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Tuesday, September 17, 2024

*मध्य प्रदेश* के *बालाघाट* जिले के ग्राम *परसवाड़ा* में तीन दिवसीय *कोया पुनेम एवं संवैधानिक प्रशिक्षण कार्यशाला*

*एक कदम, गांव की ओर...* *
*ग्राम सभा सशक्तीकरण की ओर...*

गांवों का सशक्तीकरण किसी भी समाज की स्थिरता और विकास का आधार होता है। जब ग्रामीण क्षेत्र अपने सांस्कृतिक धरोहरों और संवैधानिक अधिकारों को समझते हैं, तो वे न केवल अपनी पहचान बनाए रखने में सक्षम होते हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर भी बनते हैं। इसी सोच को बढ़ावा देने के लिए *मध्य प्रदेश* के *बालाघाट* जिले के ग्राम *परसवाड़ा* में तीन दिवसीय *कोया पुनेम एवं संवैधानिक प्रशिक्षण कार्यशाला* का आयोजन किया गया। यह कार्यशाला ग्राम सभा सशक्तीकरण और आदिवासी अधिकारों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आयोजित की गई, जिसमें गोंडवाना के सांस्कृतिक, सामाजिक और संवैधानिक पहलुओं पर विशेष ध्यान दिया गया।

*कोया पुनेम: एक सांस्कृतिक धरोहर*

कार्यशाला के दौरान कोयतोरिन व्यवस्था के अंतर्गत गोंडवाना की पवित्र "ग" संस्कृति को विस्तार से समझाया गया। इसमें गोंडवाना से संबंधित गण्ड, गोंड, गोंडवाना, गोटुल, गुड़ी, गांयता, गोंगो, टोंडा, मंडा और कुंडा जैसे प्रमुख पहलुओं पर जानकारी दी गई। गोंडवाना की इस प्राचीन संस्कृति में टोटम व्यवस्था और लिंगों मैट्रिक जैसे सांस्कृतिक तत्वों का भी विशेष उल्लेख किया गया, जो गोंड समाज की पहचान और परंपराओं को सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

गोंडवाना समाज के रीति-रिवाज और परंपराएं, जैसे कि पेन पंडुम, गांव के सामाजिक ताने-बाने को मजबूत बनाते हैं। *गोटुल* और गुड़ी जैसे सांस्कृतिक केंद्र युवा पीढ़ी को अपनी सांस्कृतिक धरोहरों से जोड़ने का माध्यम हैं। इस कार्यशाला में *कोया बल्ड बैंक* और *कोया बुक बैंक* जैसी महत्वपूर्ण पहलों के बारे में भी बताया गया, जो आदिवासी समाज में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में जागरूकता फैलाने का कार्य कर रहे हैं। साथ ही, वृक्षारोपण जैसे पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों को भी जोर दिया गया।

*संवैधानिक अधिकारों की जानकारी*

ग्राम सभा सशक्तीकरण की दिशा में संवैधानिक अधिकारों का ज्ञान होना अत्यंत आवश्यक है। कार्यशाला में प्रमुख संवैधानिक प्रावधानों के बारे में जानकारी दी गई, जिसमें मुख्य रूप से पंचायत उपबंध (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम (PESA) 1996, और अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परंपरागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम (RoFRA) 2006 का जिक्र किया गया। इन अधिनियमों का उद्देश्य आदिवासी समुदायों को उनके भूमि और संसाधनों पर अधिकार देना है, जिससे वे अपने प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन कर सकें।

कार्यशाला में पांचवीं अनुसूची के तहत आने वाले आदिवासी क्षेत्रों के अधिकारों के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई। इन अधिकारों के प्रति जागरूकता ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और सशक्तीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। संवैधानिक अधिकारों की जानकारी से आदिवासी समुदाय अपने हितों की रक्षा करने और अपनी परंपराओं को सहेजने में सक्षम हो सकते हैं।

*शिक्षा और रोजगार पर ध्यान*

कार्यशाला का एक और प्रमुख उद्देश्य उच्च शिक्षा, रोजगार और स्वरोजगार के अवसरों को लेकर आदिवासी युवाओं में जागरूकता फैलाना था। ग्रामीण युवाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के साधनों की जानकारी देना उनके भविष्य के निर्माण में सहायक हो सकता है। इसके अलावा, स्वरोजगार के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने पर भी जोर दिया गया।

विशेषज्ञों ने ग्रामीण युवाओं को उच्च शिक्षा की दिशा में प्रेरित किया और उन्हें विभिन्न रोजगार के अवसरों की जानकारी दी। इसके साथ ही, स्वरोजगार के माध्यम से आदिवासी युवाओं को आत्मनिर्भर बनाने की पहल की गई। शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों का सही उपयोग करने से ग्रामीण विकास को नई दिशा मिल सकती है।

*प्रमुख विशेषज्ञों की भागीदारी*

इस तीन दिवसीय कार्यशाला में कई प्रमुख विशेषज्ञों की उपस्थिति रही, जिन्होंने अपने अनुभवों और ज्ञान को साझा किया। कोया भूमकाल क्रांति सेना (KBKS) छत्तीसगढ़ से तिरु अश्वनी कांगे, प्रमोद पोटाई, तुलसी नेताम, संदीप सलाम, हेमंत तुमरेटी, प्रखर, बलदेव पडोटी, और मूलनिवासी सेवा समिति (MSS) मध्य प्रदेश से तिरु कमल किशोर आर्मो, कमलेश मरकाम, रंजीत ध्रुवे, तिरुमाय रुकमणी सुरेश्वर, उज्जर मरकाम, जगदीश कुर्वेती, मनोहर परते, दशरथ मरावी, और चरण परते जैसे विशेषज्ञों ने आदिवासी अधिकारों, सामाजिक सुधार और ग्रामीण विकास पर अपने विचार साझा किए।

*आयोजनकर्ता और उद्देश्य*

इस कार्यशाला का आयोजन सर्व आदिवासी समाज और गोंडवाना स्टूडेंट्स यूनियन, ब्लॉक इकाई परसवाड़ा, जिला बालाघाट, मध्य प्रदेश द्वारा किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य आदिवासी समाज को उनके संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक करना, सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजना और ग्रामीण युवाओं को शिक्षा एवं रोजगार के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करना ।

Wednesday, February 28, 2024

पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में नगर पंचायत गठित करने से संबंधित संवैधानिक /विधिक जानकारी

  पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में नगर पंचायत गठित करने से संबंधित संवैधानिक /विधिक जानकरी निम्नानुसार है ...



1.  छत्तीसगढ़ में पांचवी अनुसूची के अंतर्गत अधिसूचित क्षेत्र मरवाही में संविधान के 74वां संशोधन के माध्यम से नगरीय निकाय का गठन किया जा रहा है जो कि असंवैधानिक हैं।


2. संविधान के 74 वां संशोधन अधिनियम 1992 के अनुच्छेद 243 (य)(ग) के खंड (1) के तहत यह नगरीय निकाय पांचवी अनुसूची के क्षेत्रों में तब तक लागू नहीं होगा जब तक केंद्र सरकार इसके लिए अलग से प्रावधान कर इसें अनुसूचित क्षेत्र में विस्तारित न करे।


3.  अनुसूचित क्षेत्रों पर 74वां संविधान संशोधन अधिनियम को लागू कराने के लिए “पेसा अधिनियम” जैसा ही "मेसा अधिनियम" जब तक नहीं बन जाता तब तक किसी भी नगरीय क्षेत्र का गठन नहीं किया जा सकता है।


4. संविधान के 74वें संशोधन के अनुच्छेद 243(य)(ग)(1) का उल्लघंन करते हुए राज्य सरकार द्वारा अनुसूचित क्षेत्र के नगरीय निकाय में आरक्षण संबंधी प्रावधानों को लागू कर दिया गया है, जो कि विधि सम्मत नही है एवं असंवैधानिक है।


5. पूर्व में अनुसूचित क्षेत्र की विघटित की गई  ग्राम पंचायतों के क्षेत्र में पेसा अधिनियम के अंतर्गत अध्यक्षों के सभी पद अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए आरक्षित थे जिसे नगरीय निकाय का गठन करते वक़्त समाप्त कर अनुसूचित जनजाति वर्ग के संवैधानिक अधिकारों का हनन किया गया है, जो की न्याय संगत नही है।


6.  विघटित की गई ग्राम पंचायतों में “पेसा”अधिनियम की धारा 4 (छ) के अंतर्गत पंचायत में सदस्यों के लिए कुल स्थानों की संख्या में आधे से कम आरक्षण नहीं होने की अनिवार्यता को भी समाप्त कर दिया गया है, जो की विधि विरुद्ध है।


7. अनुच्छेद 243 यग (1) तथा अनुच्छेद 243 यग (3) का उल्लंघन कर आदिवासीयों के प्रतिनिधित्व को न्यून कर गैर आदिवासियों के प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने से अन्य वर्गों द्वारा, जो इस क्षेत्र के निवासी नहीं है, आदिवासियों का आर्थिक, व्यावसायिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में शोषण किया जा रहा है। 


8. अनुसूचित क्षेत्र में नगरीय निकाय बनाने से वहां पर पेसा अधिनियम के प्रावधानों के तहत अनुसूचित जनजाति को उनकी संस्कृति, उनकी रूढ़ीजन्य विधि, सामुदायिक संपदाओं पर परम्परागत अधिकारों प्राप्त नहीं हो पा रहे है जो कि उनके जीवन का अभिन्न भाग है।


9. संविधान के अनुच्छेद 244 (1) के अंतर्गत पांचवी अनुसूची के भाग ख की कंडिका 5 के अधीन अनुसूचित क्षेत्र में शांति एवं सुशासन के लिए स्थानीय अधिनियम के प्रावधानों को संशोधित करने तथा उन्हें लागू करने से रोकने की शक्तियां राज्यपाल में निहित है। इस प्रावधान का उपयोग कर राज्यपाल महोदय सभी नगरीय निकायों को विघटित करने हेतु अधिसूचना जारी कर सकती है।



अतएव, पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में नगर पंचायत हो ही नहीं सकता यदि नगर पंचायत बनाया जाता है तो वह असंवैधानिक है। इस लिए:

1. संविधान के भाग 9 के अनुसूचित क्षेत्र में ग्राम पंचायतों का विघटन और उनके स्थान पर नवीन नगरीय निकायों की स्थापना पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए;


2. संविधान (74वाँ संशोधन) अधिनियम 1992 के लागू होने के बाद संविधान के भाग 9 के तहत अनुसूचित क्षेत्रों मे गठित ग्राम पंचायतों को विघटित कर उनके स्थान पर जिन नगर पंचायतों की स्थापना की गई है उन नगरी निकायों को तत्काल विघटित कर उनके स्थान पर पुन: ग्राम पंचायतों की स्थापना कराई जाए ताकि 73वां एवं 74वां संविधान संशोधन अधिनियम तथा पेसा अधिनियम के अनुरूप जनजातियों के परंपरागत प्रबंधन की पद्धति का संरक्षण हो सके।


3. राज्य सरकार द्वारा नगरीय निकाय क्षेत्रों में अतिक्रमण, व्यवस्थापन, कब्जा भूमि को विक्रय कर पट्टा प्रदाय किया जा रहा है। अनुसूचित क्षेत्रों में नगर पंचायत अगर असंवैधानिक है तो ऐसी स्थिति में इन सभी प्रक्रियाओं पर तत्काल रोक लगाई जाए. 


#पांचवी अनुसूची क्षेत्रों में संविधान के अनुच्छेद 244 यग के अनुसार नगर पंचायत जैसी व्यवस्था लागू नहीं हो सकती , यह बिल्कुल असंवैधानिक है जब तक के संसद इस संबंध में कोई कानून पास न कर दें.