल भर ये काम करते हैं, जिसमें आपके जितना पंडूम हैं, पर्व है, त्यौहार है, जिसमें आप सारे अपने जीवन दर्शन, को देखते हैं जिसमें आप अपनी जीवनशैली को देखते हैं चाहे आप हरेली को देखेंगे जिसमें आपको जंगल से दिखेगा आप पोला को देखेंगे जंगल से दिखेगा चाहे। आप आदिवासी पंडुम को उठाकर देख लीजिए जल जंगल जमीन से आप बाहर नहीं हैं इस बात को यदि मान ले तो आप जल जंगल जमीन से बाहर के नहीं हैं आपको कभी शहरों में रख दिया जाए या आपको शहरों में रहने के लिए छोड़ दिया जाएगा तो आप मानिए, आपको ग्रामसभा है गांव हैं इस मैं इस बात को कहना चाहता हूं इस मंच पर मंचासीन अतिथि और मंच को भी आग्रह करना चाहता हूं आज विकास के दौर में इस आपाधापी के दौड़ में हम जो *आत्मनिर्भरता का इकाई* है आप मानते हैं ओ आत्मनिर्भरता का इकाई कौन है मैं बताना चाहूंगा इस मंच के माध्यम से आत्मनिर्भरता का इकाई *ग्रामसभा* है। गांव हैं । आज विकास की आपाधापी की दौड़ में उन गांव में आत्मनिर्भरता की इकाई को छोड़ कर के शहरों की ओर दौड़ रहे हैं। आपको मैं बताना चाहता हूं की यदि गांव में आत्मनिर्भरता की इकाई है तो इस बात को बोल रहा हूँ इसका मतलब समझना एक गांव एक ब्यक्ति गांव में एक महीना या 2-3 महीना छोड़ दिया जाय वह जिंदा रह सकता है लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूँ यदि वही ब्यक्ति को आप रायपुर,मुबई,दिल्ली में छोड़ दे । क्या वह जिंदगी जी सकता है ? आप बोलेंगे नही। क्यो? क्योंकि वह बाजार वाद को सीखता है। क्यो? वह पूंजीवाद को सिखाता है। और जो आदिवासी कौम है याद रखेगा इसलिए आत्मनिर्भर है एक दूसरे के ऊपर समन्वय बीठाकर परस्पर जिंदगी जीते हैं । वह कभी पूंजीवाद या बाजार वाद व्यवस्था की ओर नहीं लेकर जाता। याद रखिएगा और इसी व्यवस्था को इस देश ने स्वतंत्र भारत में आगे बढ़ा रहा है।
मुझे पेसा के बारे में बोलने कहा गया है मैं पेसा के बारे में आपको बताना चाहता हूं इस देश में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 90 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए, दो बड़े बदलाव कौन से हैं? दो बड़े बदलाव में से पहला उदारीकरण नीति है जो 90 के दशक में लाया गया। इस देश में एक और बदलाव हुआ, दूसरा सत्ता का विकेंद्रीकरण (पावर का डिसेंट्रिलिशन ) और जिस दिन सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ उस दिन पूरे संविधान में संशोधन किया गया। यह आप सब को समझना चाहिए सविधान के ऊपर यहां कोई नहीं है चाहे आम जनता हो, चाहे कोई बड़ा अधिकारी हो या चाहे कोई बड़े राजनेता हो।
और उस दिन सत्ता का विकेंद्रीकरण करते हुए सविधान में 73 वा संशोधन करते हुए 1992 में *त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था* को जगह दी गई। बिल्कुल ध्यान से सुनिएगा इस बात को क्योंकि आज 9 अगस्त है मैं *आज आपको स्वशासन की इकाई के बारे में बताने आया हूं* वह स्वशासन की इकाई कैसे चलने वाला है आप को समझना चाहिए। जब संविधान संशोधन किया जा रहा था संसद में डिबेट चल रहा था और उसके विचार विमर्श करने के बाद जब 73 संशोधन को संविधान भाग 9 में जोड़ा गया, तो आपको जानना चाहिए वहां एक शब्द आया *ग्रामसभा* करके। वह ग्रामसभा पहले के सविधान में नही दिखेगा 73 संशोधन के पहले 1990 के पहले में नहीं था और वही ग्राम सभा जिसमें आप सभी मेंबर हैं कि आप अपने अपने गांव में *ग्राम सभा* का सदस्य हैं जहां आप वोट देकर के विधायक बनाते हैं सांसद बनाते हैं, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, सरपंच के लिए चुनाव करते हैं वह ग्रामसभा है जिसका आप मेंबर है। उसके बारे में उसके अधिकार के बारे में आपको जानना होगा। इसलिए मुझे इस मंच में आज बुलाया गया है और मैं वो बताने वाला हूं, यहां जब त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को जगह दी गई और सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया इसका मतलब समझना कि, संसद ने कहा मेरे पावर को डिसेंट्रीलाइज कर रहा हूं। इसका मतलब समझना जो निर्णय हम रहे हैं, वो निर्णय आप ले सकते हैं हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। इसका मतलब क्या होता है? और ऐसा है तो जब ग्राम सभाओं में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्थाओं को जगह दी गई , मैं बताना चाहता हूं कि उनके लिए ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ा गया। *सविधान मे ग्यारहवीं अनुसूची* जोड़ते हुए उनके 29 विषय को आप को दिया गया। गांव को दिया गया ।गांव डिवहार को दिया गया। उस विषय में देखेंगे सड़क है, पानी है, बिजली है, स्वास्थ्य है, शिक्षा है, जो संचार हैं, आपकी रोजगार की बात है, ऐसे टोटल 29 विषय हैं। जो 29 विषय गांव को दिया गया, त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्थाओं को दी गई और कहा गया कि आप अपने गांव में अपने विकास की गाथा लिख सकते हैं। आप अपना निर्णय खुद ले हमें उससे कोई आपत्ति नहीं होगी। आप इसीलिए देखते होगें । यदि सभी नगरी ब्लाक के आए होंगे तो सभी लोग अपने अपने गांव के ग्राम सभा के मेंबर हैं जब तक कि आप कोई निर्णय नहीं लेंगे सरकार भी आप के खिलाफ कुछ भी नहीं लेगी सरकार शासन प्रशासन आपसे कहीं ना कहीं कागज में अनुमोदन मांगता है। उसका मतलब समझना है , आप सब उस संसाधन की इकाई अहम अंग है। आपके बगैर कुछ लोग नहीं कर सकते।
कि ऐसा सविधान ने कहा है जिस दिन सत्ता सत्ता के केंद्रीकरण हुआ उस दिन आप सबको विषय दिए गए उसका निर्णय आप सबको लेना है करके यह अच्छी बात है।
लेकिन कितने लोगों को पता है? यह अच्छी बात है क्या नगरी में लागू हो सकता है? मैं बताना चाहता हूं यह व्यवस्था नगरी में लागू नहीं हो सकता । इसका मतलब मैं समझ रहा हूं कि यहाँ जनपद पंचायत अध्यक्ष बैठे हुए हैं बहुत सारे सरपंच, पंच, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य होंगे। आप सबको याद होंगा जो व्यवस्था यहाँ पे लागू नहीं हो सकती।
इस मंच माध्यम से आपको बताना चाहता हूं तब आप बोलेंगे यहां पर जनपद का सदस्य, जनपद पंचायत अध्यक्ष बैठे हुए हैं सरपंच बैठे हैं कैसे हो गया। इस बात को आप सब को समझना चाहिए कि ओ क्यों हुआ?
अनु.*243m* सबको सविधान सीखने की जरूरत नई है संविधान के अनुच्छेदों को याद रखने की जरूरत नहीं है लेकिन व्यवस्था आपके लिए बनाया गया, व्यवस्था को आप को जानना जरूरी है। पंचायती व्यवस्था है जो अनुसूची 11 है वह पाँचवी अनुसूचि क्षेत्र में लागू नहीं होगी। नगरी ब्लॉक एक विशेष क्षेत्र में है जिसे आप पांचवी अनुसूची क्षेत्र कहते हैं जो पांचवी अनुसूची क्षेत्र है वहां पर पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं हो सकता। सीधा और सीधा लागू नहीं हो सकता। तो कैसे लागू होगा? संसद को पावर है यदि त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को मतलब पानी है,सड़क, बिजली है, आदि यह व्यवस्था यदि नगरी ब्लॉक मतलब पाँचवी अनुसूचि में देना है तो एक विशेष कानून लाएंगे।
वो 243m के 4 b में लिखा है और उसमें कहा है संसद को यदि यह व्यवस्था लागू करना है तो संशोधन और अपवाद के साथ ही लागू होगी। *अपवाद और उपांतरण* क्या है आपको पता है? बहुत कम लोगो को पता नही होगा। वह अपवाद उपांतरण के साथ कानून लाया गया है वह कानून का नाम है *पेसा*।
मैं थोड़ा हाथ खड़े करके जानना चाहता हूं कितने लोग सुने है *पेसा कानून* करके। बहुत कम लोग सुने है कितने वोट देते हैं हाथ खड़े करेंगे। कितने लोग हैं जो सरपंच चुनाव करते है जिसमे वोट देते हैं बहुत सारे लोग अभी भी कन्फ्यूजन है पेसा क्या बला की चीज है ? आपको समझना चाहिये नगरी में OBC समाज का आंदोलन, कोंडागांव, चारामा आदि में हुआ।मैं आप सबको बताना चाहता हूं *अपवाद और उपांतरण 243M b के तहत लाया गया कानून है उस कानून के नाम पेसा है।
आप नहीं चाहते? कि आप के क्षेत्र में पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा की सुविधा चाहिए? लेकिन आप बोलेंगे- हमे सुविधा चाहिए। यदि आपको सुविधा चाहिए तो पेसा कानून भी चाहिए। अगर पेसा नहीं होता तो आपके सरपंच न होते, न तो जिला पंचायत सदस्य ना जनपद सदस्य होते हैं। इस बात को आप सबको समझना चाहिए। बहुत सारे लोगों को गुमराह करके रखा गया है कई संगठनों के माध्यम से पेसा आएगा तो ओबीसी लोगों को हानि होगा, पेसा आएगा तो आदिवासी लोगों का विकास होगा।
आपको मैं बताना चाहता हूं इस प्रदेश का जन्म नहीं हुआ था छत्तीसगढ़ का जन्म तो 2000 में हुआ। छत्तीसगढ़ का जन्म नहीं हुआ था तो मध्य प्रदेश के जमाने में 1996 में इस प्रदेश में पेसा लागू हुआ। उसमें से जिसमें यह नगरी ब्लाक भी शामिल है। नगरी ब्लाक में भी उस दिन से पेसा चालू हुआ। उस दिन से आप सरपंच चुनाव करना चालू कर दिए, जिस दिन आप सरपंच चुनाव चालू कर दिए उस दिन से पेसा लागू हो गया। लेकिन अभी जो छत्तीसगढ़ कर रही है वह क्या है? यदि अगर आप बोलेंगे तो वह केवल पेसा कानून का एक नियम मात्र है। नियम पहले भी थे वह नियम पेसा के हिसाब से नहीं था। जितने भी इस क्षेत्र में विद्यमान प्रवृत्त विधियां रही है उन विधियों में छोटे-छोटे संशोधन और अपवाद के साथ में आगे बढ़ाये गए ।
आप देखे होंगे आबकारी अधिनियम के तहत में बहुत सारे लोगों को पता होगा आदिवासी लोगो को कितना शराब का छूट है? कोई बता पाएंगे? आप बोलेंगे 5 लीटर छूट है वह पेसा की देन है। आप बोलेंगे 170 ख कहा था जिनमे आदिवासियों का जमीन वापस किया जाता है यदि नान ट्राईबल अगर छल कपट से ले लिया है, छीन लिया है, तो वह वापस हो जाता हैं , नगरी में यह व्यवस्था है। मैं आपको बताना चाहता हूं पेसा में उस विभाग में sdm होता है पहले एसडीएम सुनवाई करते थे उस व्यक्ति का पेसी में पेसी बुलाया जाता था पेसी होने के बाद एसडीएम देखता था सही है कि नहीं है। उसके बाद वो जमीन मूल वारिश को हो जाता था। लेकिन पेसा के कारण संशोधन किया गया भू राजस्व संहिता 1959 में 170 ख में 2(क) जोड़ा गया। सबको याद रखना चाहिए जमीन की मालिक आप है और आजकल जमीन के बारे में आपको इस कानून को जानना जरूरी हो जाएगा, इसलिए 1959 धारा 170 का 2 (क) जोड़ा गया और जोड़ते हुए पेसा ने कहा पावर देते हुये ग्राम सभाओं को सक्षम इकाई के रूप में आपको निर्णय लेने का अधिकार दिया गया। यदि जिस दिन ग्रामसभा यह निर्णय ले लेती है की मूल वारिस किसका है और किसको देना है उनको केवल अनुभाग अधिकारी SDM कब्जा दिलायेगा । राजस्व विभाग केवल उनको कब्जा दिलाने का काम करेगा। इस बात को बहुत सारे लोगों को जानकारी नहीं है।
इसी तरीके से जब पेसा की बात करेंगे बहुत सारे लोगों में दिग्भ्रमित करने बात आई है पिछले दो-तीन सालों में उनको यह कहा जाता है पेसा आएगा तो ओबीसी को उसमें जगह नहीं दिया जाएगा। मैं इस मंच के माध्यम से पूरे छत्तीसगढ़ वासियों के लिए कहना चाहता हूं की पेसा में ओबीसी को जितना जगह दिया गया है। मैं इस मंच के दावा करता हूं अगर ओबीसी समाज के सभी बंधुओं इस मंच पर मंचासीन हैं तो आपको अगर कोई कानून 25% से ज्यादा आरक्षण देता होगा वह कानून पेसा है। इस बात को आप को जानना चाहिए। हमारे आदिवासी समुदाय के कौम के लोगों को भी जानना चाहिए। पांचवी अनुसूची क्षेत्र इसलिए है नहीं तो छठी अनुसूची हो जाता। क्योंकि नगरी ब्लॉक में आदिवासी की जनसंख्या 50% से ज्यादा है इसलिए यहां पांचवी अनुसूची क्षेत्र है पांचवी अनुसूची क्षेत्र में हमारे गांव में पूरे 12 बानी बिरादरी के लोग निवास करते हैं जिसमें अपना धर्म,संस्कृति है, वेशभूषा पहनावा है अपने जाति धर्म मानने और अपने अपने अनुसार रोटी बेटी का व्यवस्था करने का अधिकार है इस व्यवस्था को पेसा में अधिकार दिया।
और पेसा की बात करेंगे तो पंचायती राज कानून 129 ङ. देखेंगे में देखेंगे तो ओबीसी के लिए आरक्षण अधिकार दिया गया है मैं इस मंच के माध्यम से पूरे मंच को बताना चाहता हूं कि आप आरक्षण को कैसे समझते हैं पेशा ने कहा कि 50 से आधा आदिवासियों का आरक्षण कम नहीं होगा मतलब 50 से कम नहीं हो सकता ऐसा कानून ने कहा बचे 50% 51 से लेकर के75 तक जो आरक्षण है हव sc के लिए है मैं पूछना चाहता हूं नगरी में इससे भी गांव से लोग आए हैं sc का जो प्रतिशत है कहीं ना कहीं गांव में बोलेंगे शेड्यूल ग्राम में बोलेंगे 3 प्रतिशत ही होगा तो तो बचे कौन वह ओबीसी समुदाय जो गांव में बसे हैं निवास करते हैं 51 से लेकर 75% तक ओबीसी को जाता है आप किसी भी पंचायत बॉडी जनपत को उठा कर देख लीजिए जिला पंचायत व्यवस्था को उठाकर देख लीजिए आपको मिलेगा लोगों को भ्रमित किया जा रहा है लोगों को भ्रमित किया जा रहा है पेशा कानून आएगा तो आपके अधिकारों का हनन होगा आपके कोई हनन नहीं होगा आपको व्यवस्था देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार आगे बढ़ रहा है मैं धन्यवाद देना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से छत्तीसगढ़ सरकार को पैसा के नियम को लेकर के 1997 में बन जाना चाहिए थे लेकिन उसने कभी सोच नहीं बनाया था आप जैसे लोग समाज के उनके इतनी जानकारी साथी हैं उसने बीड़ा उठाया छत्तीसगढ़ सरकार को वापस ड्राफ्ट दिया सर सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले ड्राप्ट दिया और सरकार ने स्वीकारा और पेपर में भी पड़ा है जनजाति सलाहकार परिषद में भी और कैबिनेट में भी बर्खास्त कर दिया आपको आने वाले दिनों में आपके स्वास आसन की इकाई के लिए एक बेहतरीन नियम आपके हाथों में आएगा आप सोच लीजिए 25 सालों से बिना नियम के चला रहे हैं दूसरा के साथ जिंदगी जीते आ रहे हैं क्या हुआ नियम आने के बाद उसको छोड़ दिया जाएगा ऐसा कतई नहीं आप को समझना होगा की आपके कान में कोई दूसरा व्यक्ति है जो आप को भड़का रहा है ओबीसी समाज के साइड से आदिवासी समाज साइट् से अगर कहीं भी भ्रमित करने वाली बात हो तो मेरा फोन नंबर है मेरा साथी है आपको क्रियलिटी कर दूंगा मैं इस बात को कह रहा हूं कि छत्तीसगढ़ के पेशा मैं अध्ययन कर रहे थे तब हम पूरे देश के अध्ययन करने का अवसर मिला इस देश में जितनी मध्य भारत राज्य में जहां अनुसूचित जनजाति क्षेत्र आदिवासी क्षेत्र हैं 10 राज्य हैं जिसको आप बोलते हैं पांचवी अनुसूची क्षेत्र है जैसे आप बोलते हैं नगरी पांचवी अनुसूची क्षेत्र है वैसे मानपुर ब्लॉक है डौंडी ब्लाक है पूरे बस्तर संभाग है वैसे आपका सरगुजा संभाग है के इन एरियाओं के त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के लिए विशेष प्रधान की गया है और इसी के साथ आप देखते होंगे जितने भी सारे सरपंच हैं वह केवल आदिवासी बनी हुई हैं अब यह आदिवासी क्यों बने हैं इस बात को लेकर प्रश्न अपने आपको आता होगा क्यों बनना चाहिए यदि मैंने कहा तो 50% से कम नहीं हो सकता तो उसका आरक्षण है आदिवासी तो हो ही जाता है इसलिए देखेंगे सरपंच आदिवासी है जनपद अध्यक्ष आदिवासी हैं जिला पंचायत आदिवासी है और यह पेशा के कारण है जिस दिन आप पैसा को बोलेंगे यह कानून हमारे लिए गड़बड़ है पेशावापस कीजिए बोलोगे तो ग्यारहवीं अनुसूची इस एरिया में संचालित करने के लिए कोई ऐसा कानून नहीं है वही व्यवस्था है जो 11वीं अनुसूची लाभ होता है वह पेशा है मुझे लगता है कि पेशा इतना बाद रखता हूंइसको बात करूंगा तो मंचासीन मंच है इसको भी सुनना है जानना चाहेंगे आपके अनुभवों को मुख आगरा करना चाहेंगे मैं जो दूसरी बात कहना चाहता हूं हम पूरे दुनिया के लोग जैसे हम भी शामिल है आप भी शामिल है मैं नगरी की बात नहीं छत्तीसगढ़िया केवल भारत की बात नहीं कर रहा हूं हम दुनिया के लोग जो आदिवासी गांव से हैं आप दुनिया को जल जंगल जमीन देते हैं क्या देते हैं जल जंगल जमीन है मैं इस बात के ऊपर बोलता हूं कि आप समझना क्योंकि आप मचंदूर से लेकर के नगरी से लेकर के मानपुर मौला से लेकर के कोलकाता जाएंगे तो जंगल ही मिलेग सरगुजा की बेल्ट में जाएंगे तो आपको जंगल ही मिलेगा जंगल वही मिलेगा जहां आदिवासी लोग रहते हैं जंगल कहां मिलेगा जंगल वाहन मिलेगा जहां आदिवासी की आबादी है वरना रायपुर में तो जंगल सफारी दिखाने वाला जंगल मिलेंगे अब आप सोचते होंगे कि वह जंगल क्यों हैं ओ जंगल क्यों हैं आप इस बात को समझना चाहिए यदि आप गोंड हैं गोंड जनजाति में पैदा लिए हैं 11 को नहीं हो सकता चाहे उराव हो या संतान हो एक जाति का उदाहरण दे रहा हूं यदि आप गोंड जाति से हैं तो गोंड जनजाति कोयतुरीन टेक्नोलॉजी से चलता है कोयतुरीन टेक्नोलॉजी क्या होता है आपको इस बात 9 के दिन आपको समझना चाहिये सीखने का अवसर है अब यहां आ कर के वापस जाने का दिन नहीं है आपको चिंतन करना चाहिए यदि आप गोंड हैं गोंड जनजाति से हैं आप कोई तो कोयतुरीन व्यवस्था से संचालित होते हैं
यह व्यवस्था केवल गोंड के लिए नहीं है यह व्यवस्था पूरे आदिवासीयों की ब्यवस्था है कोयतोरीन व्यवस्था है । आदिवासी पूरा टोटम व्यवस्था से संचालित होते हैं यदि आप टोटम व्यवस्था से संचालित होते हैं तो किसी से भी पूछ लीजिए, आपके पड़ोसी जो अगल-बगल में बैठे हैं आप एक जीव, एक जंतु और एक पेड़ को कभी जिंदगी में न ही उसको मारेंगे, न ही काटेंगे और न ही खाएंगे। अभी यह व्यवस्था है कि नहीं मैं जानना चाहता हूं आप हाथ खड़े करेंगे बतायें। आप जाने या ना जाने अपने पूर्वजों से यह सीख लिया है, यह सीख हम सब आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करते आ रहे हैं। आप ऐसे में सोच सकते हैं कि वह जंगल पूरा कट सकता है? एक गांव ऐसे रहेगा पूरा समुदाय एक पेड़ को कभी जिंदगी में नहीं काटेगा। कोई सरई को नहीं कटेगा, कोई महुआ को नहीं काटेगा, कोई साजा वृक्ष को नही काटेगा, ऐसे ही अपने अपने गोत्र के एक एक पेड़ को नही काटेगा। इस तरीके से आप में कोई कछुआ को नहीं मारेगा, कोई बकरा, कोई सांप, तो कोई कछुआ इस प्रकार से कई ऐसे जीव जंतु है जिसको आप देव के रूप में मानते हैं। यह एक टोटम व्यवस्था है ऐसे में देखा जाए तो 750 गुणा 3 कुल 2250 पेड़ पौधे, जीव जंतु की रक्षा करते हैं, और यह दुनिया में है केवल छत्तीसगढ़ या नगरी की बात कर रहा हूं ऐसा कभी मत मानना। दुनिया में कहीं भी चले जाईए आप रिसर्च करिए, आप रिसर्च पेपर को पढ़िए, आपकी टोटम व्यवस्था पूरा सदियों से है जब वैज्ञानिक लोग इस शब्द को इज़ाद नहीं किये थे तब से हमारे पूरखों ने अपनी पारंपरिक ज्ञान का हस्तांतरण करते आ रहे हैं, वैसे ही जो आजो काको हैं आने वाली पीढ़ी को निरंतर अपनी पारंपरिक ज्ञान को हस्तांतरित करते आए हैं।
मैं आपको बताना चाहता हूं 9 अगस्त 2022 का थीम है संयुक्त राष्ट्र संघ ने जो हमको थीम दिया है। यह सबको पता होना चाहिए यह वही आजो काको का पारंम्परिक ज्ञान हैं जो पारंम्परिक ज्ञान है जो पीढ़ी के नाती पोती है आने वाली नाती पोती को हस्तांतरित करना चाहते हैं उनको ज्ञान आप देने वाले हैं यह व्यवस्था कैसे कायम होगी आप पूछेंगे तो मैं बताना चाहता हूं आज हमारे साथ में माननीय मुख्यमंत्री जी के कर कमलों से जो हमारा नगरी का कोर क्षेत्र हैं सीतानदी अभ्यारण क्षेत्र है उस क्षेत्र के सामुदायिक वन संसाधन का हक का दावा संयुक्त रुप से 3 गांव एक जंगल को क्लेम किये हैं, मतलब समझ रहे? मतलब मेरे जंगल जमीन में हम ही प्रबंधन करेंगे, आप इस बात को समझ रहे हैं। माननीय मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ सरकार को इस मंच से धन्यवाद देते हैं उन्होंने समझा और स्वीकार किया कि आदिवासियों को उनके *जल-जंगल-जमीन* से अलग नहीं कर सकते उनके प्रबंधन का अधिकार उनको देना होगा।
इसीलिए पिछले समय 2019 में जब दुगली में एक बड़ा कार्यक्रम हुआ था जबर्रा गॉव के लोग यहां आये हुए हैं आप सबको आगह करना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से कि छत्तीसगढ़ सरकार ने अहम पल था वहां जबर्रा में साढ़े तेरह हजार एकड़ जंगल गांव वालों को प्रबंधन का अधिकार देते हुये एक संदेश दिया कि इस देश मे छत्तीसगढ़ भी किसी से पीछे नहीं है।
हां क्यों नहीं है? क्योंकि मैं आपको बताना चाहता हूं यह आकड़ा आपके हाथ,आपके मुंह में होना चाहिए, जबान में होना चाहिए, पूरे देश भर में जो मध्य भारत में 10 राज्य में जहां पांचवी अनुसूची क्षेत्र लागू है उनके सबसे बड़ा भाई छत्तीसगढ़ है ।
ऐसा क्या चीज है सबसे बड़ा भाई छत्तीसगढ़ है? छत्तीसगढ़ का जो बेल्ट है मध्य छत्तीसगढ़ बोलेंगे वही केवल नान शेड्यूल एरिया है जहां पांचवी अनुसूची क्षेत्र लागू नहीं है । बाँकी पांचवी अनुसूची क्षेत्र सरगुजा से लेकर के सुकमा कोंटा तक जाएंगे पूरे 20 जिलों ( 14 जिला पूर्ण और 6 जिलों में आंशिक) में पांचवी अनुसूची क्षेत्र लागू है। वह पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ही पेसा लागू है और उन्हीं क्षेत्रों में ज्यादातर जंगल है। छत्तीसगढ़ सरकार ने मान लिया है दुर्ग, बेमेतरा रायपुर में तो जंगल ही नहीं है, इसका मतलब वहां जंगल सफारी जैसे जंगल बनाना जरूरी है।
आप जंगल सफारी बनाना चाहते हैं अपनी एरिया को? तो आप बोलेंगे नहीं .इसका मतलब आप के पास जो जंगल है उसे आप सुरक्षित, संवर्धित करना चाहते हैं उसे कैसे प्रबंधित करना चाहते हैं उस लाइन में आगे बढ़ईये। इसलिए हमने एक नारा दिया। एक मुहिम चलाया।
*एक कदम*
*गांव की ओर*
*ग्राम सभा सशक्तिकरण*
*अभियान*
और सारे लोग 9 अगस्त को, बहुत सारे युवा साथी इस मंच में, इस बीच में नहीं दिख रहे होंगे, वह लोग आज गांव की ओर गए हैं।
जो छत्तीसगढ़ सरकार कम हुई है सारे गांव में जो 12000 गांव में शेड्यूल एरिया के लगभग उन गांव में लगभग छत्तीसगढ़ सरकार 4000 गांव में सामुदायिक अधिकार दे पाई है उस मुहिम को आप पैसे लेकर जाएंगे इस मुहिम में एक कदम गांव की ओर अभियान पूरे प्रदेश में चल रहा है और हमारे साथी आज गांव में गए हैं और गांव में समुदायिक वन संसाधन के अधिकार के बात कर रहे हैं जिद्दी आप सामुदायिक वन संसाधन अधिकार का बात करेंगे उस दिन आपकी जैवविविधता को बचा रहे हैं आप समझ रहे होंगे कि क्या बोलना चाह रहा हूं एक लाइन में मैं आपको बोलता हूं थोड़ा समझ में आ जाएगा मैं इतना देर से बोल रहा हूं क्या समझ रहे हैं मुझे नहीं पता मैं 1,2, 3 बोलूंगा और सभी लोग आधा घंटा के लिए अपनी सांस रोक देंगे कितने लोग रुके यह पॉसिबल है क्या तो आप बोलेंगे मैं मर जाऊंगा आधा घंटा तक सांस नहीं रोक सकता कोरोना कॉल को किसी ने भुला है क्या हमारे दिग्गज नेता यहां बढ़ते थे सामाजिक नेता हम उनसे बिछड़ गए उनका आशीर्वाद हम को मिलता था हम उन से सीखते थे आपको जिस बात गहराई से कहता हूं उसे मत भूलिए कोई व्यक्ति बिना हवा के नहीं रह सकता यह अक्सीजन कहां मिलता है आपको पता है रायपुर में मिलता है क्या मुंबई में मिलते हैं दिल्ली में मिलता है क्या जो आप बोलेंगे दिल्ली में भी नहीं मिलता फैक्ट्री में मिलता है क्या आप अपनी आने वाली पीढ़ी को पीछे मैं लटकाने वाला ऑक्सीजन पसंद करेंगे क्या तो अब बोलेंगे नहीं तो कैसा वाला ऑक्सीजन लेना पसंद करेंगे जो आप का जंगल है वह आपका जीवन है आपका आने वाला पीढ़ी है उस पीढ़ी से आप व्यवस्था को मत बिगाड़ये इस बात को इस मंच के माध्यम से आप से आह्वान निवेदन करना चाहता हूं ओ जंगल की संरक्षण में आप अपना भागीदारी जिम्मेदारी निभाए जिस दिन आप जंगल का संरक्षण भागीदारी निभाते हैं आप पूरे जन समुदाय को ऑक्सीजन देने का काम करते हैं वरना तो सोचो कोरोना के समय में पैसा लेकर भागते थे ऑक्सीजन नहीं मिलता था मैं गलत बोल रहा हूं क्या आप पूंजीवाद की ओर भागेंगे, बाजार वाद ओर भागेंगे, तो जिंदगी नहीं जी पाएंगे। अगर वापस *एक कदम-गांव की ओर* जाएंगे तो आपको *एक कदम गांव की ओर* में आत्मनिर्भरता का इकाई मिलेगा, गाँव आत्म निर्भर है। चाहे कैसे भी करके अपने पड़ोसी 1 दिन का खाना दे सकता है वह खुद ना ओढे लेकिन आपको चादर ओढ़ने को देता है। खुद ना पढ़ें लेकिन दूसरा को जरूर पढ़ा सकता है। यह व्यवस्था गांव में काबीज है है गांव में मिलता है। गांव को छोड़कर हम बाजार वाद की ओर भाग रहे हैं आप कितने लोगों को पता है? बाजार वाद बार-बार बोल रहा हूं? वह वह कौन सा व्यवस्था है? जो आप बोलेंगे शहरीकरण आप बोलेंगे पूंजीवादी व्यवस्था को हमारे ऊपर लादना। यहां जिस प्रांगण में खड़े हैं यह नगर पंचायत का एरिया आता है यह जो नगर पंचायत है।
इस मंच के माध्यम से कहना चाहता हूं संविधान के मुताबिक यह संवैधानिक संस्था नही है नगर पंचायत यह असंवैधानिक संस्था है क्योंकि इस देश में नगरी में नगर पंचायत होना चाहिए करके इस देश में कहीं कानून नहीं बना कितनी बड़ी बात कहना चाहता हूं आपसे तो आप बोलेंगे नगर पंचायत तो हैं नगर पंचायत का अध्यक्ष बैठे हैं पार्षद बैठे हैं इस बात को समझना चाहिए। पूरी दुनिया मैं हमारे साथ धोखा हुआ केवल एक कानून को लेकर नहीं आप सविधान को पड़ेंगे कभी कभी अलग से और अवसर देंगे तो मैं आपके साथ आकर बात करूंगा। संविधान के 243 zc को आप पड़ेगा अभी सब मोबाइल चलाते हैं जब मैं बोल रहा हूं तो आप खुल कर देखेगा zc यह कहता है कतई क्षेत्र में यह कानून लागू नहीं होगा यह व्यवस्था लागू नहीं होगा जिसका मतलब पांचवी अनुसूची क्षेत्र नगर पंचायत व्यवस्था लागू नहीं होगी यह बात मैं नहीं बोल रहा हूं यह बात छत्तीसगढ़ के महामहिम राज्यपाल बोल रही है यह बात छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्री जी बोल रहे हैं। क्यों 2000 से *मेसा* बिल राज्य सभा में पेंडिंग पड़ा है आज तक जो बिल है यह कानून के रूप में पारित होकर हमारे पास नहीं आया जैसे पेशा क़ानून बना है।
ग्रामीण ग्रामीण क्षेत्रों के लिए *पेसा* वैसे *मेसा* बनेगा शहरी क्षेत्रों के लिए। तभी पाँचवी अनुसूची क्षेत्रों में नगर पंचायत बन सकता है। यह बात भी कहना चाहता हूं माननीय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी धन्यवाद देना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से पिछले कई सालों वर्षों के बाद कई ऐसे नगर पंचायत हैं जहां के आश्रित लोग जो आश्रित ग्राम सभाएं थी आश्रित मोहल्ला सभाएं थे उन्होंने कहा कि हम इस व्यवस्था में बड़े बड़े कर जैसी टैक्स बोलते हैं पानी का टैक्स, बेरी का टैक्स, मकान टैक्स, लोग कहां से देंगे गरीब थे। लेकिन आपने शहरी क्षेत्र में जोड़ दिया, ना उनको आप रोजगार दे रहे हैं ना उनको आप रोजगार गारंटी दे रहे हैं। लोग कैसे ठीक जी सकेंगे।
मैं आपको बताना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से जो करा रोपण होता है वह हजारों में नहीं होता यहां तक हमने देखा है लाखों में जाता है। एक गरीब आदमी लाख रुपये कैसे दे सकता है। मुझे पता चला है आज इस मंच के माध्यम से की नगरी के कुछ ऐसे पारा मोहल्ला है जो उस व्यवस्था से अलग होना चाहते हैं यदि ऐसा है तो उनके लिए छत्तीसगढ़ सरकार आपको छूट देती है ओ अलग हो सकते हैं। माननीय मुख्यमंत्री जी ने कहा है अपने जितने 90 विधानसभाओं में घूमते हुए अगर कोई नगर पंचायत से अलग होना चाहता है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। तो मुझे लगता है और भी अवसर देंगे कभी सुनने का। मुझे तो बताना बहुत चीज है मगर अपने अधिकारों से बहुत लोग वंचित हैं और शोषित हैं मैं उदाहरण के साथ कई व्याख्यान दे सकता हूं एक एक उदाहरण बता सकता हूं लेकिन मंच के माध्यम से एक निवेदन करना चाहता आने वाले समय में अपनी *जल जंगल जमीन* को बचा ले वही आपके आने वाली पीढ़ी के सही होगा । अन्यथा आने वाली पीढ़ी को आपको लगता है करोना कॉल यह खत्म हो गया? अभी भी है, हो सकता है दूसरे समय में दूसरे टाइप का कुछ आजाए। तब भी हमें ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी, हमें सिलेंडर की जरूरत पड़ेगी, तब आप शहरों की ओर भागेंगे आज जैसे हम लोग इधर आए हैं हम कहते हैं जब गांव में जाएंगे आपको आत्मनिर्भरता मिलेंगे मुझे लगता है कि समय ज्यादा ले लिया।
मैं एक बात को जरूर बताना चाहता हूं मैं हाथ में कागज रखा हूं इसे सब व्हाट्सएप ग्रुप में डाला हूं यह संयुक्त राष्ट्र संघ का घोषणा पत्र है, जो संयुक्त राष्ट्र ने आदिवासी अधिकारों के लिए 13 सितंबर 2007 में आपके लिए घोषणा किया। जल जंगल जमीन का अधिकार हैं आपके संस्कृति बचाने का अधिकार है और आपके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ाई करने के लिए आप सक्षम है और जितने भी आदिवासी क्षेत्र हैं दुनिया में जिसको मैंने कहा 90 देश में आदिवासी यों की आबादी ज्यादा है उनके लिए जो केंद्र सरकार होगी राज्य सरकार होंगे जितने भी सरकार के अमले होंगे। वह जब कोई भी नीति नियम बनाएं उनके सम्मान, स्वाभिमान, उसकी गरिमा को ध्यान रखते हुए हो। इस बात को संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2007 में स्वीकारा और आपके हाथों में दीया।
मुझे लगता है कि मैं बहुत सारी बात बोल दिया, मुझे कुछ और भी बोलना था मुझे कभी और अवसर देंगे तो जरूर बोलूंगा। अपनी आवाज को यहीं विराम देता हूं, विराम देने से पहले मंचासीन मंच से मेरे से अगर कोई त्रुटि हुई होगी या जो अनुच्छेद या जो प्रावधान मै बोला हूं अगर किसी प्रकार के क्लियरिटी चाहिए होगा तो उसके लिए मैं मंच में बैठा हूं मैं आपसे बात करने के लिए तैयार हूं। अपनी बातों को यही विराम देता हूं आप मेरे साथ जय घोष करा दे। जय गोंडवाना । जय भूमकाल ।।
अश्वनी कांगे
7000705692
सामाजिक चिंतक कांकेर, छत्तीसगढ़ ,
संस्थापक सदस्य-
KBKS, NSSS, SANKALAP, KOYTORA,
पूर्व जिला अध्यक्ष-अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद कांकेर।
पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष - गोण्डवना युवा प्रभाग ब्लॉक चारामा, जिला कांकेर।
पूर्व प्रांतीय उपाध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़, युवा प्रभाग।
कोर ग्रुप सदस्य, गोंडवाना समाज समन्वय समिति बस्तर संभाग।
वर्किंग ग्रुप सदस्य, सब ग्रुप, छत्तीसगढ़ योजना आयोग
Organizer- All India Adivasi Employees Federation,(AIAEF) Chhattisgarh
ashwani.kange@gmail.com