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Thursday, March 20, 2025

आत्मनिर्भरता का इकाई *ग्रामसभा* है।

KBKS के इस विचार धारा से आप अनभिज्ञ है ऐसा मैं नहीं मानता। क्योंकि यह जो जन सैलाब है, दो खास विचार धारा सुनने के लिए आयें हैं, और खास करके नगरी विकासखंड जहाँ हम बहुत पहले से लगभग 2005-06 से निरंतर काम कर रहे हैं। ये एक ऐसा विकासखंड है जिसको आगे अपने वक्तव्य में अपनी बात रखूंगा, यह विकासखंड हैं जहां पर एशिया का सबसे बड़ा बायोडायवर्सिटी वाला जंगल है।

 मैं अपनी बात जिसमें *जल -जंगल-जमीन पर केंद्रित* करते हुए रखूंगा। आज जिसके लिए उपस्थिति हुए हैं *विश्व आदिवासी दिवस* के अवसर पर मैं थोड़ा सा बताना चाहता हूं कि *विश्व आदिवासी दिवस* पर।

 इस दुनिया में *यूएनओ* ने इसको मनाने पर क्यों सोचा? इस बात को आप सभी को जानना चाहिए। केवल आदिवासी ही नहीं अपितु पूरे जन समुदाय को समझना चाहिए । ऐसा अवसर हमें क्यों मिला ? किसी समुदाय विशेष के लिए इस दुनिया ने सोचा. 193 देशों ने सोचा। *संयुक्त राष्ट्र संघ* ने सोचा, कि दुनिया मे आदिवासी अपनी विशेष प्रकार के कई संस्कारों से, उनके जीवन संरक्षण, जीवन पद्धति, जीवन शैली के साथ में जीवन यापन करते हैं। उनको कैसे अच्छा बनाए रखें, उन उद्देश्यों को लेकर के  खास करके दुनिया की आदिवासी अधिकारों को बढ़ावा देना और उसकी अधिकारों की रक्षा करना और उनकी योगदान को स्वीकार करना, उनके योगदान को निरंतर बनाये रखना। जिन्होंने आज तक निरंतर उन परम्पराओं को वर्तमान में बोले तो 2022 में जिस प्रकार से हम जिंदगी जी रहे हैं उस स्थित तक पहुँचाये हैं । 


आप सब देखते होंगे, पिछले 2 सालों में कोरोना का काल था जिस तरीके से वैश्विक महामारी ने पूरे दुनिया को घेरा यह नगरी भी अछूता नहीं था या छत्तीसगढ़ या भारत भी अछूता नहीं था। हम उस पर चर्चा करेंगे आने वाले समय में। लेकिन मैं थोड़ा से विश्व आदिवासी दिवस पर *विश्व आदिवासी दिवस* की बात करना चाहता हूं. 1982 में आदिवासी आबादी को लेकर के संयुक्त राष्ट्र संघ की एक वर्किंग ग्रुप बना था उनका पहला मीटिंग हुआ था, उस मीटिंग को लेकर के आगे उनकी 1994 में इसकी घोषणा किया गया  कि  आदिवासी अधिकारों को लेकर के, आदिवासी संस्कृति को लेकर के, आदिवासी सभ्यता को लेकर के, उनके अधिकार को संरक्षण करने के लिए हम प्रतिवर्ष 9 अगस्त मतलब आज के दिन उसको वैश्विक रूप से मनाएंगे। सालाना यह आयोजन होगा अपने अलग-अलग स्तरों पे। 

वह किसके लिए? सामाजिक, संस्कृति, धार्मिक, आर्थिक, कानूनी व राजनीतिक इन विषयों को लेकर के सबको कैसे बरकरार रखा जाए करके, उसको कैसे संरक्षण किया जाए, इस बात को लेकर के रखा गया। मैं थोड़ा से यह बात भी बताना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से, इस दुनिया के 193 देशों में से 90 ऐसे देश है जिसमें 476 मिलियन आदिवासी रहते हैं, और दुनिया के जनसँख्या के 6.2% लगभग आबादी का हिस्सा है , जो दुनिया को एक सीख देते हैं दुनिया को एक परंपरा के साथ उनके रीति नीति के साथ चलने का आह्वान करते हैं और दूसरों को सीख देते हैं। 

और देखते हैं कि 80% से ज्यादा जैव विविधता जहां सुरक्षित है वहां केवल आदिवासी रहते हैं। जहां आदिवासी है वहां बायोडायवर्सिटी दिखेगा। आप शहरों में ढूंढ लेंगे शहरों में नहीं मिलेगा। और वैसे ही आप देखते हैं 90% से ज्यादा बायो डायवर्सिटी के तंत्र हैं एक दूसरे के जीव परस्पर सह जीविता जीने की कला है, 90% एरिया आदिवासी क्षेत्र में मिलता है यह जो छोटा मोटा आंकड़ा नही है, जो इस मंच के जरिए आपको बताना चाहता हूँ यह एक अद्भुत आंकड़ा है इस बात को आप सब को समझना चाहिए। पूरी दुनिया की बात करें उस जगह में जाएंगे तो आपको इन निवाह नई मिलेगा थोड़ा और आगे जाएंगे धुर्वा है दुरला है, हल्बी है, गोंड़ी है, खुडूक हैं, अपने अपने आदिवासी समुदाय में बोली भाषा है। इस दुनिया में बहुत सारे देश हैं जो आज के दिन ये दिवस मना रहे होंगे, जैसे आज के दिन हम अभी नगरी में बैठ के इस आयोजन में हम शरीक हुए हैं इसके गवाह बने हैं वैसे ही हैं दुनिया में लोग आज 9 अगस्त के दिन *विश्व आदिवासी दिवस* मना रहे हैं। कहीं ना कहीं मैं जिन बातों को बोल रहा हूं *उनके संरक्षण के लिए हमें संकल्प लेना पड़ेगा*। 

यदि इसी को जो दुनिया के बारे में बात किया, भारत के बारे में बात करूं तो भारत में 104 मिलियन आदिवासी रहते हैं जो अपनी संस्कृति सभ्यता के संरक्षण को लेकर के पूरे भारत में जो अपनी पीढ़ी को सोपते जा रहे हैं और इनकी आबादी लगभग 8.6 प्रतिशत है जो देश को सिखाती है कैसे उनका जीवन दर्शन है, पूरे इंडिया की बात करूं तो सबसे ज्यादा 65 जनजाति समूह है जिसे उड़ीसा में हैं और हमारे छत्तीसगढ़ में 42 जनजाति हैं जिसमें आप सभी सम्मिलित हैं । जैसे आप सभी बैठे हैं मैं जिसको बात कर रहा हूं चाहे गोंड हो, उरांव हो, हल्बा हो, कवंर हो, यंहा इतनी जनजाति समूह है वह सब मिलकर के अपने अपने एरिया में *जल जंगल जमीन* को कैसे संरक्षण करते संवर्धन करके रखें, उस पर निरंतर काम करते रहते हैं। 

और यह जरूरी नहीं है कि हम 365 दिन में केवल 9 अगस्त आएगा और उसी दिन हम संकल्प लें और उस दिन शपथ लें और संकल्प करें कि आगे आने वाली पीढ़ी को क्या देने वाले हैं यह सही नहीं है। मैं आपको बताना चाहता हूं जो आदिवासी कौम के जितने भी सारे सगा बंधु हैं वे साल भर ये काम करते हैं, जिसमें आपके जितना पंडूम हैं, पर्व है, त्यौहार है, जिसमें आप सारे अपने जीवन दर्शन, को देखते हैं जिसमें आप अपनी जीवनशैली को देखते हैं चाहे आप हरेली को देखेंगे जिसमें आपको जंगल से दिखेगा, आप पोला को देखेंगे जंगल से दिखेगा, चाहे आप आदिवासी पंडुम को उठाकर देख लीजिए जल जंगल जमीन से आप बाहर नहीं हैं. इस बात को यदि मान ले तो आप जल जंगल जमीन से बाहर के नहीं हैं.आपको कभी शहरों में रख दिया जाए या आपको शहरों में रहने के लिए छोड़ दिया जाएगा तो आप मानिए, कैसे जीवन व्यतीत होता है.  पर आपको गाँव में रहने दिया जाए तो वहीं  ग्रामसभा है  गांव  में .  इस बात को कहना चाहता हूं इस मंच पर मंचासीन अतिथि और मंच को भी बताना चाहता हूं आज विकास के दौर में इस आपाधापी के दौड़ में हम जो *आत्मनिर्भरता का इकाई* है. 

आप मानते हैं ओ आत्मनिर्भरता का इकाई कौन है मैं बताना चाहूंगा इस मंच के माध्यम से आत्मनिर्भरता का इकाई *ग्रामसभा* है। गांव हैं । आज विकास की आपाधापी की दौड़ में उन गांव में आत्मनिर्भरता की इकाई को छोड़ कर के शहरों की ओर दौड़ रहे हैं। आपको मैं बताना चाहता हूं की यदि गांव आत्मनिर्भरता की इकाई है तो इस बात को बोल रहा हूँ इसका मतलब समझना. 

  एक ब्यक्ति को गांव में एक महीना या 2-3 महीना छोड़ दिया जाय वह जिंदा रह सकता है लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूँ यदि वही ब्यक्ति को आप रायपुर,मुबई,दिल्ली में छोड़ दे । क्या वह जिंदगी जी सकता है ? आप बोलेंगे नही। क्यो? क्योंकि वह बाजारीकरन  को सीखता है। क्यो? वह हर चीज़  को पैसों से तौलना सिखाता  है। और जो आदिवासी कौम है याद रखेगा इसलिए आत्मनिर्भर है एक दूसरे के ऊपर समन्वय बीठाकर परस्पर जिंदगी जीते हैं । वह कभी पूंजीकरण या बाजारी करन व्यवस्था की ओर नहीं लेकर जाता। याद रखिएगा और इसी व्यवस्था को इस देश ने स्वतंत्र भारत में आगे बढ़ा रहा है।

 मुझे पेसा के बारे में बोलने कहा गया है मैं पेसा के बारे में आपको बताना चाहता हूं इस देश में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 90 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए, दो बड़े बदलाव कौन से हैं? दो बड़े बदलाव में से पहला उदारीकरण नीति है जो 90 के दशक में लाया गया। इस देश में एक और बदलाव हुआ, दूसरा सत्ता का विकेंद्रीकरण (पावर का डिसेंट्रिलिशन ) और जिस दिन सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ उस दिन पूरे संविधान में संशोधन किया गया। यह आप सब को समझना चाहिए सविधान के ऊपर यहां कोई नहीं है चाहे आम जनता हो, चाहे कोई बड़ा अधिकारी हो या चाहे कोई बड़े राजनेता हो।

और उस दिन सत्ता का विकेंद्रीकरण करते हुए सविधान में 73 वा संशोधन करते हुए 1992 में *त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था* को जगह दी गई। बिल्कुल ध्यान से सुनिएगा इस बात को क्योंकि आज 9 अगस्त है मैं *आज आपको स्वशासन की इकाई के बारे में बताने आया हूं* वह स्वशासन की इकाई कैसे चलने वाला है आप को समझना चाहिए। जब संविधान संशोधन किया जा रहा था संसद में डिबेट चल रहा था और उसके विचार विमर्श करने के बाद जब 73 संशोधन को संविधान भाग 9 में जोड़ा गया, तो आपको जानना चाहिए वहां एक शब्द आया *ग्रामसभा* करके। वह ग्रामसभा पहले के सविधान में नही दिखेगा 73 संशोधन के पहले 1990 के पहले में नहीं था और वही ग्राम सभा जिसमें आप सभी मेंबर हैं कि आप अपने अपने गांव में *ग्राम सभा* का सदस्य हैं जहां आप वोट देकर के विधायक बनाते हैं सांसद बनाते हैं, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, सरपंच के लिए चुनाव करते हैं वह ग्रामसभा है जिसका आप मेंबर है। उसके बारे में उसके अधिकार के बारे में आपको जानना होगा। इसलिए मुझे इस मंच में आज बुलाया गया है और मैं वो बताने वाला हूं, यहां जब त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को जगह दी गई और सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया इसका मतलब समझना कि, संसद ने कहा मेरे पावर को डिसेंट्रीलाइज कर रहा हूं। इसका मतलब समझना जो निर्णय हम (संसद)रहे हैं, वो निर्णय आप (ग्रामसभा) ले सकते हैं हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। इसका मतलब क्या होता है? और ऐसा है तो जब ग्राम सभाओं में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्थाओं को जगह दी गई , मैं बताना चाहता हूं कि उनके लिए ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ा गया। *सविधान मे ग्यारहवीं अनुसूची* जोड़ते हुए उनके 29 विषय को आप को दिया गया। गांव को दिया गया ।गांव डिवहार को दिया गया। उस विषय में देखेंगे सड़क है, पानी है, बिजली है, स्वास्थ्य है, शिक्षा है, जो संचार हैं, आपकी रोजगार की बात है, ऐसे टोटल 29 विषय हैं। जो 29 विषय गांव को दिया गया, त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्थाओं को दी गई और कहा गया कि आप अपने गांव में अपने विकास की गाथा लिख सकते हैं। आप अपना निर्णय खुद ले हमें उससे कोई आपत्ति नहीं होगी। आप इसीलिए देखते होगें । यदि सभी नगरी ब्लाक के आए होंगे तो सभी लोग अपने अपने गांव के ग्राम सभा के मेंबर हैं जब तक कि आप कोई निर्णय नहीं लेंगे सरकार भी आप के खिलाफ कुछ भी नहीं लेगी सरकार शासन प्रशासन आपसे कहीं ना कहीं कागज में अनुमोदन मांगता है। उसका मतलब समझना है , आप सब उस संसाधन की इकाई अहम अंग है। आपके बगैर कुछ लोग नहीं कर सकते।


  कि ऐसा सविधान ने कहा है जिस दिन  सत्ता के केंद्रीकरण हुआ उस दिन आप सबको विषय दिए गए उसका निर्णय आप सबको लेना है करके यह अच्छी बात है।

 लेकिन कितने लोगों को पता है? यह अच्छी बात है क्या नगरी में लागू हो सकता है? मैं बताना चाहता हूं यह व्यवस्था नगरी में लागू नहीं हो सकता । इसका मतलब मैं समझ रहा हूं कि यहाँ जनपद पंचायत अध्यक्ष बैठे हुए हैं बहुत सारे सरपंच, पंच, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य होंगे। आप सबको याद होंगा जो व्यवस्था यहाँ पे लागू नहीं हो सकती। 

 इस मंच माध्यम से आपको बताना चाहता हूं तब आप बोलेंगे यहां पर जनपद का सदस्य, जनपद पंचायत अध्यक्ष बैठे हुए हैं सरपंच बैठे हैं कैसे हो गया। इस बात को आप सब को समझना चाहिए कि ये क्यों हुआ? 

 अनु.*243m* सबको सविधान सीखने की जरूरत नई है संविधान के अनुच्छेदों को याद रखने की जरूरत नहीं है लेकिन व्यवस्था आपके लिए बनाया गया, व्यवस्था को आप को जानना जरूरी है। पंचायती व्यवस्था है जो अनुसूची 11 है वह पाँचवी अनुसूचि क्षेत्र में लागू नहीं होगी। नगरी ब्लॉक एक विशेष क्षेत्र में है जिसे आप पांचवी अनुसूची क्षेत्र कहते हैं जो पांचवी अनुसूची क्षेत्र है वहां पर पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं हो सकता। सीधा और सीधा लागू नहीं हो सकता। तो कैसे लागू होगा? संसद को पावर है यदि त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को मतलब पानी है,सड़क, बिजली है, आदि यह व्यवस्था यदि नगरी ब्लॉक मतलब पाँचवी अनुसूचि में देना है तो एक विशेष कानून लाएंगे।

 वो 243m के 4 b में लिखा है और उसमें कहा है संसद को यदि यह व्यवस्था लागू करना है तो संशोधन और अपवाद के साथ ही लागू होगी। *अपवाद और उपांतरण* क्या है आपको पता है? बहुत कम लोगो को पता नही होगा। वह अपवाद उपांतरण के साथ कानून लाया गया है वह कानून का नाम है *पेसा*।

 मैं थोड़ा हाथ खड़े करके जानना चाहता हूं कितने लोग सुने है *पेसा कानून* करके। बहुत कम लोग सुने है कितने वोट देते हैं हाथ खड़े करेंगे। कितने लोग हैं जो सरपंच चुनाव करते है जिसमे वोट देते हैं बहुत सारे लोग अभी भी कन्फ्यूजन है पेसा क्या बला की चीज है ? आपको समझना चाहिये पेसा  को लेकर नगरी में OBC समाज का आंदोलन, कोंडागांव, चारामा आदि में हुआ।मैं आप सबको बताना चाहता हूं *अपवाद और उपांतरण 243M b के तहत लाया गया कानून है उस कानून के नाम पेसा है।

आप नहीं चाहते? कि आप के क्षेत्र में पानी, बिजली, सड़क, स्वास्थ्य, शिक्षा की सुविधा चाहिए? लेकिन आप बोलेंगे- हमे सुविधा चाहिए। यदि आपको सुविधा चाहिए तो पेसा कानून भी चाहिए। अगर पेसा नहीं होता तो आपके सरपंच न होते, न तो जिला पंचायत सदस्य ना जनपद सदस्य होते हैं। इस बात को आप सबको समझना चाहिए। बहुत सारे लोगों को गुमराह करके रखा गया है कई संगठनों के माध्यम से पेसा आएगा तो ओबीसी लोगों को हानि होगा, पेसा आएगा तो आदिवासी लोगों का विकास होगा।  

आपको मैं बताना चाहता हूं इस प्रदेश का जन्म नहीं हुआ था छत्तीसगढ़ का जन्म तो 2000 में हुआ। छत्तीसगढ़ का जन्म नहीं हुआ था तो मध्य प्रदेश के जमाने में 1996 में इस प्रदेश में पेसा लागू हुआ। उसमें से जिसमें यह नगरी ब्लाक भी शामिल है। नगरी ब्लाक में भी उस दिन से पेसा चालू हुआ। उस दिन से आप सरपंच चुनाव करना चालू कर दिए, जिस दिन आप सरपंच चुनाव चालू कर दिए उस दिन से पेसा लागू हो गया। लेकिन अभी जो छत्तीसगढ़ कर रही है वह क्या है? यदि अगर आप बोलेंगे तो वह केवल पेसा कानून का एक नियम मात्र है। नियम पहले भी थे वह नियम पेसा के हिसाब से नहीं था। जितने भी इस क्षेत्र में विद्यमान प्रवृत्त विधियां रही है उन विधियों में छोटे-छोटे संशोधन और अपवाद के साथ में आगे बढ़ाये गए । 


आप देखे होंगे आबकारी अधिनियम के तहत में बहुत सारे लोगों को पता होगा आदिवासी लोगो को कितना शराब का छूट है? कोई बता पाएंगे? आप बोलेंगे 5 लीटर छूट है वह पेसा की देन है। आप बोलेंगे 170 ख कहा था जिनमे आदिवासियों का जमीन वापस किया जाता है यदि नान ट्राईबल अगर छल कपट से ले लिया है, छीन लिया है, तो वह वापस हो जाता हैं , नगरी में यह व्यवस्था है। मैं आपको बताना चाहता हूं पेसा में उस विभाग में sdm होता है पहले एसडीएम सुनवाई करते थे उस व्यक्ति का पेसी में पेसी बुलाया जाता था पेसी होने के बाद एसडीएम देखता था सही है कि नहीं है। उसके बाद वो जमीन मूल वारिश को हो जाता था। लेकिन पेसा के कारण संशोधन किया गया भू राजस्व संहिता 1959 में 170 ख में 2(क) जोड़ा गया। सबको याद रखना चाहिए जमीन की मालिक आप है और आजकल जमीन के बारे में आपको इस कानून को जानना जरूरी हो जाएगा, इसलिए 1959 धारा 170 का 2 (क) जोड़ा गया और जोड़ते हुए पेसा ने कहा पावर देते हुये ग्राम सभाओं को सक्षम इकाई के रूप में आपको निर्णय लेने का अधिकार दिया गया। यदि जिस दिन ग्रामसभा यह निर्णय ले लेती है की मूल वारिस किसका है और किसको देना है उनको केवल अनुभाग अधिकारी SDM कब्जा दिलायेगा । राजस्व विभाग केवल उनको कब्जा दिलाने का काम करेगा। इस बात को बहुत सारे लोगों को जानकारी नहीं है।  

इसी तरीके से जब पेसा की बात करेंगे बहुत सारे लोगों में दिग्भ्रमित करने बात आई है पिछले दो-तीन सालों में उनको यह कहा जाता है पेसा आएगा तो ओबीसी को उसमें जगह नहीं दिया जाएगा। मैं इस मंच के माध्यम से पूरे छत्तीसगढ़ वासियों के लिए कहना चाहता हूं की पेसा में ओबीसी को जितना जगह दिया गया है। मैं इस मंच के दावा करता हूं अगर ओबीसी समाज के सभी बंधुओं इस मंच पर मंचासीन हैं तो आपको अगर कोई कानून 25% से ज्यादा आरक्षण देता होगा वह कानून पेसा है। इस बात को आप को जानना चाहिए। हमारे आदिवासी समुदाय के कौम के लोगों को भी जानना चाहिए। पांचवी अनुसूची क्षेत्र इसलिए है नहीं तो छठी अनुसूची हो जाता। क्योंकि नगरी ब्लॉक में आदिवासी की जनसंख्या 50% से ज्यादा है इसलिए यहां पांचवी अनुसूची क्षेत्र है पांचवी अनुसूची क्षेत्र में हमारे गांव में पूरे 12 बानी बिरादरी के लोग निवास करते हैं जिसमें अपना धर्म,संस्कृति है, वेशभूषा पहनावा है अपने जाति धर्म मानने और अपने अपने अनुसार रोटी बेटी का व्यवस्था करने का अधिकार है इस व्यवस्था को पेसा में अधिकार दिया।
 और पेसा की बात करेंगे तो पंचायती राज कानून 129 ङ. देखेंगे में देखेंगे तो ओबीसी के लिए आरक्षण अधिकार दिया गया है मैं इस मंच के माध्यम से पूरे मंच को बताना चाहता हूं कि आप आरक्षण को कैसे समझते हैं पेशा ने कहा कि 50 से आधा आदिवासियों का आरक्षण कम नहीं होगा मतलब 50 से कम नहीं हो सकता ऐसा कानून ने कहा बचे 50% 51 से लेकर के75 तक जो आरक्षण है हव sc के लिए है मैं पूछना चाहता हूं नगरी में इससे भी गांव से लोग आए हैं sc का जो प्रतिशत है कहीं ना कहीं गांव में बोलेंगे शेड्यूल ग्राम में बोलेंगे 3 प्रतिशत ही होगा तो तो बचे कौन वह ओबीसी समुदाय जो गांव में बसे हैं निवास करते हैं 51 से लेकर 75% तक ओबीसी को जाता है आप किसी भी पंचायत बॉडी जनपत को उठा कर देख लीजिए जिला पंचायत व्यवस्था को उठाकर देख लीजिए आपको मिलेगा लोगों को भ्रमित किया जा रहा है लोगों को भ्रमित किया जा रहा है पेशा कानून आएगा तो आपके अधिकारों का हनन होगा आपके कोई हनन नहीं होगा आपको व्यवस्था देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार आगे बढ़ रहा है  मंच के माध्यम से छत्तीसगढ़ सरकार को पेसा के नियम को लेकर के 1997 में बन जाना चाहिए थे लेकिन उसने कभी सोच नहीं बनाया था आप जैसे लोग समाज के उनके इतनी जानकारी साथी हैं उसने बीड़ा उठाया छत्तीसगढ़ सरकार को वापस ड्राफ्ट दिया  सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले ड्राप्ट दिया और सरकार ने स्वीकारा और पेपर में भी पड़ा है जनजाति सलाहकार परिषद में भी और कैबिनेट में भी  पास कर दिया आपको आने वाले दिनों में आपके स्वशासन की  के लिए  एक बेहतरीन नियम आपके हाथों में आएगा आप सोच लीजिए 25 सालों से बिना नियम के चला रहे हैं दूसरा के साथ जिंदगी जीते आ रहे हैं क्या हुआ नियम आने के बाद उसको छोड़ दिया जाएगा ऐसा कतई नहीं आप को समझना होगा की आपके कान में कोई दूसरा व्यक्ति है जो आप को भड़का रहा है ओबीसी समाज के साइड से आदिवासी समाज साइट् से अगर कहीं भी भ्रमित करने वाली बात हो तो मेरा फोन नंबर है मेरा साथी है आपको क्रियलिटी कर दूंगा मैं इस बात को कह रहा हूं कि छत्तीसगढ़ के   अध्य न कर रहे थे तब हम पूरे देश के अध्ययन करने का अवसर मिला इस देश में जितनी मध्य भारत राज्य में जहां अनुसूचित जनजाति क्षेत्र आदिवासी क्षेत्र हैं 10 राज्य हैं जिसको आप बोलते हैं पांचवी अनुसूची क्षेत्र है जैसे आप बोलते हैं नगरी पांचवी अनुसूची क्षेत्र है वैसे मानपुर ब्लॉक है डौंडी ब्लाक है पूरे बस्तर संभाग है वैसे आपका सरगुजा संभाग है के इन एरियाओं के त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के लिए विशेष प्रधान की गया है और इसी के साथ आप देखते होंगे जितने भी सारे सरपंच हैं वह केवल आदिवासी बनी हुई हैं अब यह आदिवासी क्यों बने हैं इस बात को लेकर प्रश्न अपने आपको आता होगा क्यों बनना चाहिए यदि मैंने कहा तो 50% से कम नहीं हो सकता तो उसका आरक्षण है आदिवासी तो हो ही जाता है इसलिए देखेंगे सरपंच आदिवासी है जनपद अध्यक्ष आदिवासी हैं जिला पंचायत आदिवासी है और यह पेशा के कारण है जिस दिन आप पैसा को बोलेंगे यह कानून हमारे लिए गड़बड़ है पेशावापस कीजिए बोलोगे तो ग्यारहवीं अनुसूची इस एरिया में संचालित करने के लिए कोई ऐसा कानून नहीं है वही व्यवस्था है जो 11वीं अनुसूची लाभ होता है वह पेशा है मुझे लगता है कि पेशा इतना बाद रखता हूंइसको बात करूंगा तो मंचासीन मंच है इसको भी सुनना है जानना चाहेंगे आपके अनुभवों को मुख आगरा करना चाहेंगे मैं जो दूसरी बात कहना चाहता हूं हम पूरे दुनिया के लोग जैसे हम भी शामिल है आप भी शामिल है मैं नगरी की बात नहीं छत्तीसगढ़िया केवल भारत की बात नहीं कर रहा हूं हम दुनिया के लोग जो आदिवासी गांव से हैं आप दुनिया को जल जंगल जमीन देते हैं क्या देते हैं जल जंगल जमीन है मैं इस बात के ऊपर बोलता हूं कि आप समझना क्योंकि आप मचंदूर से लेकर के नगरी से लेकर के मानपुर मौला से लेकर के कोलकाता जाएंगे तो जंगल ही मिलेग सरगुजा की बेल्ट में जाएंगे तो आपको जंगल ही मिलेगा जंगल वही मिलेगा जहां आदिवासी लोग रहते हैं जंगल कहां मिलेगा जंगल वाहन मिलेगा जहां आदिवासी की आबादी है वरना रायपुर में तो जंगल सफारी दिखाने वाला जंगल मिलेंगे अब आप सोचते होंगे कि वह जंगल क्यों हैं ओ जंगल क्यों हैं आप इस बात को समझना चाहिए यदि आप गोंड हैं गोंड जनजाति में पैदा लिए हैं 11 को नहीं हो सकता चाहे उराव हो या संतान हो एक जाति का उदाहरण दे रहा हूं यदि आप गोंड जाति से हैं तो गोंड जनजाति कोयतुरीन टेक्नोलॉजी से चलता है कोयतुरीन टेक्नोलॉजी क्या होता है आपको इस बात 9 के दिन आपको समझना चाहिये सीखने का अवसर है अब यहां आ कर के वापस जाने का दिन नहीं है आपको चिंतन करना चाहिए यदि आप गोंड हैं गोंड जनजाति से हैं आप कोई तो कोयतुरीन व्यवस्था से संचालित होते हैं

यह व्यवस्था केवल गोंड के लिए नहीं है यह व्यवस्था पूरे आदिवासीयों की ब्यवस्था है कोयतोरीन व्यवस्था है । आदिवासी पूरा टोटम व्यवस्था से संचालित होते हैं यदि आप टोटम व्यवस्था से संचालित होते हैं तो किसी से भी पूछ लीजिए, आपके पड़ोसी जो अगल-बगल में बैठे हैं आप एक जीव, एक जंतु और एक पेड़ को कभी जिंदगी में न ही उसको मारेंगे, न ही काटेंगे और न ही खाएंगे। अभी यह व्यवस्था है कि नहीं मैं जानना चाहता हूं आप हाथ खड़े करेंगे बतायें। आप जाने या ना जाने अपने पूर्वजों से यह सीख लिया है, यह सीख हम सब आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करते आ रहे हैं। आप ऐसे में सोच सकते हैं कि वह जंगल पूरा कट सकता है? एक गांव ऐसे रहेगा पूरा समुदाय एक पेड़ को कभी जिंदगी में नहीं काटेगा। कोई सरई को नहीं कटेगा, कोई महुआ को नहीं काटेगा, कोई साजा वृक्ष को नही काटेगा, ऐसे ही अपने अपने गोत्र के एक एक पेड़ को नही काटेगा। इस तरीके से आप में कोई कछुआ को नहीं मारेगा, कोई बकरा, कोई सांप, तो कोई कछुआ इस प्रकार से कई ऐसे जीव जंतु है जिसको आप देव के रूप में मानते हैं। यह एक टोटम व्यवस्था है ऐसे में देखा जाए तो 750 गुणा 3 कुल 2250 पेड़ पौधे, जीव जंतु की रक्षा करते हैं, और यह दुनिया में है केवल छत्तीसगढ़ या नगरी की बात कर रहा हूं ऐसा कभी मत मानना। दुनिया में कहीं भी चले जाईए आप रिसर्च करिए, आप रिसर्च पेपर को पढ़िए, आपकी टोटम व्यवस्था पूरा सदियों से है जब वैज्ञानिक लोग इस शब्द को इज़ाद नहीं किये थे तब से हमारे पूरखों ने अपनी पारंपरिक ज्ञान का हस्तांतरण करते आ रहे हैं, वैसे ही जो आजो काको हैं आने वाली पीढ़ी को निरंतर अपनी पारंपरिक ज्ञान को हस्तांतरित करते आए हैं।

 मैं आपको बताना चाहता हूं 9 अगस्त 2022 का थीम है संयुक्त राष्ट्र संघ ने जो हमको थीम दिया है। यह सबको पता होना चाहिए यह वही आजो काको का पारंम्परिक ज्ञान हैं जो पारंम्परिक ज्ञान है जो पीढ़ी के नाती पोती है आने वाली नाती पोती को हस्तांतरित करना चाहते हैं उनको ज्ञान आप देने वाले हैं यह व्यवस्था कैसे कायम होगी आप पूछेंगे तो मैं बताना चाहता हूं आज हमारे साथ में माननीय मुख्यमंत्री जी के कर कमलों से जो हमारा नगरी का कोर क्षेत्र हैं सीतानदी अभ्यारण क्षेत्र है उस क्षेत्र के सामुदायिक वन संसाधन का हक का दावा संयुक्त रुप से 3 गांव एक जंगल को क्लेम किये हैं, मतलब समझ रहे? मतलब मेरे जंगल जमीन में हम ही प्रबंधन करेंगे, आप इस बात को समझ रहे हैं। माननीय मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ सरकार को इस मंच से धन्यवाद देते हैं उन्होंने समझा और स्वीकार किया कि आदिवासियों को उनके *जल-जंगल-जमीन* से अलग नहीं कर सकते उनके प्रबंधन का अध

Wednesday, March 19, 2025

 PESA Act: A symbol of social harmony

 PESA Act: A symbol of social harmony


Celebration, concern and contemplation on the Silver Jubilee of PESA 


on 24 December 2021


Am in a big dilemma today on the silver jubilee of PESA Act. The dilemma is about whether I should celebrate its coming of age and turning into an adult or worry about its continued miserly state or think about how we can improve its implementation.


I want to celebrate because even after 25 years the law still remains relevant. In the last 25 years, the issues of the Fifth Schedule areas remain the same as written in the law. Rights related to water-forest-land; to establish the Panchayati Raj system according to the customs-policies-tradition of local people; to provide Gram Sabha and Panchayats autonomy and make them institutions of self-governance. In short, establishing direct democracy in each of the villages and PESA is such a link that ties the entire Fifth Schedule areas with a common cause and connects them with each other.


Misfortunately even after having such a good structure of law it is hardly being implemented on ground. Even today its nodal department is not clear in various states. Somewhere it is the Panchayat department and at other places it is the tribal department. Even today, the process of making rules for its implementation is yet to happen in four major states with highest tribal population i.e. Chhattisgarh, Madhya Pradesh, Odisha and Jharkhand. Even today there is dearth of field staff to implement its provisions despite budgetary support being there in centrally sponsored scheme of Rashtriya Gram Swaraj Yojna. Worst no meetings are held by ministry of panchayati raj or state nodal departments to review it. But the biggest concern for me is that even after 25 years a large section of the society and government has not understood its basic spirit.


It is this concern that leads me to ponder as to where it is lacking in its implementation. What is there in PESA that makes politicians and government bureaucrats afraid to even talk about it? Why does all the society think that with the full implementation of PESA, the tribal society will get all the rights and others would get disenfranchised?


There is an urgent need to remove these misconceptions and misinterpretations by reading the Act and rules rather than going by what is understood through hearsay. As article 40 of the Constitution sees Gram Sabha/Panchayats as units of autonomous governance, this autonomy in fifth scheduled areas is in accordance with Article 243 M of the Constitution which provides for certain exceptions and modifications mentioned in the PESA. Thus the 29 subjects under the 11th Schedule of the Constitution, which includes education, health, roads, water, electricity and all the development works, including review, control of funds, functions and functionaries of all 29 subjects are all operated in the fifth schedule areas only through PESA. Apart from PESA, no other law exists at present through which these subjects can be implemented.


Therefore while reading PESA one has to basically keep in mind that it empowers all the people living in Fifth Schedule areas through Gram Sabha and Panchayats without benefitting any particular class, especially the Aadivasis.


In states such as Madhya Pradesh and Chhattisgarh you will find that there is reservation for Scheduled Castes (SC) and Other Backward Classes (OBC) in the Panchayati Raj system under the sections mentioned for PESA in their panchayati raj act. In places where the post of Sarpanch/President is reserved for Scheduled Tribes, the post of Up Sarpanch/Vice President is reserved for SC or OBC. Therefore, PESA is does not making any distinction for any class of the society and gives leadership opportunities to   all.  


Simultaneously, wherever PESA talks about customary traditions, it does not emphasize on the customary tradition of any particular class, but empowers and enables the Gram Sabha to protect and preserve the customary tradition of all the societies residing in the Fifth Schedule Areas. 


Therefore, implementation of PESA to its fullest is in the interest of all the societies, all the organisations, except a few bourgeoisie and the political class who want to keep all the power and resources in their own hands. To realize Gandhi's vision of 'Gram Swaraj', decentralization of power has to happen. However no government wants decentralization of powers and resources. All the profits from the centralized system are going in the hands of few and PESA shows the way to get rid of it. PESA is a glimmer of hope for the residents of fifth schedule areas forced to lead a sub-standard life even after independence.


After 25 years this is everyone’s chance to open this closed fist controlling all the powers and resources. For this all the communities will have to come together despite their differences and diversity and rise above their identity as ST, SC, OBC, or Dalit so as to unite in the form of villages belonging to fifth schedule areas. Only then will the villages would be realised as a republic, only then Mawa Nate - Mawa Raj will become possible, only then there would be self-rule in villages, only then there will be Abua Dishum - Abua Raj and only then there a direct democratic government would get established in villages.


That's why on this twenty-fifth anniversary of PESA people of Fifth Scheduled areas have to come forward for its implementation. No one else will implement it, especially the governments. We will have to do it ourselves as member of Gram Sabha, as Panch and Sarpanch, as member/President/Vice President of Block/District Panchayats. We will have to form our own democratic Gram Sabha government in our villages according to our customary traditions. Then we will be able to manage the legacy of self-rule given by our ancestors through the legal framework of PESA.




Ashwani Kange


Social Thinker 


Kanker, Chhattisgarh Mo.7000705692



Tuesday, September 17, 2024

*मध्य प्रदेश* के *बालाघाट* जिले के ग्राम *परसवाड़ा* में तीन दिवसीय *कोया पुनेम एवं संवैधानिक प्रशिक्षण कार्यशाला*

*एक कदम, गांव की ओर...* *
*ग्राम सभा सशक्तीकरण की ओर...*

गांवों का सशक्तीकरण किसी भी समाज की स्थिरता और विकास का आधार होता है। जब ग्रामीण क्षेत्र अपने सांस्कृतिक धरोहरों और संवैधानिक अधिकारों को समझते हैं, तो वे न केवल अपनी पहचान बनाए रखने में सक्षम होते हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बनते हैं। इसी सोच को बढ़ावा देने के लिए *मध्य प्रदेश* के *बालाघाट* जिले के ग्राम *परसवाड़ा* में तीन दिवसीय *कोया पुनेम एवं संवैधानिक प्रशिक्षण कार्यशाला* का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला ग्राम सभा सशक्तीकरण और आदिवासी अधिकारों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित की गई, जिसमें गोंडवाना के सांस्कृतिक, सामाजिक और संवैधानिक पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया।

*कोया पुनेम: एक सांस्कृतिक धरोहर*

कार्यशाला के दौरान कोयतोरिन व्यवस्था के अंतर्गत गोंडवाना की पवित्र "ग" संस्कृति को विस्तार से समझाया गया। इसमें गोंडवाना से संबंधित गण्ड, गोंड, गोंडवाना, गोटुल, गुड़ी, गांयता, गोंगो, टोंडा, मंडा और कुंडा जैसे प्रमुख पहलुओं पर जानकारी दी गई। गोंडवाना की इस प्राचीन संस्कृति में टोटम व्यवस्था और लिंगों मैट्रिक जैसे सांस्कृतिक तत्वों का भी विशेष उल्लेख किया गया, जो गोंड समाज की पहचान और परंपराओं को सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

गोंडवाना समाज के रीति-रिवाज और परंपराएं, जैसे कि पेन पंडुम, गांव के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत बनाते हैं। *गोटुल* और गुड़ी जैसे सांस्कृतिक केंद्र युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहरों से जोड़ने का माध्यम हैं। इस कार्यशाला में *कोया बल्ड बैंक* और *कोया बुक बैंक* जैसी महत्वपूर्ण पहलों के बारे में भी बताया गया, जो आदिवासी समाज में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहे हैं। साथ ही, वृक्षारोपण जैसे पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को भी जोर दिया गया।

*संवैधानिक अधिकारों की जानकारी*

ग्राम सभा सशक्तीकरण की दिशा में संवैधानिक अधिकारों का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। कार्यशाला में प्रमुख संवैधानिक प्रावधानों के बारे में जानकारी दी गई, जिसमें मुख्य रूप से पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम (PESA) 1996, और अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (RoFRA) 2006 का जिक्र किया गया। इन अधिनियमों का उद्देश्य आदिवासी समुदायों को उनके भूमि और संसाधनों पर अधिकार देना है, जिससे वे अपने प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कर सकें।

कार्यशाला में पांचवीं अनुसूची के तहत आने वाले आदिवासी क्षेत्रों के अधिकारों के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई। इन अधिकारों के प्रति जागरूकता ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। संवैधानिक अधिकारों की जानकारी से आदिवासी समुदाय अपने हितों की रक्षा करने और अपनी परंपराओं को सहेजने में सक्षम हो सकते हैं।

*शिक्षा और रोजगार पर ध्यान*

कार्यशाला का एक और प्रमुख उद्देश्य उच्च शिक्षा, रोजगार और स्वरोजगार के अवसरों को लेकर आदिवासी युवाओं में जागरूकता फैलाना था। ग्रामीण युवाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के साधनों की जानकारी देना उनके भविष्य के निर्माण में सहायक हो सकता है। इसके अलावा, स्वरोजगार के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया गया।

विशेषज्ञों ने ग्रामीण युवाओं को उच्च शिक्षा की दिशा में प्रेरित किया और उन्हें विभिन्न रोजगार के अवसरों की जानकारी दी। इसके साथ ही, स्वरोजगार के माध्यम से आदिवासी युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की पहल की गई। शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग करने से ग्रामीण विकास को नई दिशा मिल सकती है।

*प्रमुख विशेषज्ञों की भागीदारी*

इस तीन दिवसीय कार्यशाला में कई प्रमुख विशेषज्ञों की उपस्थिति रही, जिन्होंने अपने अनुभवों और ज्ञान को साझा किया। कोया भूमकाल क्रांति सेना (KBKS) छत्तीसगढ़ से तिरु अश्वनी कांगे, प्रमोद पोटाई, तुलसी नेताम, संदीप सलाम, हेमंत तुमरेटी, प्रखर, बलदेव पडोटी, और मूलनिवासी सेवा समिति (MSS) मध्य प्रदेश से तिरु कमल किशोर आर्मो, कमलेश मरकाम, रंजीत ध्रुवे, तिरुमाय रुकमणी सुरेश्वर, उज्जर मरकाम, जगदीश कुर्वेती, मनोहर परते, दशरथ मरावी, और चरण परते जैसे विशेषज्ञों ने आदिवासी अधिकारों, सामाजिक सुधार और ग्रामीण विकास पर अपने विचार साझा किए।

*आयोजनकर्ता और उद्देश्य*

इस कार्यशाला का आयोजन सर्व आदिवासी समाज और गोंडवाना स्टूडेंट्स यूनियन, ब्लॉक इकाई परसवाड़ा, जिला बालाघाट, मध्य प्रदेश द्वारा किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज को उनके संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना, सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजना और ग्रामीण युवाओं को शिक्षा एवं रोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना ।

Wednesday, February 28, 2024

पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में नगर पंचायत गठित करने से संबंधित संवैधानिक /विधिक जानकारी

  पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में नगर पंचायत गठित करने से संबंधित संवैधानिक /विधिक जानकरी निम्नानुसार है ...



1.  छत्तीसगढ़ में पांचवी अनुसूची के अंतर्गत अधिसूचित क्षेत्र मरवाही में संविधान के 74वां संशोधन के माध्यम से नगरीय निकाय का गठन किया जा रहा है जो कि असंवैधानिक हैं।


2. संविधान के 74 वां संशोधन अधिनियम 1992 के अनुच्छेद 243 (य)(ग) के खंड (1) के तहत यह नगरीय निकाय पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों में तब तक लागू नहीं होगा जब तक केंद्र सरकार इसके लिए अलग से प्रावधान कर इसें अनुसूचित क्षेत्र में विस्तारित न करे।


3.  अनुसूचित क्षेत्रों पर 74वां संविधान संशोधन अधिनियम को लागू कराने के लिए “पेसा अधिनियम” जैसा ही "मेसा अधिनियम" जब तक नहीं बन जाता तब तक किसी भी नगरीय क्षेत्र का गठन नहीं किया जा सकता है।


4. संविधान के 74वें संशोधन के अनुच्छेद 243(य)(ग)(1) का उल्लघंन करते हुए राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित क्षेत्र के नगरीय निकाय में आरक्षण संबंधी प्रावधानों को लागू कर दिया गया है, जो कि विधि सम्मत नही है एवं असंवैधानिक है।


5. पूर्व में अनुसूचित क्षेत्र की विघटित की गई  ग्राम पंचायतों के क्षेत्र में पेसा अधिनियम के अंतर्गत अध्यक्षों के सभी पद अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए आरक्षित थे जिसे नगरीय निकाय का गठन करते वक़्त समाप्त कर अनुसूचित जनजाति वर्ग के संवैधानिक अधिकारों का हनन किया गया है, जो की न्याय संगत नही है।


6.  विघटित की गई ग्राम पंचायतों में “पेसा”अधिनियम की धारा 4 (छ) के अंतर्गत पंचायत में सदस्यों के लिए कुल स्थानों की संख्या में आधे से कम आरक्षण नहीं होने की अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया गया है, जो की विधि विरुद्ध है।


7. अनुच्छेद 243 यग (1) तथा अनुच्छेद 243 यग (3) का उल्लंघन कर आदिवासीयों के प्रतिनिधित्व को न्यून कर गैर आदिवासियों के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने से अन्य वर्गों द्वारा, जो इस क्षेत्र के निवासी नहीं है, आदिवासियों का आर्थिक, व्यावसायिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में शोषण किया जा रहा है। 


8. अनुसूचित क्षेत्र में नगरीय निकाय बनाने से वहां पर पेसा अधिनियम के प्रावधानों के तहत अनुसूचित जनजाति को उनकी संस्कृति, उनकी रूढ़ीजन्य विधि, सामुदायिक संपदाओं पर परम्परागत अधिकारों प्राप्त नहीं हो पा रहे है जो कि उनके जीवन का अभिन्न भाग है।


9. संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के अंतर्गत पांचवी अनुसूची के भाग ख की कंडिका 5 के अधीन अनुसूचित क्षेत्र में शांति एवं सुशासन के लिए स्थानीय अधिनियम के प्रावधानों को संशोधित करने तथा उन्हें लागू करने से रोकने की शक्तियां राज्यपाल में निहित है। इस प्रावधान का उपयोग कर राज्यपाल महोदय सभी नगरीय निकायों को विघटित करने हेतु अधिसूचना जारी कर सकती है।



अतएव, पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में नगर पंचायत हो ही नहीं सकता यदि नगर पंचायत बनाया जाता है तो वह असंवैधानिक है। इस लिए:

1. संविधान के भाग 9 के अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम पंचायतों का विघटन और उनके स्थान पर नवीन नगरीय निकायों की स्थापना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए;


2. संविधान (74वाँ संशोधन) अधिनियम 1992 के लागू होने के बाद संविधान के भाग 9 के तहत अनुसूचित क्षेत्रों मे गठित ग्राम पंचायतों को विघटित कर उनके स्थान पर जिन नगर पंचायतों की स्थापना की गई है उन नगरी निकायों को तत्काल विघटित कर उनके स्थान पर पुन: ग्राम पंचायतों की स्थापना कराई जाए ताकि 73वां एवं 74वां संविधान संशोधन अधिनियम तथा पेसा अधिनियम के अनुरूप जनजातियों के परंपरागत प्रबंधन की पद्धति का संरक्षण हो सके।


3. राज्य सरकार द्वारा नगरीय निकाय क्षेत्रों में अतिक्रमण, व्यवस्थापन, कब्जा भूमि को विक्रय कर पट्टा प्रदाय किया जा रहा है। अनुसूचित क्षेत्रों में नगर पंचायत अगर असंवैधानिक है तो ऐसी स्थिति में इन सभी प्रक्रियाओं पर तत्काल रोक लगाई जाए. 


#पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में संविधान के अनुच्छेद 244 यग के अनुसार नगर पंचायत जैसी व्यवस्था लागू नहीं हो सकती , यह बिल्कुल असंवैधानिक है जब तक के संसद इस संबंध में कोई कानून पास न कर दें.

Tuesday, August 30, 2022

छत्तीसगढ़ पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) नियम, 2022टिप्पणी

छत्तीसगढ़ पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) नियम, 2022
टिप्पणी

ग्राम स्वराज की परिकल्पना :-  दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 90 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए: उदारीकरण की नीति आई और ग्राम स्वराज की परिकल्पना की गयी.
एक ओर उदारीकरण की नीति के तहत देश के कई कानूनों में शिथिलता लाते हुए उद्योग धंधों को बढ़ावा देने के नाम पर कठोर नियमों में बदलाव किए गए और दूसरी ओर इस देश में सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया जिसके तहत 1992 में 73वा संविधान संशोधन अधिनियम लाया गया और उसमें जैसे केंद्र में लोक सभा है, राज्य में विधान सभा है, उसी प्रकार गांव में ग्राम सभा को जगह दी गई. इसके साथ ही ग्राम सभाओं को शक्ति दी गई कि गाँव के स्तर पर ग्रामसभा सभी तरह के कामकाज को अपनी परंपरा के अनुसार करने के लिए सक्षम है. गांधी जी के सपनों का ग्राम स्वराज को पूरा करने के लिए सबसे निचले स्तर पर पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से सशक्त ग्राम सभा की परिकल्पना की गई और संविधान की ग्यारहवीं अनुसूची के 29 विषयों को ग्राम पंचायत स्तर पर या ऐसा कहें कि ग्रामीण विकास की अवधारणा को लेकर ग्राम सभा को सशक्त करने के लिए सौंपा गया. 

संवैधानिक व्यवस्था:- पंचायती राज व्यवस्था देश में 1993 में लागू की गई लेकिन ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए जो प्रावधान संविधान में अनुच्छेद 243(ड) के रूप में जोड़ा गया उसमे कहा गया कि पंचायती राज व्यवस्था पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में लागू नहीं होगी.  इसका मतलब स्पष्ट है कि पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था जैसी कोई भी व्यवस्था पहले से नहीं थी इसलिए वहां पर यह लागू नहीं हो सकती है और यदि लागू करना है तो भारत सरकार को इसके लिए अलग से कानून बना के उसको विस्तारित करना पड़ेगा. 

अपवादों और उपन्तारणों के साथ लागू :- 1993 की पंचायती राज व्यवस्था को पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में भी विस्तार करने की बात संविधान के अनुछेद 243(ड) के पैरा 4 के उप पैरा (ख) में कही गई है. उसमे कहा गया है कि यदि संसद चाहे तो अपवादों और उपन्तारणों के साथ उसे विस्तारित कर सकता है. इसका मतलब है कि पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में सशर्त लागू होगी. संविधान के भाग 9 के अपवादों और उपान्तरणों (पेसा की धारा 4) के साथ लागू करने की बात संविधान का अनुच्छेद 243M(4)(b) में निर्देशित है, जो पाँचवी अनुसूची के पैरा 5(1) से लिया गया है. मतलब पंचायत कानून की साधारण सरंचना से अनुसूचित क्षेत्रों की विकेन्द्रित प्रशासनिक व्यवस्था अलग होगी जिनका रूढीजन्य विधि, सामाजिक और धार्मिक प्रथाओं तथा सामुदायिक संसाधनों की परंपरागत प्रबंध पद्धतियों के अनुरूप होना आवश्यक है। इसका अर्थ है कि संघ तथा राज्य सरकार के सारे कानूनों को अनुसूचित क्षेत्र में संशोधन कर के ही लागू करना होगा। 
इसी के तहत 24 दिसंबर 1996 को पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार) अधिनियम, 1996 देश के सभी अनुसूचित क्षेत्रों में लागू किया गया जिसे हम पेसा कानून के नाम से जानते हैं. यहां पर गौर करने वाली बात यह है कि आज 25 साल बाद भी इस कानून के क्रियान्वयन को देखेंगे तो यह सही तरीके से नहीं हो पाया है. ऐसे समय में इस कानून को लागू करने के लिए अभी 2022 में नियम बनें हैं. इसका क्रियान्वयन कैसे होगा यह बहुत बड़ा सवाल है क्योंकि सभी कानून जो पेसा की धारा 4 से असंगत है को पहले संशोधित कर के लागू करना होगा क्योंकि पेसा कानून के 1996 में लागू होने के बाद उसकी धारा 5 के अनुसार अनुसूचित क्षेत्रों में जो कानून प्रवृत थे उन्हें पेसा में दिए गए अपवाद और उपान्तरण के अनुसार एक  साल के भीतर सुधारते हुए संशोधन के साथ लागू किया जाना चाहिए था. लेकिन असल में हम देखते हैं कि आबकारी अधिनियम, पंचायत राज अधिनियम, भू राजस्व संहिता इत्यादि गिने चुने 5-6 कानूनों के अधिनियम/नियम में ही संशोधन किए गए और बाकी को नहीं सुधारा गया.

पेसा:- संविधान की 11वीं अनुसूची में 29 विषय हैं. उन 29 विषयों को पंचायत के माध्यम से गांव में क्रियान्वयन करना है. ऐसे में आप समझ सकते हैं कि कितने कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है और जो आज तक नहीं हुए हैं. पेसा ग्राम स्वराज की स्थापना के लिए महती भूमिका निभाने वाला कानून है जिसका नियम अभी 8 अगस्त 2022 को अधिसूचित हुआ है. भारत की अधिकांश जनसंख्या गांव में बसती है. वहां पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ग्रामीण विकास को ध्यान में रखते हुए यह यह कानून आने वाले समय में बहुत अहम भूमिका निभाने वाले हैं. 
पिछले 27 सालों में अभी तक ग्राम पंचायत को ग्रामसभा से बड़ा माना जाता रहा है लेकिन ऐसा नहीं है. ग्राम सभा सर्वोपरि है. पंचायत, ग्रामसभा की कार्यपालिका होगी और उनके द्वारा लिए गए निर्णय व अनुमोदन का क्रियान्वयन करेगी. लेकिन यह बात ग्रामसभा को ही नहीं पता है और उसमे जागरूकता की कमी है. इस जागरूकता की कमी के चलते पंचायत उच्च स्तर की संस्थाओं के माध्यम से निर्देशित और संचालित होती है जो कानून के विपरीत है. पेसा कानून की धारा 4 में स्पष्ट रूप से लिखा है कि भारतीय संविधान के भाग 9 में किसी बात के होते हुए भी राज्य का विधान मंडल उस भाग के अधीन कोई भी कानून नहीं बनाएगा जो उस के (क) से (ण) तक की विशेषताओं से असंगत हो. इसके तहत विधानसभा में बनने वाले सभी कानून जो अनुसूचित क्षेत्र में लागू होने वाले होंगे उन सभी कानूनों को बनाने के लिए या बनाने से पहले अनुसूचित क्षेत्रों के ग्राम सभाओं से परामर्श/सहमती लेना  अनिवार्य है. 

5वी अनुसूची:- मध्य भारत के राज्यों में सबसे बड़ा अनुसूचित क्षेत्र वाला राज्य छत्तीसगढ़ है जहाँ के भू–भाग का करीब 60 प्रतिशत भाग अनुसूचित है. इन 27 सालों में पंचायती राज व्यवस्था के माध्यम से जो विकास अनुसूचित क्षेत्रों में होना था वह नहीं हुआ है. त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था में ग्राम सभा को जो निर्णय लेने के अधिकार थे उस अधिकार को कम किया जा रहा है. यह इसलिए हो रहा है क्योंकि नियम में स्पष्टता का अभाव है. तब सवाल खड़ा होता है क्या पेसा नियम आ जाने से ग्राम सभाएं सशक्त हो सकेंगी? यह आने वाला समय ही बताएगा. जिस तरीके से पंचायती राज व्यवस्था को लागू किया गया वह गांव में व्यवस्था बनाने के बजाय उसे बिगाड़ने वाली व्यवस्था बनते जा रही है. ऐसे में सवाल खड़े होता है कि आने वाले समय में व्यवस्थाएं सुधरेगी क्या? जिस तरीके के जागरूकता होनी चाहिए वह आज भी नहीं है. 
यह सच्चाई है कि गाँव गणराज्य की मूल चेतना विकास की दौड़ में अनदेखी रह गयी है. वहां टकराव जैसी स्थिति बनती गयी है. आदिवासी इलाको में स्थानीय परंपरागत सामाजिक आर्थिक व्यवस्था और राज्य औपचारिक तंत्र के बीच की विसंगति गहराती गयी है जिसका मुख्य कारण है आदिवासी इलाकों में 5वी अनुसूची के प्रावधानों का ईमानदारी से अमल ना करना. आदिवासी इलाकों के परंपरागत व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए तथा लोकतान्त्रिक विकास के लिए 5वी अनुसूची के प्रावधानों का पालन तथा राज्य सत्ता से जुड़े नेतृत्व, विभागीय अधिकारी एवं कर्मचारीगण, पंचायत सदस्यों को इस पेसा कानून एवं नियम को आत्मसात करने के लिए बड़ा कदम उठाना होगा तथा गाँव के लोग को भी इस परिवर्तनकारी बदलाव को समझना होगा. लोग ग्रामसभा की गरिमामयी भूमिका का एहसास करें और आत्मविश्वास के साथ अपनी व्यवस्था का संचालन अपने हाथ में लेंगे तभी समाज के शोषण में कमी, समाज का सशक्तिकरण और आर्थिक विकास आदिवासी मानक परंपरा के अनुरूप हो सकेगा और राज्य की व्यवस्था के बीच गहराती विसंगति और बढ़ते टकराव में कमी आएगी.

प्रशासन और नियंत्रण :- संविधान की पांचवीं अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाली अनुसूचित जनजातियों, जो प्राचीन रीति-रिवाजों और प्रथाओं की एक सुव्यवस्थित प्रणाली के माध्यम से अपने प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन करते हैं और अपने निवास स्थान में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक जीवन को संचालित करते हैं, के प्रशासन और नियंत्रण के सम्बन्ध में पेसा कानून में प्रावधान किया गया है। इस सामाजिक परिवर्तन के युग में आने वाली चुनौती का सामना करने के लिए आदिवासियों की सांस्कृतिक पहचान और सामाजिक-आर्थिक परिवेश को छेड़े या नष्ट किए बिना उन्हें विकास के प्रयासों की मुख्य धारा में शामिल करने की अनिवार्य आवश्यकता महसूस की गई है. अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम सभाओं और पंचायतों को लोगों की परंपराओं और रीति-रिवाजों को सुरक्षित और संरक्षित करने का अधिकार दिया गया है, उनकी सांस्कृतिक पहचान, सामुदायिक संसाधन और विवाद समाधान और स्वामित्व के प्रथागत तौर-तरीके, गौण खनिज,  लघु वन उपज का स्वामित्व, आदि के सम्बन्ध में प्रावधान किये गए है.

पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन क्यों जरुरी है :- पेसा का प्रभावी क्रियान्वयन न केवल विकास लाएगा बल्कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में लोकतंत्र को भी गहरा व मजबूत होगा। इससे निर्णय लेने में लोगों की भागीदारी में वृद्धि होगी।  पेसा आदिवासी क्षेत्रों में अलगाव की भावना को कम करेगा और सार्वजनिक संसाधनों के उपयोग पर बेहतर नियंत्रण स्थापित करेगा। पेसा से जनजातीय आबादी में गरीबी और अन्यत्र  स्थानों पर पलायन कम हो जाएगा क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण और प्रबंधन से उनकी आजीविका और आय में सुधार होगा। पेसा पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में शोषण को कम करेगा क्योंकि वहां की ग्राम सभाएं उधार पर लेन-देन एवं शराब की बिक्री खपत पर नियंत्रण रख सकेगी एवं गांव बाजारों का प्रबंधन करने में सक्षम होगी। पेसा के प्रभावी क्रियान्वयन से भूमि के अवैध हस्तान्तरण पर रोक लगेगी और आदिवासियों की अवैध रूप से हस्तान्तरित भूमि वापस किया जा सकेगा. सबसे महत्वपूर्ण बात यह कि पेसा परंपराओं, रीति रिवाजों और गाँव की सांस्कृतिक पहचान के संरक्षण के माध्यम से सांस्कृतिक विरासत को बढ़ावा देगा।

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क्रमशः अगले पोस्ट में .........पेसा नियम की कमियों, अधिकारों को कमतर करते प्रावधानों, कानून के मूल भावनाओं के मूल हिस्से को अनदेखी करना,    प्रत्येक्ष लोकतंत्र के बजाय प्रतिनिधित्व लोकतंत्र, ऐसे कई सवाल, और सवालों के साथ जरूरी होगा समय पर इसको आत्म सात करते हुए इनकी शक्तियों को महसूस करना.....

Monday, August 22, 2022

9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस 2022 , नगरी

KBKS के विचार धारा से आप अनभिज्ञ है ऐसा मैं नहीं मानता। क्योंकि यह जो जन सैलाब है, दो खास विचार धारा सुनने के लिए आयें हैं, और खास करके नगरी विकासखंड जहाँ हम बहुत पहले से लगभग 2005-06 से काम कर रहे हैं। ये एक ऐसा विकासखंड है जिसको आगे अपने वक्तव्य में अपनी बात रखूंगा,  यह विकासखंड जिसमें एशिया का सबसे बड़ा बायोडायवर्सिटी वाला जंगल है।

 मैं अपनी बात जिसमें *जल -जंगल-जमीन पर केंद्रित* करते हुए रखूंगा। आज जिसके लिए उपस्थिति हुए हैं *विश्व आदिवासी दिवस* के अवसर पर मैं थोड़ा सा बताना चाहता हूं कि *विश्व आदिवासी दिवस* पर।

 इस दुनिया में *यूएनओ* ने इसको मनाने पर क्यों सोचा? इस बात को आप सभी को जानना चाहिए। केवल आदिवासी ही नहीं अपितु पूरे जन समुदाय को समझना चाहिए । ऐसा अवसर हमें क्यों मिला ?  किसी समुदाय  विशेष के लिए इस दुनिया ने सोचा. 193 देशों ने सोचा। *संयुक्त राष्ट्र संघ* ने सोचा,  कि  दुनिया मे आदिवासी अपनी विशेष प्रकार के कई संस्कारों से, उनके जीवन संरक्षण, जीवन पद्धति, जीवन शैली के साथ में जीवन यापन करते हैं। उनको कैसे अच्छा बनाए रखें। उन उद्देश्यों को लेकर के, खास करके दुनिया की आदिवासी अधिकारों को बढ़ावा देना और उसकी अधिकारों की रक्षा करना और उनकी योगदान को स्वीकार करना, उनके योगदान को निरंतर बनाये रखना। जिन्होंने आज तक निरंतर  उन परम्पराओं को वर्तमान में बोले तो 2022 में जिस प्रकार से हम जिंदगी जी रहे हैं उस स्थित तक  पहुँचाये हैं । 


आप सब देखते होंगे, पिछले 2 सालों में कोरोना का काल था जिस तरीके से वैश्विक महामारी ने पूरे दुनिया को घेरा यह नगरी भी अछूता नहीं था या छत्तीसगढ़ या भारत भी अछूता नहीं था। हम उस पर चर्चा करेंगे आने वाले समय में।  लेकिन मैं थोड़ा से विश्व आदिवासी दिवस पर *विश्व आदिवासी दिवस* की बात करना चाहता हूं. 1982 में आदिवासी आबादी को लेकर के  संयुक्त राष्ट्र संघ की एक वर्किंग ग्रुप बना था उनका पहला मीटिंग हुआ था, उस मीटिंग को लेकर के आगे उनकी 1994 में इसकी घोषणा किया गया की आदिवासी अधिकारों को लेकर के, आदिवासी संस्कृति को लेकर के, आदिवासी सभ्यता को लेकर के, उनके अधिकार को संरक्षण करने के लिए हम प्रतिवर्ष 9 अगस्त मतलब आज के दिन उसको वैश्विक रूप से मनाएंगे। सालाना यह आयोजन होगा अपने अलग-अलग स्तरों पे। 

वह किसके लिए?  सामाजिक, संस्कृति, धार्मिक, आर्थिक, कानूनी व  राजनीतिक इन विषयों को लेकर के सबको कैसे बरकरार रखा जाए करके, उसको कैसे संरक्षण किया जाए, इस बात को लेकर के रखा गया। मैं थोड़ा से यह बात भी बताना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से, इस दुनिया के 193 देशों में से 90 ऐसे देश है जिसमें 476 मिलियन आदिवासी रहते हैं, और दुनिया के जनसँख्या  के 6.2% लगभग आबादी का हिस्सा है , जो दुनिया को एक सीख देते हैं दुनिया को एक परंपरा के साथ  उनके रीति नीति के साथ चलने का आह्वान करते हैं और दूसरों को सीख देते हैं। 
और देखते हैं कि 80% से ज्यादा जैव विविधता जहां सुरक्षित है वहां केवल आदिवासी रहते हैं।  जहां आदिवासी है वहां बायोडायवर्सिटी दिखेगा। आप शहरों में ढूंढ लेंगे शहरों में नहीं मिलेगा। और वैसे ही आप देखते हैं 90% से ज्यादा बायो    डायवर्सिटी के तंत्र हैं एक दूसरे के जीव परस्पर सह जीविता जीने की कला है,  90% एरिया आदिवासी क्षेत्र में मिलता है यह जो छोटा मोटा आंकड़ा  नही है, जो इस मंच के जरिए आपको बताना चाहता हूँ यह एक अद्भुत आंकड़ा है इस बात को आप सब को समझना चाहिए। पूरी दुनिया की बात करें उस जगह में जाएंगे तो आपको इन निवाह नई मिलेगा  थोड़ा और आगे जाएंगे धुर्वा है दुरला है, हल्बी है, गोंड़ी है, खुडूक हैं, अपने अपने आदिवासी समुदाय में  बोली भाषा है। इस दुनिया में बहुत सारे देश हैं  जो आज के दिन ये दिवस मना रहे होंगे, जैसे आज के दिन हम अभी नगरी में बैठ के इस आयोजन में हम शरीक हुए हैं इसके गवाह बने हैं वैसे ही हैं दुनिया में लोग आज 9 अगस्त के दिन *विश्व आदिवासी दिवस* मना रहे हैं। कहीं ना कहीं मैं जिन बातों को बोल रहा हूं *उनके संरक्षण के लिए हमें संकल्प लेना पड़ेगा*। 

यदि इसी को जो दुनिया के बारे में बात किया, भारत के बारे में बात करूं  तो भारत में 104 मिलियन आदिवासी रहते हैं जो अपनी संस्कृति सभ्यता के संरक्षण को लेकर के पूरे भारत में  जो अपनी पीढ़ी को सोपते जा रहे हैं और इनकी आबादी लगभग 8.6 प्रतिशत है जो देश को सिखाती है कैसे  उनका जीवन दर्शन है पूरे इंडिया की बात करूं तो सबसे ज्यादा 65 जनजाति समूह है जिसे उड़ीसा में हैं और हमारे छत्तीसगढ़ में 42 जनजाति हैं जिसमें आप सभी सम्मिलित हैं । जैसे आप सभी बैठे हैं मैं जिसको बात कर रहा हूं चाहे गोंड हो, उरांव हो, हल्बा हो, कवंर हो,  यंहा इतनी जनजाति समूह है वह सब मिलकर के अपने अपने एरिया में *जल जंगल जमीन* को कैसे संरक्षण करते संवर्धन करके रखें, उस पर निरंतर काम करते रहते हैं। 

और यह जरूरी नहीं है कि हम 365 दिन में केवल 9 अगस्त आएगा और उसी दिन हम संकल्प लें और उस दिन शपथ लें और संकल्प करें कि आगे आने वाली पीढ़ी को क्या देने वाले हैं यह सही नहीं है। मैं आपको बताना चाहता हूं जो आदिवासी कौम के जितने भी सारे सगा बंधु हैं  वे साल भर ये काम करते हैं, जिसमें आपके जितना पंडूम हैं, पर्व है, त्यौहार है, जिसमें आप सारे अपने जीवन दर्शन, को देखते हैं जिसमें आप अपनी जीवनशैली को देखते हैं चाहे आप हरेली को देखेंगे जिसमें आपको जंगल से दिखेगा आप पोला को  देखेंगे जंगल से दिखेगा चाहे। आप आदिवासी पंडुम को उठाकर देख लीजिए जल जंगल जमीन से आप बाहर नहीं हैं इस बात को यदि मान ले तो आप जल जंगल जमीन से बाहर के नहीं हैं आपको कभी शहरों में रख दिया जाए या आपको शहरों में रहने के लिए छोड़ दिया जाएगा तो आप मानिए,  आपको ग्रामसभा है गांव हैं इस मैं इस बात को कहना चाहता हूं इस मंच पर मंचासीन  अतिथि और मंच को भी आग्रह करना चाहता हूं आज विकास के दौर में इस आपाधापी के दौड़ में हम जो *आत्मनिर्भरता का इकाई* है आप मानते हैं ओ आत्मनिर्भरता का इकाई कौन है मैं बताना चाहूंगा इस मंच के माध्यम से आत्मनिर्भरता का इकाई *ग्रामसभा* है। गांव हैं । आज  विकास की आपाधापी की दौड़ में  उन गांव में आत्मनिर्भरता की इकाई को छोड़ कर के शहरों की ओर दौड़ रहे हैं। आपको मैं बताना चाहता हूं की यदि गांव में आत्मनिर्भरता की इकाई है तो इस बात को बोल रहा हूँ इसका मतलब समझना एक गांव एक ब्यक्ति गांव में एक महीना  या 2-3 महीना छोड़ दिया जाय वह जिंदा रह सकता है लेकिन मैं आपसे पूछना चाहता हूँ  यदि वही ब्यक्ति को आप रायपुर,मुबई,दिल्ली में छोड़ दे । क्या वह जिंदगी जी सकता है ? आप बोलेंगे नही। क्यो?  क्योंकि वह बाजार वाद को सीखता है। क्यो?  वह पूंजीवाद को सिखाता है। और जो आदिवासी कौम है याद रखेगा इसलिए आत्मनिर्भर है एक दूसरे के ऊपर समन्वय बीठाकर  परस्पर जिंदगी जीते हैं । वह कभी पूंजीवाद या बाजार वाद व्यवस्था की ओर नहीं लेकर जाता। याद रखिएगा और इसी व्यवस्था को इस देश ने स्वतंत्र भारत में आगे बढ़ा रहा है।

 मुझे पेसा के बारे में बोलने कहा गया है मैं पेसा के बारे में आपको बताना चाहता हूं इस देश में दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत में 90 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए,  दो बड़े बदलाव कौन से हैं? दो बड़े बदलाव में से पहला उदारीकरण नीति  है जो 90 के दशक में लाया गया।  इस देश में एक और  बदलाव हुआ, दूसरा सत्ता का विकेंद्रीकरण (पावर का डिसेंट्रिलिशन ) और जिस दिन सत्ता का विकेंद्रीकरण हुआ उस दिन पूरे संविधान में संशोधन किया गया। यह आप सब को समझना चाहिए सविधान के ऊपर यहां कोई नहीं है चाहे आम जनता हो, चाहे कोई बड़ा अधिकारी हो या चाहे कोई बड़े राजनेता हो।

और उस दिन सत्ता का विकेंद्रीकरण करते हुए सविधान में 73 वा संशोधन करते हुए 1992 में *त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था* को जगह दी गई। बिल्कुल ध्यान से सुनिएगा इस बात को क्योंकि आज 9 अगस्त है मैं *आज आपको  स्वशासन की इकाई के बारे में बताने आया हूं* वह स्वशासन की इकाई कैसे चलने वाला है आप को समझना चाहिए। जब संविधान संशोधन किया जा रहा था संसद में डिबेट चल रहा था और उसके विचार विमर्श करने के बाद जब 73 संशोधन को संविधान भाग 9 में जोड़ा गया, तो आपको जानना चाहिए वहां एक शब्द आया *ग्रामसभा* करके।  वह ग्रामसभा  पहले के सविधान में  नही  दिखेगा 73 संशोधन के पहले 1990 के पहले में नहीं था और वही ग्राम सभा जिसमें आप सभी मेंबर हैं कि आप अपने अपने गांव में *ग्राम सभा* का सदस्य हैं जहां आप वोट देकर के विधायक बनाते हैं  सांसद बनाते हैं, जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य, सरपंच के लिए चुनाव करते हैं वह ग्रामसभा है जिसका आप मेंबर है। उसके बारे में उसके अधिकार के बारे में आपको जानना होगा। इसलिए मुझे इस मंच में आज बुलाया गया है और मैं वो बताने वाला हूं, यहां जब त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को जगह दी गई और सत्ता का विकेंद्रीकरण किया गया इसका मतलब समझना कि,  संसद ने कहा मेरे पावर को  डिसेंट्रीलाइज कर रहा हूं। इसका मतलब समझना जो निर्णय हम रहे हैं,  वो निर्णय आप ले सकते हैं हमें कोई आपत्ति नहीं होगी। इसका मतलब क्या होता है?  और ऐसा है तो जब ग्राम सभाओं में त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्थाओं को जगह दी गई , मैं बताना चाहता हूं कि उनके लिए ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ा गया। *सविधान मे ग्यारहवीं अनुसूची* जोड़ते हुए उनके 29 विषय को आप को दिया गया। गांव को दिया गया ।गांव डिवहार को दिया गया। उस विषय में देखेंगे सड़क है, पानी है, बिजली है, स्वास्थ्य है, शिक्षा है, जो संचार हैं, आपकी रोजगार की बात है, ऐसे टोटल 29 विषय हैं। जो 29 विषय गांव को दिया गया,  त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्थाओं को दी गई और कहा गया कि आप अपने गांव में अपने विकास की गाथा लिख सकते हैं। आप अपना निर्णय खुद ले हमें उससे कोई आपत्ति नहीं होगी। आप इसीलिए देखते होगें । यदि सभी नगरी ब्लाक के आए होंगे तो सभी लोग अपने अपने गांव के ग्राम सभा के मेंबर हैं जब तक कि आप कोई निर्णय नहीं लेंगे सरकार भी आप के खिलाफ कुछ भी नहीं लेगी सरकार शासन प्रशासन आपसे कहीं ना कहीं कागज में अनुमोदन मांगता है। उसका मतलब समझना है , आप सब उस संसाधन की इकाई अहम अंग है। आपके बगैर कुछ लोग नहीं कर सकते।


  कि ऐसा सविधान ने कहा है जिस दिन सत्ता सत्ता के केंद्रीकरण हुआ उस दिन आप सबको विषय दिए गए उसका निर्णय आप सबको लेना है करके यह अच्छी बात है।

 लेकिन कितने लोगों को पता है?  यह अच्छी बात है क्या नगरी में लागू हो सकता है?   मैं बताना चाहता हूं यह व्यवस्था नगरी में लागू नहीं हो सकता । इसका मतलब मैं समझ रहा हूं कि यहाँ जनपद पंचायत अध्यक्ष बैठे हुए हैं बहुत सारे  सरपंच, पंच,  जनपद सदस्य, जिला पंचायत सदस्य होंगे। आप सबको याद होंगा जो व्यवस्था यहाँ पे  लागू नहीं हो सकती। 

 इस मंच माध्यम से आपको बताना चाहता हूं तब आप बोलेंगे यहां पर जनपद का सदस्य, जनपद पंचायत अध्यक्ष बैठे हुए हैं सरपंच बैठे हैं कैसे हो गया। इस बात को आप सब को समझना चाहिए कि ओ क्यों हुआ? 

 अनु.*243m* सबको  सविधान सीखने की जरूरत नई है संविधान के अनुच्छेदों को याद रखने की जरूरत नहीं है लेकिन व्यवस्था आपके लिए बनाया गया, व्यवस्था को आप को जानना जरूरी है। पंचायती व्यवस्था है जो अनुसूची 11 है वह पाँचवी अनुसूचि क्षेत्र में लागू नहीं होगी। नगरी  ब्लॉक एक विशेष क्षेत्र में है जिसे आप पांचवी अनुसूची क्षेत्र कहते हैं जो पांचवी अनुसूची क्षेत्र है वहां पर पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं हो सकता। सीधा और सीधा लागू नहीं हो सकता। तो कैसे लागू होगा?  संसद को पावर है यदि त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था को मतलब पानी है,सड़क, बिजली है,  आदि यह व्यवस्था यदि नगरी  ब्लॉक मतलब पाँचवी अनुसूचि में देना है तो एक विशेष कानून लाएंगे।

 वो 243m के 4 b में लिखा है और उसमें कहा है संसद को यदि यह व्यवस्था लागू करना है तो संशोधन और अपवाद के साथ ही लागू होगी।  *अपवाद और  उपांतरण* क्या है आपको पता है?  बहुत कम लोगो को पता  नही होगा।  वह अपवाद उपांतरण के साथ कानून लाया गया है वह कानून का नाम है *पेसा*।

 मैं थोड़ा हाथ खड़े करके जानना चाहता हूं  कितने लोग सुने है *पेसा कानून* करके।   बहुत कम लोग सुने है कितने वोट देते हैं हाथ खड़े करेंगे।  कितने लोग हैं जो सरपंच चुनाव करते है जिसमे वोट देते हैं बहुत सारे लोग अभी भी कन्फ्यूजन है पेसा क्या बला की चीज है ? आपको समझना चाहिये नगरी में OBC समाज का आंदोलन, कोंडागांव, चारामा आदि में  हुआ।मैं आप सबको बताना चाहता हूं *अपवाद और उपांतरण 243M b के तहत लाया गया कानून है उस कानून के नाम पेसा है।

आप नहीं चाहते? कि आप के क्षेत्र में पानी, बिजली, सड़क,  स्वास्थ्य, शिक्षा  की सुविधा चाहिए?   लेकिन आप बोलेंगे- हमे सुविधा चाहिए।   यदि आपको सुविधा चाहिए तो पेसा कानून भी चाहिए।  अगर पेसा नहीं होता तो आपके सरपंच न होते,  न तो जिला पंचायत सदस्य ना जनपद सदस्य होते हैं। इस बात को आप सबको समझना चाहिए।  बहुत सारे लोगों को गुमराह करके रखा गया है कई संगठनों के माध्यम से पेसा आएगा तो ओबीसी लोगों को हानि होगा, पेसा आएगा तो आदिवासी लोगों का विकास होगा।  

आपको मैं बताना चाहता हूं इस प्रदेश का जन्म नहीं हुआ था छत्तीसगढ़ का जन्म तो 2000 में हुआ। छत्तीसगढ़ का जन्म नहीं हुआ था तो मध्य प्रदेश के जमाने में 1996 में इस प्रदेश में पेसा लागू हुआ। उसमें से जिसमें  यह नगरी ब्लाक भी शामिल है। नगरी ब्लाक में भी उस दिन से पेसा चालू हुआ।  उस दिन से आप सरपंच चुनाव करना चालू कर दिए, जिस दिन आप सरपंच चुनाव चालू कर दिए उस दिन से पेसा लागू हो गया।  लेकिन अभी जो छत्तीसगढ़ कर रही है वह क्या है?  यदि अगर आप बोलेंगे तो वह केवल पेसा कानून का एक नियम मात्र है। नियम पहले भी थे वह नियम पेसा के हिसाब से नहीं था। जितने भी इस क्षेत्र में विद्यमान प्रवृत्त विधियां रही है उन विधियों में छोटे-छोटे संशोधन और अपवाद के साथ में आगे बढ़ाये गए । 


आप देखे होंगे आबकारी अधिनियम के तहत में बहुत सारे लोगों को पता होगा आदिवासी लोगो को कितना शराब का छूट है? कोई बता पाएंगे?  आप बोलेंगे 5 लीटर छूट है वह पेसा की देन है। आप बोलेंगे 170 ख कहा था  जिनमे आदिवासियों का जमीन वापस किया जाता है यदि नान ट्राईबल अगर छल कपट से ले लिया है, छीन लिया है,  तो वह वापस हो जाता हैं , नगरी में यह व्यवस्था है। मैं आपको बताना चाहता हूं पेसा में उस विभाग में sdm होता है पहले एसडीएम सुनवाई करते थे उस व्यक्ति का पेसी में पेसी बुलाया जाता था पेसी होने के बाद एसडीएम देखता था सही है कि नहीं है।  उसके बाद वो जमीन मूल वारिश  को हो जाता था। लेकिन पेसा के कारण संशोधन किया गया भू राजस्व संहिता 1959 में 170 ख में 2(क) जोड़ा गया। सबको याद रखना चाहिए जमीन की मालिक आप है और आजकल जमीन के बारे में आपको इस कानून को जानना जरूरी हो जाएगा,  इसलिए 1959 धारा 170 का 2 (क) जोड़ा गया और जोड़ते हुए पेसा ने कहा पावर देते हुये ग्राम सभाओं को सक्षम इकाई के रूप में आपको निर्णय लेने का अधिकार दिया गया। यदि जिस दिन ग्रामसभा यह निर्णय ले लेती है की मूल वारिस किसका है और किसको देना है उनको केवल अनुभाग अधिकारी SDM कब्जा दिलायेगा ।  राजस्व विभाग केवल उनको कब्जा दिलाने का काम करेगा। इस बात को बहुत सारे लोगों को जानकारी नहीं है।  

इसी तरीके से जब पेसा की  बात करेंगे बहुत सारे लोगों में दिग्भ्रमित करने बात आई है पिछले दो-तीन सालों में उनको यह कहा जाता है पेसा आएगा तो ओबीसी को उसमें जगह  नहीं दिया जाएगा। मैं इस मंच के माध्यम से पूरे छत्तीसगढ़ वासियों के लिए कहना चाहता हूं की पेसा में  ओबीसी को जितना जगह दिया गया है। मैं इस मंच के दावा करता हूं अगर ओबीसी समाज के सभी बंधुओं इस मंच पर मंचासीन हैं तो आपको अगर कोई कानून 25% से ज्यादा आरक्षण देता होगा वह कानून पेसा है।  इस बात को आप को जानना चाहिए।  हमारे आदिवासी समुदाय के कौम के लोगों को भी जानना चाहिए।  पांचवी अनुसूची क्षेत्र इसलिए है नहीं तो छठी अनुसूची हो जाता।  क्योंकि नगरी ब्लॉक में आदिवासी की जनसंख्या 50% से ज्यादा है इसलिए यहां पांचवी अनुसूची क्षेत्र है पांचवी अनुसूची क्षेत्र में हमारे गांव में पूरे 12  बानी बिरादरी के लोग निवास करते हैं जिसमें अपना धर्म,संस्कृति है, वेशभूषा पहनावा है अपने जाति धर्म मानने और अपने अपने अनुसार रोटी बेटी का व्यवस्था करने का अधिकार है इस व्यवस्था को पेसा में अधिकार दिया।
 और पेसा की बात करेंगे तो पंचायती राज कानून 129 ङ. देखेंगे  में देखेंगे तो ओबीसी के लिए आरक्षण अधिकार दिया गया है मैं इस मंच के माध्यम से पूरे मंच को बताना चाहता हूं कि आप आरक्षण को कैसे समझते हैं पेशा ने कहा कि 50 से आधा आदिवासियों का आरक्षण कम नहीं होगा मतलब 50 से कम नहीं हो सकता ऐसा कानून ने कहा बचे 50% 51 से लेकर के75 तक जो आरक्षण है   हव sc के लिए है मैं पूछना चाहता हूं नगरी में इससे भी गांव से लोग आए हैं sc  का जो प्रतिशत है कहीं ना कहीं गांव में बोलेंगे शेड्यूल ग्राम में बोलेंगे 3 प्रतिशत ही होगा तो तो बचे कौन वह ओबीसी समुदाय जो गांव में बसे हैं निवास करते हैं 51 से लेकर 75% तक ओबीसी को जाता है आप किसी भी पंचायत बॉडी जनपत को उठा कर देख लीजिए  जिला पंचायत व्यवस्था को उठाकर देख लीजिए आपको मिलेगा लोगों को भ्रमित किया जा रहा है लोगों को भ्रमित किया जा रहा है पेशा कानून आएगा तो आपके अधिकारों का हनन होगा आपके कोई हनन नहीं होगा आपको व्यवस्था देने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार आगे बढ़ रहा है मैं धन्यवाद देना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से छत्तीसगढ़ सरकार को पैसा के नियम को लेकर के 1997 में बन जाना चाहिए थे लेकिन उसने कभी सोच नहीं बनाया था आप जैसे लोग समाज के उनके इतनी जानकारी साथी हैं उसने बीड़ा उठाया छत्तीसगढ़ सरकार को वापस ड्राफ्ट दिया सर सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले ड्राप्ट दिया और सरकार ने स्वीकारा और पेपर में भी पड़ा है जनजाति सलाहकार परिषद में भी और कैबिनेट में भी बर्खास्त कर दिया आपको आने वाले दिनों में आपके स्वास आसन की इकाई के लिए एक बेहतरीन नियम आपके हाथों में आएगा आप सोच लीजिए 25 सालों से बिना नियम के चला रहे हैं दूसरा  के साथ जिंदगी जीते आ रहे हैं क्या हुआ नियम आने के बाद उसको छोड़ दिया जाएगा ऐसा कतई नहीं आप को समझना होगा की आपके कान में कोई दूसरा व्यक्ति है जो आप को भड़का रहा है ओबीसी समाज के साइड से आदिवासी समाज साइट् से अगर कहीं भी भ्रमित करने वाली बात हो तो मेरा फोन नंबर है मेरा साथी है आपको क्रियलिटी कर दूंगा मैं इस बात को कह रहा हूं कि छत्तीसगढ़ के पेशा मैं अध्ययन कर रहे थे तब हम पूरे देश के अध्ययन करने का अवसर मिला इस देश में जितनी मध्य भारत राज्य में जहां अनुसूचित जनजाति क्षेत्र आदिवासी क्षेत्र हैं 10 राज्य हैं जिसको आप बोलते हैं पांचवी अनुसूची क्षेत्र है जैसे आप बोलते हैं नगरी पांचवी अनुसूची क्षेत्र है वैसे मानपुर ब्लॉक है डौंडी ब्लाक है पूरे बस्तर संभाग है वैसे आपका सरगुजा संभाग है के इन एरियाओं के त्रिस्तरीय पंचायत व्यवस्था के लिए विशेष प्रधान की गया है और इसी के साथ आप देखते होंगे जितने भी सारे सरपंच हैं वह केवल आदिवासी बनी हुई हैं अब यह आदिवासी क्यों बने हैं इस बात को लेकर प्रश्न अपने आपको आता होगा क्यों बनना चाहिए यदि मैंने कहा तो 50% से कम नहीं हो सकता तो उसका आरक्षण है आदिवासी तो हो ही जाता है इसलिए देखेंगे सरपंच आदिवासी है जनपद अध्यक्ष आदिवासी हैं जिला पंचायत आदिवासी है और यह पेशा के कारण है जिस दिन आप पैसा को बोलेंगे यह कानून हमारे लिए गड़बड़ है पेशावापस कीजिए बोलोगे तो ग्यारहवीं अनुसूची इस एरिया में संचालित करने के लिए कोई ऐसा कानून नहीं है वही व्यवस्था है जो 11वीं अनुसूची लाभ होता है वह पेशा है मुझे लगता है कि पेशा इतना बाद रखता हूंइसको बात करूंगा तो मंचासीन मंच है इसको भी सुनना है जानना चाहेंगे आपके अनुभवों को मुख आगरा करना चाहेंगे मैं जो दूसरी बात कहना चाहता हूं हम पूरे दुनिया के लोग जैसे हम भी शामिल है आप भी शामिल है मैं नगरी की बात नहीं छत्तीसगढ़िया केवल भारत की बात नहीं कर रहा हूं हम दुनिया के लोग  जो आदिवासी गांव से हैं आप दुनिया को जल जंगल जमीन देते हैं क्या देते हैं जल जंगल जमीन है मैं इस बात के ऊपर बोलता हूं कि आप समझना क्योंकि आप मचंदूर से लेकर के नगरी से लेकर के मानपुर मौला से लेकर के कोलकाता जाएंगे तो जंगल ही मिलेग सरगुजा की बेल्ट में जाएंगे तो आपको जंगल ही मिलेगा जंगल वही मिलेगा जहां आदिवासी लोग रहते हैं  जंगल कहां मिलेगा जंगल वाहन मिलेगा जहां आदिवासी की आबादी है वरना रायपुर में तो जंगल सफारी दिखाने वाला जंगल मिलेंगे अब आप सोचते होंगे कि वह जंगल क्यों हैं ओ जंगल क्यों हैं आप इस बात को समझना चाहिए यदि आप गोंड हैं गोंड जनजाति में पैदा लिए हैं 11 को नहीं हो सकता चाहे उराव हो या संतान हो एक जाति का उदाहरण दे रहा हूं यदि आप गोंड जाति से हैं तो गोंड जनजाति कोयतुरीन टेक्नोलॉजी से चलता है कोयतुरीन टेक्नोलॉजी क्या होता है आपको इस बात 9 के दिन आपको समझना चाहिये सीखने का अवसर है अब यहां आ कर के वापस जाने का दिन नहीं है आपको चिंतन करना चाहिए यदि आप गोंड हैं गोंड जनजाति से हैं आप कोई तो कोयतुरीन व्यवस्था से संचालित होते हैं

यह व्यवस्था केवल गोंड के लिए नहीं है यह व्यवस्था पूरे आदिवासीयों की  ब्यवस्था है कोयतोरीन  व्यवस्था है । आदिवासी पूरा टोटम व्यवस्था से संचालित होते हैं यदि आप टोटम व्यवस्था से संचालित होते हैं तो किसी से  भी पूछ लीजिए,  आपके पड़ोसी जो अगल-बगल  में बैठे हैं आप एक जीव, एक जंतु और एक पेड़ को कभी जिंदगी में न ही उसको मारेंगे, न ही काटेंगे और न ही खाएंगे।  अभी यह व्यवस्था है कि नहीं मैं जानना चाहता हूं आप हाथ खड़े करेंगे बतायें।  आप जाने या ना जाने अपने पूर्वजों से यह सीख लिया है,  यह सीख हम  सब आने वाली पीढ़ी को हस्तांतरित करते आ रहे हैं। आप  ऐसे में सोच सकते हैं कि वह जंगल पूरा कट सकता है?   एक गांव ऐसे रहेगा पूरा समुदाय एक पेड़ को कभी जिंदगी में नहीं काटेगा। कोई सरई को नहीं कटेगा, कोई महुआ को नहीं काटेगा, कोई साजा वृक्ष को नही काटेगा, ऐसे ही अपने अपने गोत्र के एक एक पेड़ को नही काटेगा।  इस तरीके से आप में कोई कछुआ को नहीं मारेगा, कोई बकरा, कोई सांप, तो कोई कछुआ इस प्रकार से कई ऐसे जीव जंतु है जिसको आप देव के रूप में मानते हैं। यह एक टोटम व्यवस्था है  ऐसे में देखा जाए तो 750 गुणा 3 कुल 2250  पेड़ पौधे, जीव जंतु की रक्षा करते हैं, और यह दुनिया में है केवल छत्तीसगढ़  या नगरी की बात कर रहा हूं ऐसा कभी मत मानना। दुनिया में कहीं भी चले जाईए आप रिसर्च करिए, आप रिसर्च पेपर को पढ़िए, आपकी टोटम व्यवस्था पूरा सदियों से है जब वैज्ञानिक लोग इस शब्द को इज़ाद नहीं किये थे तब से हमारे पूरखों ने अपनी पारंपरिक ज्ञान का हस्तांतरण करते आ रहे हैं,  वैसे ही जो आजो काको हैं आने वाली पीढ़ी को निरंतर  अपनी पारंपरिक ज्ञान को हस्तांतरित करते आए हैं।

 मैं आपको बताना चाहता हूं 9 अगस्त 2022 का थीम है संयुक्त राष्ट्र संघ ने जो हमको थीम दिया है। यह सबको पता होना चाहिए यह वही आजो काको का  पारंम्परिक ज्ञान हैं जो पारंम्परिक ज्ञान है जो  पीढ़ी  के नाती पोती है आने वाली नाती पोती को  हस्तांतरित करना चाहते हैं उनको ज्ञान आप देने वाले हैं यह व्यवस्था कैसे कायम होगी आप पूछेंगे तो मैं बताना चाहता हूं आज हमारे साथ में माननीय मुख्यमंत्री जी के कर कमलों से जो हमारा  नगरी का कोर क्षेत्र हैं सीतानदी अभ्यारण क्षेत्र है उस क्षेत्र के सामुदायिक  वन संसाधन का हक का दावा संयुक्त रुप से 3 गांव एक जंगल को क्लेम किये हैं,  मतलब समझ रहे?  मतलब मेरे  जंगल जमीन में हम ही प्रबंधन करेंगे, आप इस बात को समझ रहे हैं। माननीय मुख्यमंत्री छत्तीसगढ़ सरकार को इस मंच से धन्यवाद देते हैं उन्होंने समझा और स्वीकार किया कि आदिवासियों को उनके *जल-जंगल-जमीन* से अलग नहीं कर सकते उनके प्रबंधन का अधिकार उनको देना होगा। 

इसीलिए पिछले समय 2019 में जब दुगली  में एक बड़ा कार्यक्रम हुआ था  जबर्रा गॉव के लोग यहां आये हुए हैं आप सबको आगह करना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से कि छत्तीसगढ़ सरकार ने अहम पल था वहां जबर्रा में साढ़े तेरह  हजार एकड़ जंगल गांव वालों को प्रबंधन का अधिकार देते हुये एक संदेश दिया कि इस देश मे छत्तीसगढ़ भी किसी से पीछे नहीं है।

हां क्यों नहीं है?  क्योंकि मैं आपको बताना चाहता हूं यह आकड़ा आपके हाथ,आपके मुंह में होना चाहिए, जबान में होना चाहिए, पूरे देश भर में  जो मध्य भारत में 10 राज्य में जहां पांचवी अनुसूची क्षेत्र  लागू है उनके सबसे बड़ा भाई छत्तीसगढ़ है ।

ऐसा क्या चीज है सबसे बड़ा भाई छत्तीसगढ़ है? छत्तीसगढ़ का जो बेल्ट है मध्य छत्तीसगढ़ बोलेंगे वही केवल नान शेड्यूल एरिया है जहां पांचवी अनुसूची क्षेत्र लागू नहीं है । बाँकी पांचवी अनुसूची क्षेत्र सरगुजा  से लेकर के सुकमा कोंटा तक जाएंगे पूरे 20 जिलों  ( 14 जिला पूर्ण और 6 जिलों में आंशिक) में पांचवी अनुसूची क्षेत्र लागू है। वह पांचवी अनुसूची क्षेत्र में ही पेसा लागू है और उन्हीं क्षेत्रों में ज्यादातर जंगल है। छत्तीसगढ़ सरकार ने मान लिया है दुर्ग, बेमेतरा रायपुर में तो जंगल ही नहीं है,  इसका मतलब वहां जंगल सफारी  जैसे जंगल बनाना जरूरी है। 
आप जंगल सफारी बनाना चाहते हैं अपनी एरिया को? तो आप बोलेंगे नहीं .इसका मतलब आप के पास जो जंगल है उसे आप सुरक्षित, संवर्धित करना चाहते हैं उसे कैसे प्रबंधित करना चाहते हैं उस लाइन में आगे बढ़ईये।  इसलिए हमने एक नारा दिया। एक मुहिम चलाया।

 *एक कदम*
             *गांव की ओर*
                      *ग्राम सभा सशक्तिकरण*
                                *अभियान*
और सारे लोग 9 अगस्त को,  बहुत सारे युवा साथी इस मंच में, इस बीच में नहीं दिख रहे होंगे, वह लोग आज गांव की ओर गए हैं।
 जो छत्तीसगढ़ सरकार कम हुई है सारे गांव में जो 12000 गांव में शेड्यूल एरिया के लगभग उन गांव में लगभग छत्तीसगढ़ सरकार 4000 गांव में सामुदायिक अधिकार दे पाई है उस मुहिम को आप पैसे लेकर जाएंगे इस मुहिम में एक कदम गांव की ओर अभियान पूरे प्रदेश में चल रहा है और हमारे साथी आज गांव में गए हैं और गांव में समुदायिक वन संसाधन के अधिकार के बात कर रहे हैं जिद्दी आप सामुदायिक वन संसाधन अधिकार का बात करेंगे उस दिन आपकी जैवविविधता को बचा रहे हैं आप समझ रहे होंगे कि क्या बोलना चाह रहा हूं एक लाइन में मैं आपको बोलता हूं थोड़ा समझ में आ जाएगा मैं इतना देर से बोल रहा हूं क्या समझ रहे हैं मुझे नहीं पता मैं 1,2, 3 बोलूंगा और सभी लोग आधा घंटा के लिए अपनी सांस रोक देंगे कितने लोग रुके यह पॉसिबल है क्या तो आप बोलेंगे मैं मर जाऊंगा आधा घंटा तक सांस नहीं रोक सकता  कोरोना कॉल को किसी ने भुला है क्या हमारे दिग्गज नेता यहां बढ़ते थे सामाजिक नेता हम उनसे बिछड़ गए उनका आशीर्वाद हम को मिलता था हम उन से सीखते थे आपको जिस बात गहराई से कहता हूं उसे मत भूलिए कोई व्यक्ति बिना हवा के नहीं रह सकता यह अक्सीजन कहां मिलता है आपको पता है रायपुर में मिलता है क्या मुंबई में मिलते हैं दिल्ली में मिलता है क्या जो आप बोलेंगे दिल्ली में भी नहीं मिलता फैक्ट्री में मिलता है क्या आप अपनी आने वाली पीढ़ी को पीछे मैं लटकाने वाला ऑक्सीजन पसंद करेंगे क्या तो अब बोलेंगे नहीं तो कैसा वाला ऑक्सीजन लेना पसंद करेंगे जो आप का जंगल है वह आपका जीवन है आपका आने वाला पीढ़ी है उस पीढ़ी से आप व्यवस्था को मत बिगाड़ये इस बात को इस मंच के माध्यम से आप से आह्वान निवेदन करना चाहता हूं ओ जंगल की संरक्षण में आप अपना भागीदारी जिम्मेदारी निभाए जिस दिन आप जंगल का संरक्षण भागीदारी निभाते हैं आप पूरे जन समुदाय को ऑक्सीजन देने का काम करते हैं वरना तो सोचो कोरोना के समय में पैसा लेकर भागते थे ऑक्सीजन नहीं मिलता था मैं गलत बोल रहा हूं क्या आप पूंजीवाद की ओर भागेंगे,  बाजार वाद ओर भागेंगे, तो जिंदगी नहीं जी पाएंगे। अगर वापस *एक कदम-गांव की ओर*  जाएंगे तो आपको *एक कदम गांव की ओर* में आत्मनिर्भरता का इकाई मिलेगा,  गाँव आत्म निर्भर है। चाहे कैसे भी करके अपने पड़ोसी 1 दिन का खाना दे सकता है वह खुद ना ओढे लेकिन आपको चादर ओढ़ने को देता है। खुद ना पढ़ें लेकिन दूसरा को जरूर पढ़ा सकता है। यह व्यवस्था गांव में काबीज है है गांव में मिलता है।  गांव को छोड़कर हम बाजार वाद की ओर भाग रहे हैं आप कितने लोगों को पता है?  बाजार वाद बार-बार बोल रहा हूं? वह वह कौन सा व्यवस्था है?  जो आप बोलेंगे शहरीकरण आप बोलेंगे पूंजीवादी व्यवस्था को हमारे ऊपर लादना। यहां जिस प्रांगण में खड़े हैं यह नगर पंचायत का एरिया आता है यह जो नगर पंचायत है। 


 इस मंच के माध्यम से कहना चाहता हूं संविधान के मुताबिक यह संवैधानिक संस्था नही है नगर पंचायत यह असंवैधानिक संस्था है क्योंकि इस देश में नगरी में नगर पंचायत होना चाहिए करके इस देश में कहीं कानून नहीं बना कितनी बड़ी बात कहना चाहता हूं आपसे तो आप बोलेंगे नगर पंचायत तो हैं नगर पंचायत का अध्यक्ष बैठे हैं पार्षद बैठे हैं इस बात को समझना चाहिए। पूरी दुनिया मैं हमारे साथ धोखा हुआ केवल एक कानून को लेकर नहीं आप सविधान को पड़ेंगे कभी कभी अलग से और अवसर देंगे तो मैं आपके साथ आकर बात करूंगा। संविधान के 243 zc को आप पड़ेगा अभी सब मोबाइल चलाते हैं जब मैं बोल रहा हूं तो आप खुल कर देखेगा zc यह कहता है कतई क्षेत्र में यह कानून लागू नहीं होगा यह व्यवस्था लागू नहीं होगा जिसका मतलब पांचवी अनुसूची क्षेत्र नगर पंचायत व्यवस्था लागू नहीं होगी यह बात मैं नहीं बोल रहा हूं यह बात छत्तीसगढ़ के महामहिम राज्यपाल बोल रही है यह बात छत्तीसगढ़ के माननीय मुख्यमंत्री जी बोल रहे हैं।  क्यों 2000 से *मेसा*  बिल राज्य सभा में पेंडिंग पड़ा है आज तक जो बिल है यह कानून के रूप में पारित होकर हमारे पास नहीं आया जैसे पेशा क़ानून बना है।
ग्रामीण ग्रामीण क्षेत्रों के लिए *पेसा* वैसे *मेसा* बनेगा शहरी क्षेत्रों के लिए।  तभी पाँचवी अनुसूची क्षेत्रों में नगर पंचायत बन सकता है। यह बात भी कहना चाहता हूं माननीय मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जी धन्यवाद देना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से पिछले कई सालों वर्षों के बाद कई ऐसे नगर पंचायत हैं जहां के आश्रित लोग जो आश्रित ग्राम सभाएं थी आश्रित मोहल्ला सभाएं थे उन्होंने कहा कि हम इस व्यवस्था में बड़े बड़े कर जैसी टैक्स बोलते हैं पानी का टैक्स, बेरी का टैक्स, मकान टैक्स, लोग कहां से देंगे गरीब थे।  लेकिन आपने शहरी क्षेत्र में जोड़ दिया, ना उनको आप रोजगार दे रहे हैं ना उनको आप रोजगार गारंटी दे रहे हैं। लोग कैसे ठीक जी सकेंगे।

 मैं आपको बताना चाहता हूं इस मंच के माध्यम से जो करा रोपण होता है वह हजारों में नहीं होता यहां तक हमने देखा है लाखों में जाता है। एक गरीब आदमी लाख रुपये कैसे दे सकता है। मुझे पता चला है आज इस मंच के माध्यम से की नगरी के कुछ ऐसे पारा मोहल्ला है जो उस व्यवस्था से अलग होना चाहते हैं यदि ऐसा है तो उनके लिए छत्तीसगढ़ सरकार आपको छूट देती है ओ अलग हो सकते हैं। माननीय मुख्यमंत्री जी ने कहा है अपने जितने 90 विधानसभाओं में घूमते हुए अगर कोई नगर पंचायत से अलग होना चाहता है तो हमें कोई आपत्ति नहीं है उससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला। तो मुझे लगता है और भी अवसर देंगे कभी सुनने का। मुझे तो बताना बहुत चीज है मगर अपने अधिकारों से बहुत लोग वंचित हैं और शोषित हैं मैं उदाहरण के साथ कई व्याख्यान दे सकता हूं एक एक उदाहरण बता सकता हूं लेकिन मंच के माध्यम से एक निवेदन करना चाहता आने वाले समय में अपनी *जल जंगल जमीन* को बचा ले वही आपके आने वाली पीढ़ी के सही होगा । अन्यथा आने वाली पीढ़ी को आपको लगता है करोना कॉल यह खत्म हो गया?  अभी भी है, हो सकता है दूसरे समय में दूसरे टाइप का कुछ आजाए।  तब भी हमें ऑक्सीजन की जरूरत पड़ेगी, हमें सिलेंडर की जरूरत पड़ेगी, तब आप शहरों की ओर भागेंगे आज जैसे हम लोग इधर आए हैं हम कहते हैं जब गांव में जाएंगे आपको आत्मनिर्भरता मिलेंगे मुझे लगता है कि समय ज्यादा ले लिया। 

मैं एक बात को जरूर बताना चाहता हूं मैं हाथ में कागज रखा हूं इसे सब व्हाट्सएप ग्रुप में डाला हूं यह संयुक्त राष्ट्र संघ का घोषणा पत्र है, जो संयुक्त राष्ट्र ने आदिवासी अधिकारों के लिए 13 सितंबर 2007 में आपके लिए घोषणा किया।  जल जंगल जमीन का अधिकार हैं आपके संस्कृति बचाने का अधिकार है और आपके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ  लड़ाई करने के लिए आप सक्षम है और जितने भी आदिवासी क्षेत्र हैं दुनिया में जिसको मैंने कहा 90 देश में  आदिवासी यों की आबादी ज्यादा है उनके लिए जो केंद्र सरकार होगी राज्य सरकार होंगे जितने भी सरकार के अमले होंगे। वह जब कोई भी नीति नियम बनाएं उनके सम्मान, स्वाभिमान, उसकी गरिमा को ध्यान रखते हुए  हो। इस बात को संयुक्त राष्ट्र संघ ने 2007 में स्वीकारा और आपके हाथों में दीया।

 मुझे लगता है कि मैं बहुत सारी बात बोल दिया,  मुझे कुछ और भी बोलना था मुझे कभी और अवसर देंगे तो जरूर बोलूंगा।  अपनी आवाज को यहीं विराम देता हूं,  विराम देने से पहले मंचासीन मंच से मेरे से अगर कोई त्रुटि हुई होगी या जो अनुच्छेद या जो प्रावधान मै बोला हूं अगर किसी प्रकार के क्लियरिटी चाहिए होगा तो उसके लिए मैं मंच में  बैठा हूं मैं आपसे बात करने के लिए तैयार हूं।  अपनी बातों को यही विराम देता हूं आप मेरे साथ जय घोष करा दे।  जय गोंडवाना । जय भूमकाल ।।


अश्वनी कांगे 

7000705692

सामाजिक चिंतक कांकेर, छत्तीसगढ़ ,

संस्थापक सदस्य-

KBKS, NSSS, SANKALAP, KOYTORA,

पूर्व जिला अध्यक्ष-अखिल भारतीय आदिवासी विकास परिषद कांकेर।

पूर्व ब्लॉक अध्यक्ष - गोण्डवना युवा प्रभाग ब्लॉक चारामा, जिला कांकेर।

पूर्व प्रांतीय उपाध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़, युवा प्रभाग।

कोर ग्रुप सदस्य, गोंडवाना समाज समन्वय समिति बस्तर संभाग।

वर्किंग ग्रुप सदस्य, सब ग्रुप, छत्तीसगढ़ योजना आयोग 

Organizer- All India Adivasi Employees Federation,(AIAEF) Chhattisgarh

ashwani.kange@gmail.com 

Monday, August 8, 2022

*9 अगस्त : विश्व आदिवासी दिवस*

*9 अगस्त : विश्व आदिवासी दिवस*

*याद करो कुर्वानी, तेज़ करो संघर्षों की कहानी!*
*उठो , आदिवासी- भारत के वास्ते -- न्याय, समता, लोकतंत्र और इंसानियत के रास्ते*

*आज भी विरोध-विद्रोह जारी है : विस्थापन, बिखराव विपन्नता और विनाश के विरुद्ध सम्मान, स्वशासन और समता के लिए*

*संसाधन और संस्कृति को जबरन आत्मसात करने की राज्य -पोषित कार्पोरेटी ललक ; भेदभावपूर्ण रवैया और  राजकीय  दमन के विरुद्ध खड़ा हे श्रमजीवी मूल-निवासी !*

औपनिवेशिक-काल से आज तक संघर्षों का अनगिनत सिलसिला जारी है। ज़मीन और प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण एवं उपयोग को लेकर आदिवासियों ओर राष्ट्रीय सरकारों के बीच टकराव हो रहे हैं। 18वीं शताब्दी के मध्य से भारत में केन्द्रित राज्य व्यवस्था के विरुद्ध आदिवासियों के सामाजिक रणहुंकार के कारण आदिवासी क्षेत्रों में स्वशासी व्यवस्था को कानूनी मान्यता का बीजारोपण हुआ। तब से लेकर 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक एवं सामाजिक परिषद् द्वारा संयुक्त राष्ट्र मानव अधिकार आयोग को दुनिया भर के आदिवसियों के ऊपर किये जा रहे अन्याय एवं पक्षपातपूर्ण समस्यायों का अध्ययन करने के लिए ज़िम्मेदारी देने तक का सफ़र पूरा हुआ है।

अमेरिकी महाद्वीप में मूल निवासियों के साथ अन्यायपूर्ण भेदभाव पर वर्ष 1977 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा प्रायोजित जिनेवा सम्मेलन में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पूंजी-केन्द्रित दमनकारी राज्य व्यवस्था को चुनौती दी गई। इसके कारण 12 अक्टूबर को मनाए जाने वाला 'कोलंबस दिवस' खारिज हुआ और ‘मूल निवासी दिन‘ का प्रचलन शुरु हुआ, जिस पर 2021 में ही जाकर अमेरिकी राष्ट्रपति ने अपनी मुहर लगाई है। इस बीच 1982 में स्पेन समेत कुछ यूरोपीय देशों तथा सभी अमेरिकी देशों द्वारा संयुक्त राष्ट्र संघ में वर्ष 1992 में क्रिस्टोफर कोलंबस द्वारा अमेरिका की खोज के 500 वर्ष पूरे होने का जलसा मनाने के प्रस्ताव का ज़ोरदार विरोध अफ्रीकी देशों तथा विश्व के आदिवासी समुदायों द्वारा किया गया।

23 दिसम्बर 1994 को संयुक्त राष्ट्र संघ की आमसभा में प्रस्ताव क्रमांक 49/214 पारित किया गया, जिसके ज़रिये अन्तर्राष्ट्रीय मूलनिवासी दशक (1995-2004) का पालन करने की घोषणा करते हुए हर साल 9 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय मूलनिवासी दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। यह दिन इसलिए तय किया गया, क्योंकि इसी दिन 1982 में संयुक्त राष्ट्र संघ का 'मानव अधिकारों का  उत्थान व सरंक्षण' विषय पर मूलनिवासियों के मानव अधिकारों पर चर्चा हेतु गठित उप-आयोग के वर्किंग ग्रुप की पहली मीटिंग हुई थी। 2005-14 को अंतर्राष्ट्रीय मूलनिवासी दशक घोषित हुआ तथा 13 सितम्बर, 2007 को संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मूल निवासियों के अधिकारों का महत्वपूर्ण घोषणा पत्र जारी हुआ, जिसके जरिये पहली बार मूलनिवासियों के सामुदायिक अधिकारों (राजनैतिक, कानूनी, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक अधिकारों) एवं स्वनियंत्रण को अंतर्राष्ट्रीय कानूनी भाषा-शास्त्र का हिस्सा बनाया गया।

कुल मिलाकर देखा जाएँ, तो संयुक्त राष्ट्र संघ का मूलनिवासी घोषणा पत्र स्वशासन एवं प्रत्यक्ष लोकतंत्र की प्राथमिकता को प्रतिपादित करता है। भारत के संदर्भ में देखें, तो भारत के संविधान का मूल भावना तथा नेहरूजी द्वारा “आदिवासियों के लिए पंचशील सिद्धांत“ से बहुत हद तक मेल खाता है। इस संबंध में संविधान की 6वीं अनुसूची, 7वीं पंचवर्षीय योजना में स्व -प्रवंध पर जोर, आदिवासियों के भूमि अधिकारों पर भारत सरकार द्वारा नियुक्त समिति की रिपोर्टें, भूरिया समिति रिपोर्ट तथा भूरिया आयोग रिपोर्ट, पेसा तथा वन अधिकार (मान्यता) कानून ; पंचायत राज मंत्रालय द्वारा पूरे देश में पंचायती कानून में सरंचनागत संशोधन हेतु प्रारूप 3 बिल (पूरे देश में प्रत्यक्ष लोकतंत्र का विस्तार), संघ-राज्य संबंधों पर आयोग की सिफारिशों में निहित धारणाएं तथा अनुसूचित जाति-अनुसूचित जनजाति आयोग की सिफारिशों का उल्लेख किया जा सकता है।

लेकिन यह भी सच है कि राष्ट्र हित (वास्तव में, सत्ता-दलालों के स्वार्थ हित) के नाम पर संसाधनों से धनी आदिवासी बाहुल्य इलाकों से विकास के नाम पर संसाधनों के दोहन के लिए कानूनी व प्रशासनिक प्रक्रियाओं की हेरफेर चलती रही है। 1990 से अपनाई गयी भू-मंडलीकरण-निजीकरण-उदारीकरण की नीति ने तथा 2014 से उस धारा के तीव्र एवं खूंखार ध्रुवीकरण (सांप्रदायिक तथा धन-पिपासु दरबारी कार्पोरेट पूंजी के गठजोड़) ने लोकतंत्र-स्वशासन की अवधारणा को संवैधानिक धरातल पर नेस्तनाबूद किया है और चुनावी-निरंकुशता पर पहुँचकर भारत को गैर-लोकतान्त्रिक आज्ञापालक समाज बनाने के अमृतकाल की ओर धकेल रहा है। विपक्ष द्वारा जनवादी विकल्प पेश करने में असफल होने के कारण किसानों, मजदूरों और जनवादी-सामाजिक घटकों के पक्ष में बनाये गए सारे प्रचलित कानूनों और संवैधानिक व्यवस्थाओं में बदलाव किये जा रहे हैं।

आदिवासी क्षेत्र के लिए स्वशासन कानून (पेसा) तथा वन अधिकार (मान्यता) कानून को अब तक कहीं भी, किसी भी सरकार ने सही रूप से लागू नहीं किया है। अब तो आलम है कि कानून में संशोधन की रास्ता न अपनाते हुए नियमों में ही संशोधन करते हुए कानून को ही निष्प्रभावी बनाने के हथकंडे अपनाये जा रहे है। ताज़ा उदहारण :

वन अधिकार मान्यता कानून को निष्प्रभावी बनाने के लिए तथा वन संसाधनों को निजी पूंजी के हाथ में देने के लिए वन (सरंक्षण) अधिनियम, 1980 की धारा (4) के विरुद्ध जा कर  28 जून, 2022 को नियमों में संशोधन किया गया है, जिसके तहत वन भूमि को डीरिज़र्व, डाइवर्ट तथा लीज देने के पूर्व ग्रामसभा की सहमति की अनिवार्यता की खात्मा किया गया है [नियम 9(6)(ख)] एवं वन अधिकार कानून के तहत दावेदारों को अधिकार देने के पहले एवं आदिवासी अत्याचार अधिनियम का धता बताते हुए  गैर-वनीय कार्य के लिए वन भूमि के डाइवर्सन हेतु ग्रामीण सामुदायिक ज़मीन तथा डी-ग्रेडेड वन क्षेत्र को चिन्हित कर क्षतिपूर्ति वनीकरण नाम से लैंड-बैंक (न्यूनतम आकार 25 हेक्टयर का निरंतर ब्लाक; आरक्षित क्षेत्र में कोई भी न्यूनतम आकार नहीं ; ट्री-प्लांटेशन वाली निजी जमीन भी ली जाएगी) बनाया जायेगा, ताकि वन भूमि डाइवेर्सन की प्रक्रिया में तेज़ी लाया जा सके [नियम 11(2)]। इस हेतु संघ सरकार प्रत्यायित प्रतिपूरक वनीकरण तंत्र तैयार करेगी, [नियम 11 (3) (क)]। वन अधिकार तथा वन्यजीव सरंक्षण अधिनयम का हनन करते हुए आरक्षित क्षेत्र (राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य आदि से विस्थापित ग्रामीणों की ज़मीन में वनीकरण करने की अधिकार एजेंसी को प्राप्त होगा, [ नियम 11(च)]। 1000 हेक्टयर से अधिक (वृहद् परियोजना) के लिए वन भूमि डाइवर्सन को सैधांतिक रूप से अनुमति प्रदान किया है। इस स्थिति में चरणवार अनुमोदन का प्रावधान होगा [ नियम 9 (6) (घ)]। भौतिक कब्जा रहित वन क्षेत्र में पेट्रोलियम अन्वेषण लाइसेंस या पेट्रोलियम खनन पट्टे के लिए सरकारी  अनुमोदन आसानी से दे दी जाएगी  [नियम 9(5)] तथा   राजस्व वन या नारंगी वन क्षेत्र के डाइवर्सन के संबंध में जिला कलेक्टर एवं वन अधिकारी के संयुक्त सत्यापन से प्रस्तावकर्ता भूमि की अनुसूची एवं नक्शा प्राप्त कर लेंगे, [नियम 9 (4) (च)]। वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 5 तथा नियम 4 (1)(च) का स्पष्ट हनन करते हुए वन वर्किंग प्लान के लिए वन विभाग के आला अधिकारी जिम्मेदार बनाते हुए एक प्रक्रिया के तहत संघ सरकार से पूर्व अनुमोदन लिए जायेंगे, [ नियम 10 ]।

वन अधिकार मान्यता कानून लागु होने के बाद वर्ष 2008 से 2021 तक 3,08,609 हेक्टयर वन भूमि डाइवर्ट हो चुकी है, जिसमें ग्रामसभा की विधि सम्मत सहमति ली नहीं गयी है। अब इन नियमां के बाद न तो पेसा कानून का और  न ही वन अधिकार  मान्यता कानून का कोई औचित्य बच पायेगा।

*इको-सेंसिटिव जोन* : माननीय सर्वोच्च न्यायलय का 3 जून 2022 का आदेश वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 3 (1)(झ) तथा धारा 5 में प्रदत्त ग्रामसभा के प्रबंधन के अधिकार को नज़रंदाज़ करता है और राज्य स्तर पर पीसीसीएफ एवं गृह सचिव के हाथ में सारी शक्तियों का केन्द्रीयकरण करता है। इको-सेंसिटिव जोन के रूप में पर्यावरण सरंक्षण अधिनियम, 1986 के तहत हर आरक्षित क्षेत्र (अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान इत्यादि) के सीमा से 1 कि.मी अर्धव्यास की दूरी को अधिसूचित क्षेत्र जोन के रूप में घोषित किया जाता है। 9 फरवरी 2011 की गाइडलाइन्स)। लेकिन जोन बनाने का कोई प्रस्ताव है, तो इस क्षेत्र का दायरा 1 कि.मी अर्धव्यास से बढ़कर 10 कि.मी. अर्धव्यास क्षेत्र हो जायेगा। इस जोन में कोई स्थायी सरंचना बनाना प्रतिबंधित है। इस जोन क्षेत्र का दायरा बढ़ाने के लिए सर्वोच्च न्यायलय की अनुमति अनिवार्य होगी।

*जैव-विविधता (संशोधन) बिल, 2021* : जैव-विविधता का सरंक्षण, सतत उपयोग तथा जैव संसाधनों के उपयोग से प्राप्त धनराशि के निष्पक्ष व न्यायसंगत बंटवारा के आधार को ही बदलकर कारपोरेट व्यापार को सहूलियत देने के लिए जैव-विविधता अधिनियम, 2002 में संशोधन  किया जाना प्रस्तावित है। इससे जो पारंपरिक रूप से उपयोगी पदार्थों का ज्ञान रखते हैं, उन्हें उन पदार्थों का लाभ न दिलाते हुए, 
व्यापार कंपनियों को लाभ पहुंचाया जाएगा तथा इससे वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 5 का हनन होगा . 

देश में लगभग 2,75,000 जैव विविधता प्रबंधन समितियां हैं, जो जन जैव-विविधता रजिस्टर (पीबीआर) बना चुके हैं और जिनको 2014 की गाइडलाइन्स के तहत एक्सेस एंड बेनिफिट शेयरिंग रेगुलेशन के तहत लाभ में हिस्सेदारी मिलने का कानूनी अधिकार है, [धारा 21 (2)]। साथ ही इस हिस्सेदारी के तहत जैव-संसाधनों के सतत संवर्धन एवं  उपयोग के लिए कंपनियों को इसकी लागत में खर्चा वहन करना सुनिश्चित किया गया है।भारत का आयुर्वेद उद्योग सालाना करीब 30,000 करोड़ रुपयों का व्यापार करता है।

संशोधित अधिनियम में “लाभ के दावेदारों“ की परिभाषा बदल कर ‘पारंपरिक ज्ञान-जानकारी  से संबंध रखनेवाला धारक   ‘(एसोसिएटेड होल्डर्स ऑफ़ ट्रेडिशनल नॉलेज') लाभ के दावेदार के रूप में परिभाषित किया गया है। यहाँ तक कि वे  भारतीय लिखित पारंपरिक ज्ञान से अलग होंगे अर्थात आयुर्वेद, यूनानी तथा सिध्दा उपचार पद्धति के उपयोग में आनेवाला पदार्थ, ज्ञान तथा उसकी उत्पादन में लगे लोगों (किसानों, आदिवासियों एवं अन्य परम्परागत वन-निवासियों तथा सारे जैव-विविधता प्रबंधन समितियों द्वारा तैयार की गयी लिखित जानकारी) को लाभ नहीं मिलेगा। इस संशोधन से सारे दवा उद्योग अपने मुनाफे को जैव सरंक्षण-संबर्धन में लगे लोगों-समुदायों को बाँटने से इंकार कर देंगे।

अब तक किसी विदेशी कम्पनी या विदेशी व्यक्ति या किसी भारतीय कम्पनी के किसी विदेशी शेयरहोल्डर को भारतीय जैव-विविधता के संबंध में कोई शोध या व्यापार करने के पहले राष्ट्रीय जैव–विविधता प्राधिकरण से पूर्व अनुमति लेना अनिवार्य है, [धारा 3(2)(ग)]। इस प्रावधान को संशोधित करते हुए प्रस्ताव रखा गया है कि कोई भी विदेशी कंपनी या व्यक्ति भारतीय जैव संसाधन पर शोध एवं व्यापार कर सकता है।

*राज्य जैव-विविधता बोर्ड की नियामक शक्तियों का खात्मा*  : भारतीयों द्वारा कोई भी जैव-संसाधन पर सर्वे या उपयोग या व्यापारिक कार्य करने के पहले राज्य बोर्ड को पूर्व सूचना देना  आवश्यक था, जिस पर बोर्ड सहमति या असहमति दे सकती थी, (धारा 22)। यह प्रावधान स्थानीय लोगों – समुदायों, वैदों-हकीमों पर लागू नहीं होता था, (धारा 7)। अब इस प्रावधान को व्यापक कर दिया गया है, जिसके तहत कोई भी दवा कंपनी एवं वनस्पति की खेती करने वाले व्यक्ति को बोर्ड को न पूर्व सूचना देने की ज़रुरत होगी और न लाभांश का बंटवारा करेगी।

*दंड का प्रावधान में शिथिलता* : जैव-विविधता की विनाश के रोकथाम के लिए 2002 के कानून में संज्ञेय अपराध मान्य  करते हुए जुडिशल मजिस्ट्रेट कोर्ट के ज़रिये 3 से 5 साल का कारावास तथा क्षतिपूर्त राशि का प्रावधान था, (धारा 58)। प्रस्तावित संशोधन में मजिस्टेरियल कोर्ट को दायरे से हटाकर सरकारी अधिकारी द्वारा निपटारा, कारावास के प्रावधान को हटाना एवं केवल आर्थिक दंड के ज़रिये जैव विविधता की हानि की भरपाई करने के प्रावधान करके जैव संसाधनों के संपूर्ण कारपोरेटीकरण एवं पारंपरिक ज्ञान तथा जैव सम्पदा के विनाश का रोडमैप तैयार कर दिया गया है। यह  पेसा, वन अधिकार मान्यता कानून की धारा 5, अंतर्राष्ट्रीय जैव-विविधता कन्वेंशन तथा नागोया प्रोटोकोल का घोर उलंघन है।

ऐसे ही भारतीय वन कानून,1927 एवं पर्यावरण (सरंक्षण ) कानून, 1986 में जो दंड प्रक्रिया पहले निहित थी, उसे सरलता तथा मौद्रिकता (monitize) में सीमित करते हुए संशोधन प्रस्तावित है, ताकि कार्पोरेट का हित साधन हो। लेकिन लोगों की वन एवं वन सम्पदा पर अधिकार को नज़रंदाज़ करते हुए औपनिवेशिक अपराधिक तंत्र को बरकार रखा जायेगा। यह नीति सिर्फ वनों पर नहीं, बल्कि मोदीजी के नेशनल मोनिटाइजेसन पाइपलाइन नीति के बाद अब पंचायत मंत्रालय “वाइब्रेंट ग्रामसभा" के नाम पर हर गाँव की परिसंपत्ति का कैसे मौद्रीकरण किया जायेगा, उसकी योजना बनाने की ज़िम्मेदारी ग्रामसभा को दी गई है।

 इसलिए हमारी मांग और संकल्प है कि :

* हर ग्राम में ग्राम सरकार [ स्वयं का विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका] (पेसा, 4 घ ) और 

हर जिले में जिला सरकार (पेसा, 4 ण) बनाने के लिए

* छत्तीसगढ़ में लागू सारे कानूनों में संशोधन करते हुए पेसा सम्मत बनाएंगे [पेसा (4) & (5)]

* पारंपरिक न्याय-नेतृत्व के ज़रिए ग्राम न्यायलय एवं जिला न्यायालय का गठन करते हुए सारे असंज्ञेय अपराधों को पारंपरिक न्यायलय के अधीनस्थ करेंगे (पेसा, 4 घ एवं 4 ण)

* ग्राम सभा की सहमति के बिना गांव के सामुदायिक संसाधनों का अधिग्रहण तथा हस्तांतरण वर्जित करेंगे। (पेसा 4 घ एवं वन अधिकार मान्यता कानून धारा 5)

* छत्तीसगढ़ के अनुसूचित क्षेत्र के प्रशासनिक व्यवस्था के लिए "छत्तीसगढ़ अनुसूचित क्षेत्र कानून संहिता" तथा "छत्तीसगढ़ अनुसूचित क्षेत्र  पब्लिक सर्विस कमीशन" का गठन करते हुए एक अलग प्रशासनिक कैडर तैयार करेंगे। (नेहरूजी के द्वारा घोषित पंचशील नीति,1952)

* छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता में संशोधन कर आंध्रप्रदेश अनुसूचित क्षेत्र भू-हस्तांतरण विनियम अधिनियम ( संशोधित 1970) के तर्ज पर कानून बनाएंगे।

 * वन प्रशासन को लोकतांत्रिक करने हेतु तथा आदिवासी और अन्य वन निवासियों के साथ हुए "ऐतिहासिक अन्याय" को सुधारने के लिए लाए गए वन अधिकार मान्यता कानून की रक्षा करते हुए वन सरंक्षण अधिनियम,1980 के संशोधित नियम,2022 ; भारतीय वन अधिनियम,1927 में प्रस्तावित संशोधन  ; पर्यावरण (प्रोटेक्शन) अधिनियम,1986 के  इको-सेंसिटिव जोन के संबंध में गाइडलाइन्स में प्रस्तावित संशोधन तथा वन्यजीव (सरंक्षण) अधिनियम,1972 की नियमों में किये जा रही संशोधनों को खारिज़ करते हुए इन्हें वन अधिकार मान्यता कानून के सम्मत बनाएंगे।

* अनुसूचित क्षेत्र एवं अनुसूचित जनजाति आयोग द्वारा सन 2004 में दी गयी सिफारिश के आधार पर छत्तीसगड़ के गैर-अनुसूचित क्षेत्र को अनुसूचित करेंगे (अर्थात 1951 की जनगणना के अनुसार जिस गांव में अनुसूचित जनजाति कुल जनसंख्या के 40% या अधिक हो, को आधार मान्य करो)

* अनुसूचित क्षेत्र में सर्व शिक्षा अभियान के तहत  शिक्षा प्रणाली को खारिज़ कर स्थानीय समुदायों की भाषा-संस्कृति आधारित परीक्षा प्रणाली के ज़रिए कॉमन स्कूल व्यवस्था को लागू किया जाये। (विद्यालय-पाठ्यक्रम-प्रशिक्षित शिक्षकों)

* अनुसूचित क्षेत्र में संविधान के अनुच्छेद 243 (य ग) का पालन करते हुए सारे गैर-कानूनी नगर पंचायतों /नगर पालिका को भंग करते हुए पेसा कानून के तहत पंचायती व्यवस्था लागू करो।

* संयुक्त राष्ट्रसंघ द्वारा घोषित आदिवासी अधिकार घोषणा पत्र के अनुच्छेद 30 का अनुसरण करते हुए छत्तीसगढ़ के अनुसूचित क्षेत्र में सैन्यकरण बंद की जावें।

* लघु वनोपज, खनिज संपदा तथा जैव विविधता का सरंक्षण -संवर्धन-व्यापार में  ग्रामीण महिलाओं का सहभाग से ग्रामसभा के नेतृत्व में प्रबंधन हेतु प्रचलित कानून में संशोधन किया जावें।....


....बिजय भाई...